Quantcast
Channel: The Better India – Hindi
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3563

पुणे की यह छात्रा युवाओं को ले जा रही है नेटफ्लिक्‍स से किताबों की दुनिया में

$
0
0

वान होती पीढ़ी जिस उम्र में कैफे हाउस और सिनेमाघर या मौज मस्ती के दूसरे अड्डे खंगालती फिरती है, उम्र के ठीक उस मोड़ पर पुणे की इस कॉलेज गर्ल ने खुद को ऑन्ट्रप्रेन्योरशिप की राह पर डाल दिया है। महज़  21 साल की अक्षता दहाणुकर बीबीए फाइनल ईयर में है और पुणे के व्यस्त डक्कन जिमखाना इलाके में अपना बुक कैफे चलाती है।

 

”मैं इंटरनेट, सोशल मीडिया और नेटफ्लिक्स के दौर में लोगों को वापस किताबों की उस दुनिया में ले जाना चाहती हूं ,जहां आज भी एकांत है, निजता है और भरपूर आनंद भी है। मैं लोगों को उनके अपने ही साथ वक्‍़त गुज़ारने का आमंत्रण देना चाहती  हूं, उन्‍हें अपने एकांत को जीने का अवसर दिलाना चाहती हूं और चाहती हूं कि वे किताबों की उस दुनिया में वक़्त गुज़ारें जहां आज भी सुकून की छांव है।”

वाकई, सोशल मीडिया के कोलाहल में, बार और कैफे के अट्टहास में, सिनेमा के शोर में खुद से खुद की मुलाकात के मौके हम चूक जाते हैं और ऐसे में किताबों की दुनिया हमें वापस अपने से गले लगना याद दिलाती है। शहर में जिस तेजी से शू स्टोर खुलते हैं उतनी रफ्तार से बुक स्टोर नहीं खुल रहे। और पहले जैसी लाइब्रेरी की परंपरा भी चुकने लगी है। लेकिन इस दौर में अक्षता जैसे युवा सब्र का मंज़र दिखाते हैं। वो याद दिलाते हैं कि सब कुछ चुका नहीं है।

कॉलेज के बाद हर दिन अक्षता की स्कूटी कैफे बोका के बाहर आ लगती है। फिर दोपहर बाद तक उसका समय इस कैफे की बुक रैकों के इर्द-गिर्द ही गुजर जाता है। इनमें सजी करीब 2000 किताबें उसे दोस्‍तों, रिश्‍तेदारों, पड़ोसियों या कैफे में आने वाले लोगों से डोनेशन में मिली हैं। हर किताब के यहां बुक कैफे तक चले आने तक की अपनी कहानी है, और उसके पन्‍नों में संभली कहानियों की दुनिया है, सो अलग।

और इन सब किताबों को दुलारने, कैफे में आने वाले लोगों की चाय-कॉफी, स्नैक्स की जरूरतों को पूरा करने, पेमेंट डेस्क संभालने से लेकर कैफे की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए सीसीटीवी फीड पर चौकन्नी निगाह रखने की अपनी जिम्मेदारी से अक्षता एक दिन भी नहीं चूकती।

 

बुक कैफे में सिर्फ वही होना चाहिए जो किसी भी पुस्तक अनुरागी को चाहिए, यानी, किताबें, किताबों पर चर्चा, किताबों का आदान-प्रदान और चाय-कॉफी की चुस्कियों के दौर। मैं इसके अलावा, किसी भी तरह की हरकतों के लिए कैफे उपलब्ध नहीं करा सकती। कपल्स, लवर्स यहां आ सकते हैं, लेकिन सिर्फ और सिर्फ पढ़ने-लिखने। इस मामले में मेरा रुख शुरू से स्पष्ट है, और जो भी इस नियम की अवहेलना करता है मैं बिना किसी संकोच के साथ उन्हें कैफै से बाहर चले जाने को कहती हूं।

पढ़नेलिखने का माहौल मेरी प्राथमिकता है, इसीलिए यहां कॉफी हाउस सजाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। हां, किताबों के संग चायकॉफी और स्‍मॉल बाइट का तकाज़ा पूरा करने के लिए एक मिनी मैन्‍यू का बंदोबस्‍त कैफे में किया गया है।

