पिछले कुछ सालों से देश की कई ग्राम पंचायत बदलाव की इबारत लिख रही हैं। एक आदर्श और स्मार्ट गाँव बनने की जो कवायद गुजरात के पुंसरी गाँव से शुरू हुई थी, वह देश के कई और गांवों तक जा पहुंची है। इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश के हसुड़ी औसानपुर गाँव, गुजरात के जेठीपुरा और दरामली गाँव, राजस्थान के घमुड़वाली गाँव और छत्तीसगढ़ के सपोस गाँव जैसे कुछ नाम शामिल है।
इन गांवों में हुए विकास कार्यों के चलते यहाँ की ग्राम पंचायतों का नाम न सिर्फ़ देश में, बल्कि विदेशों तक पहुँच गया है। सबसे अच्छी बात यह है कि इन गांवों की बदली हुई तस्वीर, यहाँ के लोगों की मेहनत और लगन का परिणाम है। इन गाँव वालों ने अपने गाँव के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझी और अपने गाँव को स्मार्ट गांवों की फ़ेहरिस्त में ला खड़ा किया।
आज हम ऐसे ही एक और गाँव के बारे में बता रहे हैं, जहाँ की ग्राम पंचायत और गाँव वालों ने अपने हित को परे रखकर गाँव के हित के लिए काम किया है। उनकी पहल का नतीजा यह है कि आज इस गाँव में पानी की एक-एक बूंद बचाई जा रही है।
हम बात कर रहे हैं पंजाब के मोंगा जिले में स्थित गाँव रणसिह कलां की। एक वक़्त था जब इस गाँव में जगह-जगह कचरे के ढेर लगे होते थे, सड़कें नालियों के गंदे पानी से लबालब भर जाती थी और भूजल स्तर काफ़ी नीचे होने से खेतों की सिंचाई के लिए पानी की कमी होने लगी थी। लेकिन साल 2013 के बाद यह स्थिति बदल गई।
दूसरी बार गाँव के सरपंच चुने गए 29 वर्षीय प्रीत इंदरपाल ने बताया, “साल 2013 में मैं पहली बार गाँव का सरपंच बना, क्योंकि मुझे अपने गाँव के लिए कुछ करना था। मैं चाहता था कि हमारा गाँव भी एकदम साफ़-सुथरा व हरा-भरा हो और इसके लिए मैंने अपने स्तर पर ही छोटे-छोटे कदम उठाने शुरू कर दिए।”

अपने गाँव के लिए कुछ करने की प्रीत की भावना इस कदर थी कि वे कनाड़ा से भी वापस आ गए। साल 2010 में अपनी ग्रेजुएशन के बाद प्रीत कनाड़ा गए थे और वहां की साफ़-सफाई और सिस्टम देखकर एकदम दंग ही रह गए। प्रीत बताते हैं कि पंजाब के हर युवा की तरह उन्हें भी हमेशा से कनाड़ा जाने का मन था। लेकिन जब वे वहां पहुंचे और उन्होंने कनाड़ा की खूबसूरती को देखा तो उन्हें लगा कि ये खूबसूरती हमारे अपने पिंड/गाँव में क्यों नहीं हो सकती?
“इसका जवाब तो सीधा सा था जी कि लोग समझदार हैं, अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं। इसलिए देश भी खूबसूरत है। बस अपने गाँव और अपने देश के लिए कुछ करने की चाह मुझे वापस ले आई। गाँव लौटकर मैंने सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत गया,” प्रीत ने बताया।
उन्होंने सरपंच बनते ही सबसे पहले स्वच्छता पर काम करना शुरू किया। गाँव के युवाओं को ग्राम पंचायत से जोड़ा और फिर महीने में चार बार, सभी के साथ मिलकर गाँव की साफ़-सफाई करना शुरू किया। उनके लिए गाँव की सड़कों को झाड़ू मारना, कचरा इकट्ठा करके एक जगह जमा करना और प्रबंधन के लिए भेजना तो भले ही आसान था, पर उनके सामने जो समस्या थी वह थी ओवरफ्लो नालियां और सड़कों पर भरा गंदा पानी।
जाहिर सी बात है, गांवों में सीवरेज सिस्टम तो होता नहीं है, ऐसे में घरों से निकलने वाला पानी नालियों में जमा होता था। फिर नालियों में कूड़ा-कर्कट भी जाता था तो इस वजह से नालियां जाम हो जाती थी और पानी ओवरफ्लो हो कर सड़कों पर आ जाता था। इसलिए ग्राम पंचायत ने पूरे गाँव में सीवरेज सिस्टम डालने का निर्णय किया।

