हर साल भारत में 620 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है और इस पूरे कचरे का 60% से भी कम भाग इकट्ठा किया जाता है। इसमें सिर्फ 15% कचरा आगे प्रोसेस और ट्रीटमेंट के लिए जाता है। बचा हुआ कचरा या तो लैंडफिल में जाता है या फिर अन्य प्राकृतिक साधन जैसे नदी, नालों और समुद्र में। सबसे हैरत की बात यह है कि हम सब कचरा-कचरा चिल्लाते हैं कि यहां सफाई नहीं हुई, नगर निगम काम नहीं कर रहा है। लेकिन दो पल ठहरकर यह नहीं सोचते कि यह सब कचरा हम खुद पैदा कर रहे हैं।
कचरे की इस समस्या को हम पर्यावरण के लिए सुविधा भी बना सकते हैं, ज़रूरत है तो सिर्फ एक कोशिश की।
एक कोशिश जो राजस्थान के भिवाड़ी में आशियाना उत्सव सोसाइटी के लोग कर रहे हैं और अपने गीले कचरे से खाद बना रहे हैं। यही खाद सोसाइटी के गार्डन और लोगों के अपने घरों के पेड़-पौधों को स्वस्थ रखने में इस्तेमाल हो रही है।
सिर्फ राजस्थान ही नहीं बल्कि दिल्ली के ईस्ट ऑफ़ कैलाश में गंगा पार्क के लोग भी अपने घरों के गीले कचरे से खाद बना रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि यह पहल सामुदायिक स्तर पर हो रही है। मतलब सिर्फ एक-दो लोग या फिर घर नहीं बल्कि पूरे के पूरे ब्लॉक और कॉलोनी मिलकर यह कर रही हैं।
घरों के कचरे को अलग-अलग करके रखना और गीले कचरे से खाद बनाने की इस पहल का श्रेय जाता है, 58 वर्षीय अंजना मेहता को। सोशियोलॉजी और फिर सोशल वर्क में अपनी पढ़ाई पूरी करने वाली अंजना ने लगभग 20 सालों तक अलग-अलग संगठनों के साथ कचरा-प्रबंधन के क्षेत्र में काम किया।
उन्होंने बताया कि अपने काम के सिलसिले में उन्हें अलग-अलग राज्यों और शहरों में ट्रैवल किया है। उन्होंने लोगों के रहन-सहन और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को बहुत ही करीब से समझा है। यही वजह है कि पिछले दो-तीन दशकों में उन्होंने अपने और अपने परिवार के लाइफस्टाइल को सस्टेनेबल बनाने पर जोर दिया।