अक्षता को सुनते हुए लगता ही नहीं कि वह उस पीढ़ी की नुमाइंदगी करती है जिसके बारे में हम कहते नहीं अघाते कि यह बेखबर पीढ़ी है, अपने आसपास से बेज़ार है, स्मार्टफोन की स्क्रीन में फंसी हुई …

ग्राहक खोने का जोखिम मुझे नहीं डराता। मैं किसी एकाध की वजह से बाकी लोगों के लिए कैफे का  माहौल नहीं बिगाड़ सकती …..”

निश्चित ही कैफे बोका आने पर कई भ्रम टूटते हैं। जब ज़माना 5जी की बाट जोह रहा है, ऐन उस वक्त स्मार्ट जेनरेशन की यह पहल सुखद आश्चचर्य में डालती है। अभी जुम्मा-जुम्मा छह महीने हुए हैं इस बुक कैफे को खुले हुए, हर महीने के पहले शनिवार को यहां पोएट्री आउट लाउड सेशन होता है जिसमें कोई भी आकर कविता पाठ कर सकता है। न उम्र की सीमा और न भाषा का बंधन आड़े आता है। इसके अलावा, ओपन माइक, कॉमेडी शो वगैरह भी आयोजित होते रहते हैं। को-वर्किंग स्‍पेस की तरह भी इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

 

कैफे जिस जगह पर है वो अक्षता के परिवार की है, ऐसे में एक बार के लिए कोई भी यह सोच सकता है कि उसके लिए अपने मन की करना आसान रहा होगा। लेकिन असलियत इससे एकदम उलट है।

मुझे पूरे दो साल लग गए मम्‍मीपापा को यह भरोसा दिलाने में कि मैं वाकई गंभीर हूं। अगर मैं अपने दम पर इसे खोलती, बैंक लोन लेती तो शायद कोई मुझसे हिसाबकिताब नहीं लेने वाला होता। लेकिन यहां मुझे अपने इस  ‘बेबी’ की जिंदगी का हर छोटाबड़ा हिसाब घर में देना होता है। डिनर टेबल पर आए दिन मेरे प्रोजेक्‍ट और उसकी प्रोग्रेस पर चर्चा छिड़ती है, जो एक तरह से अच्‍छा है।

रेट्रो मोड में ले जाती है अक्षता जब वह कहती है – ”क्रॉसवर्ड पज़ल्‍स से उलझो, सुडोकू में दिमाग लगाओ, किसी थ्रिलर के प्‍लॉट के संग रोमांचक लिटरेरी सफर पर निकल जाओ, या अपना वर्चुअल ऑफिस सजा लो, टू-डू-लिस्‍ट निपटाओ, थोड़ा सुस्‍ताओ, कुछ थम जाओ, धीमे-धीमे किताबों के पन्‍नों से होते हुए दूसरी दुनिया में टहल आओ …… दुनिया में इतनी तेज रफ्तार से सब कुछ बदल रहा है कि जब तक हम कुछ समझ पाते हैं, तब तक वो बदलने के कगार पर होता है। इस बेसिर-पैर की गला-काट स्‍पर्धा से दूर, तमाम क्‍लेशों और आफतों से दूर निकल आने का निमंत्रण देती हैं किताबें। मैं कैफे बोका के जरिए जवानों, प्रौढ़ों और बुजुर्गों को किताबों की उंगली थामकर कहीं दूर निकल पड़ने का आमंत्रण देती हूं।”

 

कैफे बोका

करीब दो हजार किताबें

समय- सवेरे 11 बजे से रात 8 बजे तक

₹50 प्रति तीन घंटे/प्रति व्‍यक्ति

संपर्क- सलोनी, 759, एफ.सी. रोड, पुणे 411004 (महाराष्‍ट्र)

वेबसाइट-  http://bokabookcafe.in/


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

The post पुणे की यह छात्रा युवाओं को ले जा रही है नेटफ्लिक्‍स से किताबों की दुनिया में appeared first on The Better India - Hindi.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3563


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>