वो साल 1998 था, जब आदित्य सिंह अपने करियर के चरम पर थे और उन्होंने सबकुछ छोड़ने का फैसला लिया। उन्होंने राजस्थान में रणथंभौर टाइगर रिजर्व (RTR) से सटे एक अनोखे जंगलों वाले शहर सवाई माधोपुर में बसने का फैसला किया। ज़ाहिर तौर पर, उनके इस फैसले ने सबको चौंका दिया था।
ज़िंदगी के ऐसे मोड़ पर, इस फैसले को लेने के पीछे उनका मकसद केवल वन्यजीवों के प्रति प्रेम था और अब उनके लिए वापस लौटने की कोई संभावना नहीं थी।
वन्यजीवों के प्रति प्रेम की इस कहानी की शुरूआत साल 1984 में ही हो गयी थी। उसी साल आदित्य सिंह पहली बार एक पर्यटक के रूप में रणथंभौर टाइगर रिजर्व गए थे और उन्हें पहली बार अपनी आंखों से बाघ देखने का मौका मिला था। आदित्य के लिए यह जंगल और वन्य जीवन के साथ पहली नज़र में प्यार होने जैसा था। हालांकि, दिल्ली में उनकी ज़िंदगी बेहतर तरीके से चल रही थी लेकिन वो जंगलों के साथ अपने प्रेम को अनदेखा नहीं कर सके। उन्हें जब भी मौका मिलता, वह इस प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व का दौरा कर ही लेते।
आदित्य की पत्नी, पूनम सिंह पेशे से मूर्तिकार और फैशन डिज़ाइनर हैं। पूनम का जंगलों से प्रेम चार साल बाद शुरू हुआ। द बेटर इंडिया से बात करते हुए पूनम बताती हैं, “मैंने पहली बार रणथंभौर टाइगर रिजर्व का दौरा 1988 में किया था। सफारी के दौरान, मैंने प्रसिद्ध बाघिन ‘मचली’को देखा, जो अपने तीन शावकों के साथ खेल रही थी। मैं इस नज़ारे में इतनी मुग्ध हो गई कि मैं वहां से वापस ही नहीं आना चाहती थी। और फिर हम दोनों ने एक नई ज़िंदगी शुरू करने का फैसला किया।”
बाघों से प्रेम के लिए नौकरी छोड़ी

इस समय तक आदित्य दिल्ली में संचार मंत्रालय में अधिकारी थे। आदित्य ने नौकरी छोड़ी और रणथंभौर में एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर का काम शुरू किया। इस बीच, पूनम सिंह ने रणथंभौर बाग में एक टूरिस्ट लॉज शुरू किया, जहां आने वाले विज़िटर जंगल में रहने का एक अलग और शांत अनुभव ले सकते थे।
वे नेशनल पार्क की बाउंड्री के ठीक बाहर रहते थे। आदित्य ने ध्यान दिया कि उनके घर के पास के इलाके में कई बाघ आते-जाते थे। हालांकि यह मुख्य जंगल के बफर ज़ोन के बाहर था, शिकार की तलाश में जानवर यहां आया-जाया करते थे। स्थानीय ग्रामीणों और किसानों के मवेशी इन जंगली जानवरों के लिए आसान लक्ष्य थे, जिससे क्षेत्र में एक मानव-पशु संघर्ष जैसी स्थिति पैदा हो गई थी।
पूनम बताती हैं, “हमले होने की आशंका के कारण स्थानीय किसानों ने टाइगर रिजर्व से सटी अपनी जमीनों को बेचना शुरू कर दिया और तब हमें यह विचार आया कि क्यों न हम इस जमीन को खरीदकर, नेशनल फॉरेस्ट से सटे इस इलाके में बाघों के लिए एक सुरक्षित जगह तैयार कर लें।”
बाघों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बनाना
आदित्य और पूनम ने प्राकृतिक जंगल को पुनर्स्थापित करने की सोच के साथ किसानों से ज़मीन खरीदना शुरू किया। साल 2000 में, जब आदित्य बीबीसी के साथ एक वन्यजीव वृत्तचित्र पर काम कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि उनके द्वारा खरीदी गई ज़मीन पर एक बाघ घूम रहा है। इस नज़ारे ने उन्हें बाघों की रक्षा की दिशा में और ज़्यादा कुशलता से काम करने के संकल्प को मजबूत किया।
2000 से लेकर अब तक, इनके पास 35 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन हो चुकी है, जिसे सफलतापूर्वक ‘भदलाव (Bhadlav) टाइगर रिजर्व’ में बदल दिया गया है – जो आदर्श रूप से रणथंभौर अभयारण्य का पूरक अंश है।
पूनम बताती हैं, “हमें किसी अतिरिक्त प्रयास के लिए निवेश करने की ज़रूरत नहीं थी। हमने इसे प्रकृति पर छोड़ दिया। हमारी आंखों के सामने बंजर फैलाव से यह धीरे-धीरे एक सुंदर जंगल में बदल गया, जिसमें इसके जानवरों के लिए उनके अपने प्राकृतिक पानी के स्त्रोत भी थे। हमारा एकमात्र योगदान शायद हाल ही में बाहरी सीमाओं में बाड़ लगाना था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाघ अब मानव बस्तियों में नहीं जाएं।”