“पिछले दस सालों से मैं कोई प्रोफेशनल काम नहीं कर रही हूँ। अब मैं उन मुद्दों पर काम करती हूँ जिनका मुझे लगता है कि हल होना ज़रूरी है जैसे कि यह कचरे की समस्या। मैं अपने घर में तो पिछले 20 सालों से गीला और सूखा कचरा अलग करके, गीले कचरे से खाद बनाने की कोशिश करती रही हूँ। हालांकि, मुझे खाद बनाने में सफलता 3- 4 साल पहले मिली है। पहले हम दिल्ली में रहते थे और अब भिवाड़ी में रह रहे हैं। दिल्ली जाना होता है अभी भी, लेकिन ज़्यादातर समय भिवाड़ी में बीतता है। मैं कहीं भी रहूं लेकिन मेरी कोशिश यही रही कि अपना रहन-सहन पर्यावरण के अनुकूल रखूं,” उन्होंने कहा।
अंजना बताती हैं कि भिवाड़ी में उनकी मुलाक़ात प्रोफेसर राम प्रकाश से हुई, जिन्होंने IIT दिल्ली से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की और उसके बाद कई वर्षों तक इंडस्ट्री में काम किया। राम प्रकाश ने सामुदायिक स्तर पर खाद बनाने का एक आसान-सा तरीका बनाया है। अंजना हमेशा से ही घर में खाद बनातीं थीं। राम प्रकाश के संपर्क में आने के बाद उन्होंने न सिर्फ उनके तरीके को सीखा बल्कि उनके साथ मिलकर अपनी सोसाइटी के लोगों को भी जागरूक किया।
दो तरह से बना सकते हैं खाद:
1. घर में बाल्टी में खाद बनाना
2. सामुदायिक/सोसाइटी स्तर पर ड्रम लगाकर खाद बनाना
राम प्रकाश ने दोनों तरह से खाद बनाने के लिए सिस्टम बनाए हैं। घर में खाद बनाने के लिए उनकी होम कम्पोस्टिंग किट है, जिसमें वह एक 20 लीटर की बाल्टी लेते हैं और इसके चारों ओर और नीचे तले में छोटे-छोटे छेद कर देते हैं। वो प्रक्रिया समझाते हुए बताते हैं कि आप इसे अपने घर की ऐसी किसी जगह पर रख दीजिए जहां नमी न हो और न ही बारिश में यह भीगे।
अब इसमें अपना गीला कचरा डालिए और साथ ही, थोड़ा-सा कम्पोस्टिंग मिक्स यानी कि कोकोपीट पाउडर। जब एक बाल्टी भर जाए तो आप दूसरी बाल्टी में गीला कचरा डालना शुरू करें। पहली बाल्टी के मिक्स को आप हर दिन ऊपर-नीचे करते रहें ताकि इसमें बदबू न बनें और न ही कीड़े पड़ें। 20 से 30 दिनों में आपकी खाद बनकर तैयार हो जाएगी।
भिवाड़ी में लगभग 150 परिवार इस तरीके से खाद बना रहे हैं। अंजना कहतीं हैं,
“निजी स्तर पर खाद बनना उनके लिए सही है, जिनके घरों में पेड़-पौधे हैं। लेकिन ज़रूरी नहीं कि हर कोई गार्डनिंग का शौक़ीन हो या फिर उनके घर में पेड़-पौधें हों। ऐसे लोग सोचते हैं कि हम खाद का क्या करेंगे। इसलिए सबसे अच्छा तरीका सोसाइटी स्तर पर खाद बनाना है। इससे गीले कचरे का भी प्रबंधन हो जाएगा और खाद को भी सामूहिक स्तर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा।”
वह आगे बताती हैं कि उन्होंने अपनी सोसाइटी में घर-घर जाकर लोगों को इस अभियान से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। जब सोसाइटी के लोग तैयार हो गए तो उन्होंने फैब्रीकेटर से कहकर ड्रम बनवाए। फ़िलहाल उनकी सोसाइटी में 3 ब्लॉक्स के गीले कचरे से खाद बन रही है। भिवाड़ी के अलावा अंजना इस पहल को दिल्ली तक पहुंचाने में कामयाब रहीं हैं।

सबसे पहले आप दो ड्रम का सिस्टम अपने यहाँ लगवाइए। इसमें बहुत खर्च नहीं आता है, कॉलोनी के लोग खुद चंदा इकट्ठा करके अपने यहाँ यह एरोबिक ड्रम कम्पोस्टिंग शुरू कर सकते हैं। ये ड्रम ऐसे लगाए जाएं कि इन्हें घुमाना आसान हो। साथ ही, ड्रम के ढक्कन को ताले से बंद किया जा सके और इन ड्रम्स के नीचे तले में और चारों तरफ छोटे-छोटे छेद करें। इसके बाद, आप इसमें रेग्युलर गीला कचरा डालें और जितना कचरा डालें उसका 5% कम्पोस्टिंग मिक्स मिलाएं।
गीला कचरा और कॉस्टिंग मिक्स डालकर ड्रम का ताला लगा दें और इसे 5 बार घुमाएं। हर दिन यह प्रक्रिया दोहराएं, जब तक कि ड्रम भर न जाएं। एक ड्रम के भर जाने पर आप दूसरे ड्रम में कचरा डालना शुरू कर सकते हैं। लेकिन पहले ड्रम को रेग्युलर तौर पर हर दिन 5 बार घुमाते रहें। 40 दिन बाद आप पहले ड्रम को खोलें और इसमें से अपनी खाद बाहर निकाल लें। इसके बाद, आप फिर से इस ड्रम में कचरा डालना शुरू कर सकते हैं।

