तमिलनाडु में करूर के रहने वाले 64 वर्षीय पी. मनोहरण ने 36 साल तक तमिलनाडु पुलिस विभाग में अपनी सेवाएं दीं। पुलिस अफसर के रूप में देश के लिए अपना कर्तव्य पूरा करने के बाद, मनोहरण अब एक और अभियान में जुटे हैं और वो है लोगों को जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर ले जाना।
अक्सर लोगों के लिए रिटायरमेंट, जीवन की बड़ी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर आराम करने का सिग्नल होता है। लेकिन मनोहरण ने अपनी रिटायरमेंट के बाद अपने सबसे बड़े पैशन को जीने की ठानी। सबसे अच्छी बात यह है कि वह सिर्फ अपने लिए जैविक खेती नहीं कर रहें हैं बल्कि बच्चों से लेकर बड़ों तक- हर उम्र के लोगों को जैविक खेती के गुर सिखा रहें हैं।
वह बताते हैं, “मैं एक किसान परिवार से हूँ और बचपन से ही मुझे खेती करना अच्छा लगता है। स्कूल में था तब अपने पिता के साथ मैं खेतों पर जाया करता था। ड्यूटी के दौरान मुझे जब भी समय मिलता, मैं अपनें खेतों में जाकर काम करता।”
21 साल की उम्र में मनोहरण ने पुलिस की नौकरी जॉइन की। लेकिन तब भी खेती के लिए उनका जुनून कम नहीं हुआ। जब भी उन्हें वक़्त मिलता, अपने पिता का हाथ बंटाते। उन्हें जैविक और प्राकृतिक खेती ने हमेशा ही प्रेरित किया। इसलिए उन्होंने अपने फार्म में भी साल 1980 से ही जैविक खेती शुरू कर दी थी।

साल 2014, जनवरी में उनकी रिटायरमेंट हुई और उसके बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह से जैविक खेती के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी ग्रैजुएशन तो फार्म टेक्नोलॉजी में की ही थी और फिर सुभाष पालेकर की एक फार्मिंग वर्कशॉप भी की।
मनोहरण बताते हैं कि वह अपनी 6 एकड़ की ज़मीन पर अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे और फल-सब्ज़ियाँ उगा रहें हैं। इसके अलावा, उनका यह फार्म जैविक खेती की ट्रेनिंग के लिए एक सेंटर भी है। साथ ही, वह जैविक खाद, हर्बल पेस्टीसाइड भी खुद बनाते हैं और बहुत से किसान उनसे यह खाद और पेस्टीसाइड खरीदते हैं।
जैविक खाद बनाने के लिए मनोहरण गाय के गोबर और एग्रो वेस्ट का इस्तेमाल करते हैं। वहीं अदरक, लहसुन और हरी मिर्च का इस्तेमाल करके हर्बल पेस्टीसाइड बनाते हैं। इससे उन्हें अपनी फसल से कीटों को दूर रखने के लिए किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता।
मनोहरण मल्टी-क्रॉपिंग यानी कि अलग-अलग तरह की फसलें लगाकर खेती करते हैं। उनके फार्म में आपको 20 साल से भी ज्यादा पुराने आंवला, सागौन और ताड़ के पेड़ मिल जाएंगे। इनके साथ-साथ उनके यहाँ आम, अमरुद और पपीता के भी 100 से ज्यादा पेड़ हैं। 18 किस्म के आम उनके फार्म में उगते हैं।

सब्ज़ियों की बात करें तो, मनोहरण देशी लौकी की 31 किस्म, भिंडी की 11 किस्म और सहजन की 9 किस्में उगा रहे हैं। वह टमाटर का भी अच्छा उत्पादन कर रहें हैं। उनके मुताबिक, इस बार उन्होंने एक एकड़ में 70 टन टमाटर की फसल ली। इनके साथ-साथ उनके फार्म में पालक और धनिया जैसी सब्ज़ियाँ भी उगाई जाती हैं।
खेती के लिए जैविक और प्राकृतिक तरीके अपनाने के साथ-साथ उनका उद्देश्य पानी का संरक्षण भी है। इसके लिए, वह सिंचाई के लिए ऐसी तकनीकें इस्तेमाल करते हैं, जिसमें कम से कम पानी में पूरे फार्म की सिंचाई हो जाए।
वह बताते हैं कि उनके फार्म में मल्चिंग तकनीक, ड्रिप इरिगेशन और रेनगन सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है।
मल्चिंग तकनीक से खेत में वाष्पीकरण को रोककर पानी की नमी को बनाए रखा जाता है। यह तकनीक खेत में मिट्टी के कटाव को भी रोकती है और फसल में खरपतवार भी नहीं होती।