प्रीत ने बताया कि सीवरेज सिस्टम डालने का प्लान तो कर लिया, लेकिन वे जानते थे कि सरकार से जो फंड ग्राम पंचायत को मिलता है, वह इस काम के लिए बहुत ही कम है। ऐसे में, उन्होंने सामुदायिक स्तर पर काम किया और गाँव के लोगों से चंदा माँगा।
“जब आप कुछ अच्छा करने की कोशिश करते हैं तो अक्सर लोग पहले आप पर हंसते हैं, आपका विरोध करते हैं। लेकिन अगर आप अपनी कोशिशों में लगे रहें तो लोग आपकी सुनेंगे और आपका साथ भी देंगे। फिर जब आप कामयाब होते हैं तो आप पर हंसने वाले लोग ही आपकी तारीफ़ करते हैं। बस हमारे इस काम में भी कुछ ऐसा ही हुआ,” प्रीत ने कहा।
गाँव के लोगों ने शुरू में ग्राम पंचायत के इस सुझाव पर कोई गौर नहीं किया। कुछ लोग तो प्रीत को पागल तक कहते थे कि इस काम के लिए इतने पैसे कहाँ से लाएगा? लेकिन प्रीत पीछे नहीं हटे और फिर गाँव के ही कुछ एनआरआई लोगों से उन्हें मदद मिली। एक से दो, दो से तीन, तीन से पांच और इस तरह करते-करते पूरे गाँव के लोगों ने 100 रुपए से लेकर 1 लाख रुपए तक चंदा देकर ग्राम पंचायत की मदद की।
जब पर्याप्त पैसे इकट्ठे हो गए तो सबसे पहले गाँव में सीवरेज लाइन पड़ी और फिर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगवाया गया। आज गाँव में हर दिन 4 लाख लीटर गन्दा पानी साफ़ किया जा रहा है।

ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुँचने से पहले, गंदा पानी तीन कुओं में जाता है, पहले कुएँ में सॉलिड वेस्ट इसमें से अलग किया जाता है। दूसरे कुएँ में तेल, शैम्पू, साबुन आदि की गंदगी को इसमें से फिल्टर करते हैं और फिर तीसरे कुएँ में पानी के लेवल को बराबर करते हैं।
जब पानी से ये सभी अशुद्धियाँ हट जाती हैं तो फिर इसे तीन तालाबों में छोड़ा जाता है। इन तालाबों में ख़ास बैक्टीरिया, मछली और कछुए होते हैं, जो कि पानी में बचीकुची अशुद्धि को दूर करते हैं। ये तीनों तालाब ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़े हुए हैं, इनमें से होते हुए पानी आखिर में यहाँ पहुँचता है और फिर इसमें ट्रीट हुए पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
प्रीत बताते हैं कि रणसिह कलां देश का पहला गाँव है, जो खुद अपने पानी को इस तरह ट्रीट करके खेती के लिए इस्तेमाल कर रहा है और उन्हें इस बात पर गर्व है। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए गाँव ने लगभग 5 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इस पूरी रकम में 20% सरकार का और 80% गाँव के लोगों का योगदान है।
दिलचस्प बात यह है कि इस काम के लिए ग्रामीणों ने न सिर्फ़ आर्थिक दान दिया है बल्कि श्रमदान भी किया है। गाँव के युवा और बुजुर्ग, दोनों ही पीढ़ियों ने इस काम में भागीदारी निभाई है। प्रीत का कहना है कि गाँव के इस श्रमदान के चलते उन्होंने लेबर कार्य के 30 लाख रुपए से भी ज़्यादा बचाए हैं।
गाँव की सभी नालियों को अंडरग्राउंड करके, सड़कों को इंटरलॉक टाइल्स लगाकर पक्का कर दिया गया है। इसके अलावा, गाँव के डंपयार्ड को आज एक खूबसूरत पार्क की शक्ल दे दी गई है। यहाँ गाँव के लोग सैर के लिए आते हैं और बच्चों के लिए खेलने की अच्छी जगह भी हो गई है।
प्रीत बताते हैं कि कचरा-प्रबंधन पर काम करते हुए, अब गाँव में गीले और सूखे कचरे को अलग इकट्ठा किया जाता है। गीले कचरे को खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी तरह, गाँव के पुराने सूख चुके और कचरे से भरे तालाब को भी श्रमदान करके गाँव वालों ने साफ़-सुथरा कर दिया है, जिसमें वे बारिश का पानी इकट्ठा करके, वर्षाजल संचयन पर भी कार्य कर रहे हैं।
गाँव के सरकारी प्राथमिक स्कूल की दशा पर भी ग्राम पंचायत ने काम किया है और इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारा है। साथ ही, गाँव के पढ़े-लिखे युवाओं से भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए आग्रह किया जाता है। इतना ही नहीं, सरपंच भी खुद हर रोज़ स्कूल में बच्चों की एक क्लास लेते हैं।

गाँव के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्राम पंचायत ने महिलाओं के 10 स्वयं सहायता समूह बनाए हैं और किसानों के लिए भी एक सहकारी समिति बनाई है। अब वे गाँव में एक ऐसा महिला बैंक बनाना चाहते हैं, जो कि पूर्णतः महिला कर्मचारियों द्वारा ही चलाया जाए।
“धीरे-धीरे हमारी कोशिश गाँव में ही रोज़गार के साधन लाने की है, ताकि हमारे गाँव से कोई भी अपने मन में शहर या फिर कनाड़ा जाने का ख्याल न लाए, उन्हें उनका कनाड़ा यहीं, गाँव में ही मिल जाए। इसके लिए हम सब मिलकर काम कर रहे हैं। अंत में मैं बस यही कहूँगा कि पानी की एक-एक बूंद बचाइए, क्योंकि अगर पानी रहेगा तभी मानव जीवन रहेगा,” प्रीत ने अपने संदेश में कहा।
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हम उम्मीद करते हैं कि रणसिह कलां गाँव की तरक्की की दास्ताँ पूरे देश में फैले और यह सबके लिए प्रेरणास्त्रोत बने!
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