कोविड-19 ने पूरी दुनिया को मानो अपने घुटनों पर ला दिया है। हर एक देश में, डॉक्टर, नर्स, अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी दिन-रात काम कर रहें हैं। ऐसा लगता है जैसे उनकी जंग वक़्त के साथ है और वे बस लोगों को बचाने में जुटे हैं।
अच्छी बात यह है कि वे इस लड़ाई में अकेले नहीं है। बहुत से लोग, कॉर्पोरेट, स्टार्टअप्स, उनकी मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ा रहें हैं।
ऐसा ही एक ग्रुप है, बोसॉन मशीन्स– मुंबई का एक 3डी प्रिंटिंग स्टार्टअप। इस स्टार्टअप को दो इंजीनियर भाई, अर्जुन और पार्थ पांचाल ने शुरू किया है। वे दोनों सोच ही रहे थे कि कैसे वे COVID-19 से इस लड़ाई में अपना योगदान दे सकते हैं कि जसलोक अस्पताल के डॉ. स्वप्निल पारिख ने उनसे संपर्क किया।

डॉ. पारिख ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट हूँ और इस साल की जनवरी से ही मैं कोरोना वायरस के बारे में पढ़ रहा हूँ। एक मेडिकल प्रोफेशनल के तौर पर मुझे पता था कि यह बीमारी पूरी दुनिया में बहुत तेजी से फैलेगी और इसलिए आकस्मिक योजनाएं ज़रूरी थीं।”
वह मुंबई स्थित ऐसा कोई संगठन ढूंढ रहे थे जो इस लड़ाई में योगदान देना चाहता हो और उनकी तलाश बोसॉन मशीन्स पर आकर रुकी।
अर्जुन ने बताया, “3डी प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करते हुए, हमने डॉ. पारिख के साथ मिलकर डॉक्टरों और नर्सों के इस्तेमाल के लिए फेस शील्ड बनाने का फैसला किया।” एक सप्ताह के भीतर, बोसॉन मशीन्स ने मुंबई के अस्पतालों में लगभग 5,000 फेस शील्ड की आपूर्ति की।
सबसे आगे लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों के लिए सही उपकरण:

फेस शील्ड डॉक्टरों के लिए N95 से ज्यादा उपयोगी है क्योंकि यह मुंह, आँख, नाक और ठोड़ी के साथ चेहरे के ज़्यादातर हिस्से को ढकती है।
अगर कोई इंफेक्टेड इंसान डॉक्टरों के पास छींके, खांसे, तब भी बोसॉन की प्लास्टिक फेस शील्ड उन्हें बचाती है। पार्थ बताते हैं, “हम तीन दिन अस्पताल गए, अलग-अलग डिज़ाइन पर काम किया और 5 से 8 डॉक्टरों के पैनल के साथ मिलकर फेस शील्ड का डिज़ाइन फाइनल किया। इसके बाद हमने 20-30 फेस शील्ड बनाना शुरू किया।”
“यह सुरक्षा उपकरण सिर्फ डॉक्टरों के लिए नहीं है। डॉक्टर से लकर सफाई कर्मचारी, सभी को पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर चाहिए। इसमें नाक और मुंह को ढकने के लिए मास्क, आँखों और दूसरे हिस्सों को ढकने के लिए फेस शील्ड, बालों के लिए एक कैप और एक गाउन की भी ज़रूरत होती है। बात COVID-19 जैसी भयानक बीमारी की हो तो हर किसी को पूरी सुरक्षा चाहिए,” डॉ. पारिख ने कहा।
उन्होंने हमें यह भी बताया कि कैसे पहले डिज़ाइन और प्रोटोटाइप से लेकर फाइनल डिज़ाइन के उत्पादन का काम सिर्फ 7 दिनों में हुआ।
“मास्क पीवीसी से बना है और चेहरे, कानों और ठोड़ी से आगे सीने तक आता है। यह डॉक्टरों को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है। उपयोग के बाद प्लास्टिक को डिस्कार्ड किया जाता है। लेकिन ऐसे मेडिकल प्रोफेशनल जो मरीज़ों के संपर्क में नहीं आ रहे हैं, वे प्लास्टिक को स्टरलाइज़ करके फिर से उपयोग कर सकते हैं,” अर्जुन ने बताया।
COVID-19 फेस शील्ड की कीमत और उत्पादन:

बोसॉन मशीन्स की टीम छोटी है और फ़िलहाल 14 लोग फेस शील्ड बना रहे हैं। अर्जुन कहते हैं, “यह स्टार्टअप तीन साल पहले शुरू हुआ था और यह पहली बार है जब हम मेडिकल क्षेत्र में कुछ कर रहें हैं। हमें बहुत सावधानी बरतनी है क्योंकि हमें पता है कि यह स्थिति बहुत नाजुक है। हमारे पास 60-70 ऑटोमेटेड मशीनें हैं। हर मशीन को एक फेस शील्ड तैयार करने के लिए दो घंटे चाहिए। फ़िलहाल, हमारी क्षमता एक दिन में 500 से 800 पीस तैयार करने की है।”
पर वक़्त अपनी गति से बढ़ रह है और हर दिन हजारों डॉक्टरों और नर्सों को ऐसे उपकरणों की आवश्यकता होती है। अब तक, भारत में 1,397 कोरोनावायरस के मामलों की पुष्टि की गई है और दुर्भाग्य से, इस बीमारी के कम होने का कोई संकेत नहीं मिला है। अफसोस की बात है कि मुंबई के अस्पतालों और भारत भर में मेडिकल प्रोफेशनल्स को N95 और सर्जिकल मास्क की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
इस मुश्किल घड़ी में भारत यह खतरा नहीं उठा सकता कि डॉक्टर्स ही इस वायरस से संक्रमित हो जाएं।
“जसलोक अस्पताल ने, जहाँ मैंने प्रशिक्षण लिया था, मुझसे 2000 फेस शील्ड लेने के लिए संपर्क किया था। बाद में, कस्तूरबा अस्पताल को भी इसकी आवश्यकता पड़ी और बोसॉन अच्छा काम कर रहें हैं,” डॉ. पारिख कहते हैं।
मुंबई नगर निगम ने भी परियोजना में साथ देने का फैसला किया है और जल्द ही, बोसॉन मशीन्स के लिए एक बड़ा कारखाना खुल सकता है जहां अधिक मशीनें और लोग काम कर सकते हैं।
अर्जुन कहते हैं, “वे चाहते हैं कि हम हर दिन 8000 फेस शील्ड बनाएं। हम सुनिश्चित करते हैं कि मशीनों को सैनीटाइज़ किया जाए और हमारे कर्मचारी मास्क और दस्ताने पहनें। बड़े सेट-अप में भी हम बचाव की यह प्रक्रिया जारी रखेंगे।”
लागत के बारे में पूछे जाने पर, वह बताते हैं कि फ़िलहाल, निजी अस्पतालों को 150-200 रुपये प्रति शीट की दर से शील्ड की बिक्री की जा रही है। प्लास्टिक शीट अलग से 40 रुपये में बेची जाती हैं। हालांकि, वे सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में शील्ड प्रदान कर रहें हैं।
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अंत में डॉ. पारिख सिर्फ इतना कहते हैं कि हम सबको सुरक्षित रहने की ज़रूरत है। हमें अर्जुन और पार्थ जैसे लोगों का साथ चाहिए, जो मेडिकल क्षेत्र से नहीं हैं पर फिर भी मदद कर रहें हैं। सब मिलकर काम करेंगे तो हम इस मुश्किल वक़्त को पार कर लेंगे। हम सबका प्रयास भारत को इस स्थिति से निकाल सकता है।
इस स्टार्टअप के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए वेबसाइट देखें ।
मूल लेख: तन्वी पटेल
संपादन – अर्चना गुप्ता
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