सबसे पहले आप खेत को फसल के लिए तैयार करें और फिर खेत में क्यारियां बना लें। फिर इन क्यारियों में ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन को बिछा लें। इसके बाद, 25 से 30 माइक्रोन प्लास्टिक मल्च फिल्म उचित तरीके से बिछा दें और इस फिल्म के दोनों किनारों को मिट्टी की परत से दबा दें। इस फिल्म पर गोलाई में समान दूरी पर छेद करें और अब इन छेदों में आप बीज या फिर तैयार पौध लगा सकते हैं।
वहीं दूसरी तरह, रेनगन सिस्टम, सिंचाई की इनोवेटिव तकनीक है। यह 20 से 60 मीटर की दूरी तक प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई करती है। इसमें कम पानी से अधिक क्षेत्र को सींचा जा सकता है। इसे एक स्टैंड के सहारे खेत की सिंचाई वाले भाग में लगाया जाता है। इसका दूसरा सिरा किसी पानी के स्त्रोत जैसे पंप या फिर पाइप से जुड़ा होता है।
रेनगन में पानी का दबाव बढ़ते ही इसके ऊपरी भाग में लगे फव्वारे से चारों ओर बारिश होने लगती है और इससे सभी फसलों की कम समय और कम पानी में सिंचाई हो जाती है। सरकार द्वारा रेनगन सिस्टम लगवाने के लिए 50 से 80% तक का अनुदान भी दिया जा रहा है।

जैविक खेती पर मनोहरण के काम को देखते हुए, उन्हें तमिलनाडु कृषि विभाग ने किसान उत्पादक संगठनों की ज़िम्मेदारी भी दी है। फ़िलहाल, वह करूर मोरिंगा एंड वेजिटेबल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। इस उत्पादक संगठन से लगभग 450 किसान जुड़े हुए हैं।
इन सभी किसानों को जैविक खेती के गुर सिखाने से लेकर उनकी उपज का उन्हें सही दाम मिले, यह भी मनोहरण सुनिश्चित करते हैं। इसलिए उन्होंने सीधा ग्राहकों तक पहुँचने का तरीका अपनाया है। अलग-अलग जैविक मेलों के आयोजनों में स्टॉल लगाने से लेकर लोगों के घरों तक फल-सब्जियां पहुँचने तक, वह सभी कुछ करते हैं।
“हम ग्राहकों को सीधा सब्ज़ियाँ पहुंचाते हैं। बहुत बार लोग मेरे फार्म में आकर सब्ज़ियाँ ले जाते हैं। कोयम्बटूर के 3 अपार्टमेंट्स में भी हर रविवार हमारे यहाँ से ही ताज़ा फल और सब्ज़ियाँ जाती हैं,” उन्होंने कहा।
इसके साथ, मनोहरण अलग-अलग जगह जैविक खेती पर सेमिनार और वर्कशॉप करते हैं। स्कूल और कॉलेज के बच्चों को उनके फार्म का दौरा करवाया जाता है। अब तक 2 हज़ार से भी ज्यादा बच्चे उनके फार्म का दौरा कर चुके हैं।
इसके अलावा, उन्होंने 500 से ज्यादा किसानों को जविक खेती की ट्रेनिंग दी है। इन किसानों में लगभग 40 किसान, उनके मार्गदर्शन में बैंगन की अच्छी खेती कर रहें हैं। मनोहरण, किसानों को अलग-अलग फसलों के बीज भी उपलब्ध कराते हैं।

इसके अलावा, मनोहरण लोगों को मुफ्त में पौधे बांटते हैं। उनका कहना है कि जितनी ज्यादा हरियाली होगी, उतना ही हमारी प्रकृति के लिए अच्छा है। उनका एक उद्देश्य अपने फार्म में मियावाकी पद्धति से जंगल लगाना भी है।
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अगर आप मनोहरण से संपर्क करना चाहते हैं तो उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं!
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