अंजना बताती हैं कि इस प्रक्रिया से दिल्ली के ईस्ट ऑफ़ कैलाश में हर महीने लगभग हज़ार किलो गीला कचरा प्रोसेस होकर 200 किलो जैविक खाद में तब्दील हो रहा है। सबसे अच्छी बात यह है कि इस काम के लिए वे न तो नगर निगम पर निर्भर हैं और न ही बाहर के किसी संगठन पर।
“यह प्रक्रिया सुनने में बहुत आसान है कि ड्रम लगा दो और गीला कचरा डालो, खाद बन जाएगी। लेकिन इसे लोगों की जीवनशैली का हिस्सा बनाना बहुत ही मुश्किल है। अगर सिर्फ ड्रम लगाने से या फिर गीला-सूखा कचरा अलग रखने के लिए डस्टबिन लगाने से समस्या हल हो जाती तो सरकार को बार-बार नए अभियान न चलाने पड़ते,” उन्होंने आगे कहा।

4. Spin this drum 5 times- repeat this process for 30- 40 days
कचरे के सही प्रबंधन को लोगों की जीवन शैली में शामिल करने के लिए हमें एक सामाजिक ढांचा तैयार करना होगा और यह एक या दो बार में मुमकिन नहीं है। बार-बार लगातार कोशिश करनी होगी। भिवाड़ी की उत्सव सोसाइटी और दिल्ली के ईस्ट ऑफ़ कैलाश में यह प्रक्रिया शुरू कराने के बाद, अंजना और उनकी टीम अब दिल्ली के अन्य इलाकों की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि अलग-अलग सोसाइटी के लोग उनसे अपने यहाँ आकर ट्रेनिंग देने के लिए कहते हैं।
“जब भी कोई हमें अपने यहाँ बुलाता है तो हम वहां सिर्फ ड्रम लगाकर और प्रक्रिया बताकर नहीं आ जाते हैं। हम वहां अलग-अलग स्टेप्स में तब तक काम करते हैं, जब तक कि वहां के लोगों की आदत में न आ जाए,” अंजना ने हंसते हुए बताया।

उन्होंने हमें बताया कि उनकी ट्रेनिंग के कई चरण हैं:
1. सबसे पहले उन्हें जिस कॉलोनी या सोसाइटी में बुलाया जाता है, वे वहां के कचरा उठाने वाले कर्मचारियों के बारे में जानकारी लेते हैं। उनका सुझाव होता है कि जो भी कर्मचारी सबसे ज्यादा सहयोगी है, सबसे पहले उससे बात की जाए। अंजना कहती हैं कि हैरत की बात यह है कि लोगों को अपने यहाँ से कचरा उठाने वालों के नाम तक नहीं पता होते हैं। जो हमारे घर की सफाई कर रहे हैं, हमारे गली-मोहल्लों को साफ़ रख रहे हैं, हम उन्हें ही जानना ज़रूरी नहीं समझते। इन लोगों को इनके काम का सही सम्मान देना हमारा कर्तव्य है।
2. अब जिस भी कर्मचारी का नाम सामने आया है, उससे पूछा जाता है कि वह किस-किस घर से कूड़ा-कचरा लेते हैं। जिन घरों से यह कर्मचारी कचरा उठाता है, सबसे पहले वे उन्हीं घरों में जाकर कचरा-प्रबंधन के बारे में बात करतें हैं। इन परिवारों को जागरूक करके, इनमें से ही कुछ लोगों को ‘कंपोस्ट वॉलंटियर्स’ के तौर पर चुना जाता है।
3. अब इन कंपोस्ट वॉलंटियर्स को सूखा और गीला कचरा अलग करने की ट्रेनिंग दी जाती है। इस ट्रेनिंग के बाद, यही कंपोस्ट वॉलंटियर्स घर-घर जाकर लोगों को यह प्रक्रिया समझाते हैं। साथ ही, कचरा उठाने वाले कर्मचारी को भी ट्रेनिंग दी जाती है कि गीला और सूखा कचरा कैसे अलग-अलग लेना है। शुरुआत के कुछ दिन कंपोस्ट वॉलंटियर्स इस कर्मचारी के साथ घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करवाते हैं और अगर किसी घर से उन्हें मिक्स कचरा मिल रहा है तो उन्हें टोका जाता है।

4. जब यह कचरा उठाने वाला यह सब लगातार देखता है तो उसे भी समझ में आ जाता है। धीरे-धीरे वह खुद लोगों को समझाने लगता है। अंजना बताती हैं कि जहाँ भी वे लोग काम करते हैं, वहां पर शुरू से ही व्हाट्सअप ग्रुप्स बना देते हैं। एक ग्रुप कंपोस्ट वॉलंटियर्स का होता है, जिसमें उन्हें ज़रूरी जानकारी भेजी जाती है और वो खुद कैसे अपने यहाँ काम कर रहे हैं, वह फोटो और वीडियो ग्रुप में भेजते हैं। इसके अलावा, यदि कचरा उठाने वाले कर्मचारी व्हाट्सअप पर हैं तो उन्हें भी एक ग्रुप में जोड़ा जाता है ताकि उनके ज्ञानवर्धन के लिए भी ज़रूरी वीडियो और अन्य जानकारी भेजी जा सकें।
5. जब 10 में से 7 घरों से कूड़ा अलग-अलग करके मिलने लगता है, तब उस सोसाइटी में ड्रम लगवाए जाते हैं। ड्रम लगने के बाद, अंजना और उनकी टीम एक बार फिर वहां पहुंचकर कूड़ा लेने वाले कर्मचारी और कंपोस्ट वॉलंटियर्स को प्रक्रिया समझातीं हैं। इस प्रक्रिया में गीला कचरा इकट्ठा लाकर ड्रम में डालना, कम्पोस्टिंग मिक्स मिलाना, ड्रम का ताला लगा देना और फिर ड्रम को पांच बार घुमाना होता है। हर दिन एक-एक कंपोस्ट वॉलंटियर की ड्यूटी तय होती है कि वे कर्मचारी के काम को सुपरवाइज करें ताकि कोई गड़बड़ न हो।

6. जब इन ड्रम में से पहली बार खाद निकाली जाती है तो उसकी तस्वीरें और इन कंपोस्ट वॉलंटियर्स की सफलता की कहानी, कॉलोनी के दूसरे घरों से साझा की जाती है ताकि उन्हें भी प्रेरणा मिले।
अंजना बताती हैं कि ड्रम आदि लगवाने का खर्च सोसाइटी और कॉलोनी के लोग खुद चंदा इकट्ठा करके उठाते हैं। वह लोगों से यही कहतीं हैं कि हमारी एक ज़िम्मेदारी अपने समाज के प्रति भी होती है अगर हम इतने संपन्न हैं कि कुछ अच्छे के लिए अपना योगदान दे सकते हैं तो ज़रूर देना चाहिए। बेशक, अंजना मेहता और उनके साथियों की पहल काबिल-ए-तारीफ है। जहाँ लोग रिटायरमेंट के बाद आराम करने की सोचते हैं, वहीं ये लोग आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहतर वातावरण बनाने में जुटे हैं।
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है और आप अंजना मेहता से कोई सलाह लेना चाहते हैं या फिर अपने यहाँ सामुदायिक स्तर पर यह पहल करना चाहते हैं तो उनसे संपर्क करने के लिए 9560758389 पर व्हाट्सअप मैसेज कर सकते हैं या फिर ईमेल लिख सकते हैं!
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