ग्रामीणों को भी अक्सर जंगली जानवरों द्वारा उनके खेत नष्ट कर देने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। पर अब सिंह दंपत्ति के हस्तक्षेप के साथ, किसानों ने जंगलों से दूर ज़मीन पर अच्छी तरह से खेती शुरू कर दिया है और इससे मानव-पशु संघर्षों की संभावना कम हो गई है।
बाघ संरक्षण में स्थानीय समुदाय को शामिल करना
इस खूबसूरत जंगल को बनाने में आदित्य और पूनम के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
एक समय था जब ग्रामीण जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने और उसे बेचने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते थे क्योंकि उनके पास जीवन यापन का यही एकमात्र साधन था। महीनों उनके साथ तालमेल बनाने और स्थानीय नेटवर्किंग के बाद, वे उन्हें वनों की कटाई रोकने और जंगल की देखभाल सहित वैकल्पिक व्यवसायों में शामिल होने के लिए मनाने में सफल रहे।
दरअसल, अब भदलाव में काम करने वाले फुल टाइम गार्ड स्थानीय गांव के हैं, जिन्हें आदित्य और पूनम द्वारा प्रशिक्षित और भर्ती किया गया था। ऐसे ही एक गार्ड सुमेर हैं जो पिछले दो दशकों से वहां बाघों की देखभाल कर रहे हैं। भदलाव के स्थानीय गांव से संबंधित होने के कारण उन्होंने सरकारी वन गार्ड और रेंज अधिकारियों को आते-जाते देखा जो बाघ जनगणना या किसी घायल जानवर के इलाज जैसे काम के लिए अक्सर रणथंभौर रिज़र्व का दौरा करते थे। वन्यजीवों से प्यार होने के कारण वह अक्सर उन अधिकारियों के साथ हो लेता था और इस तरह वह बाघ संरक्षण में एक विशेषज्ञ की तरह बड़ा हुआ।
सुमेर बताते हैं, “मैंने अपनी स्कूली शिक्षा के बाद से भदलाव जंगल में काम करना शुरू कर दिया। अपने कई साथी ग्रामीणों की तरह, मैंने भी आदित्य और पूनम जी को यह पूरा जंगल बनाते देखा है। उन्होंने शुरू में जंगल के प्रबंधन में मेरी मदद मांगी और मैं तब से यहां खुशी-खुशी काम कर रहा हूं।”
20 वर्षों में, सुमेर का बाघों के साथ कई बार आमना-सामना हुआ है, जो काफी रोमांचक रहा है। सुमेर ने बताया- “हाल ही में, हम निमित रूप से भदलाव का दौरा करने वाले तीन बाघों (रणथंभौर से नंबर 102, 68 और 95) का निरीक्षण कर रहे हैं। मैं हमेशा वन अधिकारियों को उनकी उपस्थिति के बारे में सूचित करने के लिए सतर्क रहता हूं और बाघों को मानव आवास से दूर रखने में मदद करता हूं।”
बाघों के लिए अपने प्यार को व्यक्त करते हुए सुमेर कहते हैं, “कभी-कभी, मुझे बाघों को किसी भी बाहरी खतरे से बचाने के लिए जंगल में रात बितानी पड़ती है। मैं यह भी सुनिश्चित करता हूं कि जंगल में पानी वाले गड्ढ़े, चिलचिलाती गर्मियों में भी हमेशा भरे रहें, ताकि जानवर हमेशा अपनी प्यास बुझा सकें। ”
गर्म मौसम में राहत
भदलाव जंगल रणनीतिक रूप से तीन घाटियों के जंक्शन पर स्थित है जहाँ वनस्पतियों और जीवों की जैव विविधता बेहतरीन है। पूनम कहती हैं, “बाघ स्वाभाविक रूप से क्षेत्रीय हैं, उन्हें आम तौर पर शांति के लिए खुले जगह की आवश्यकता होती है। रणथंभौर में अपनी बढ़ती आबादी के साथ, कई बाघ अक्सर भदलाव में आना पसंद करते हैं। ”
हालांकि भदलाव में अभी भी बाघ की आबादी ज़्यादा नहीं है, रणथंभौर के कई जानवर इस जंगल में गर्मी से राहत पाने आते हैं। दो पहले से मौजूद प्राकृतिक पानी के गड्ढों के साथ, आदित्य और पूनम ने कुछ छोटे पानी के तालाब बनाए हैं जो थके हुए बाघों और शावकों के लिए आरामगाह के रूप में काम करते हैं।
यहां तक कि राजस्थान के गर्मी के मौसम वे व्यक्तिगत रूप से ध्यान रखते हैं कि पानी के गड्ढ़े भरे रहें। वर्तमान में, भदलाव में चार से पांच बाघ नियमित रूप से देखे जाते हैं। बाघों के अलावा, जंगल में तेंदुए, नीलगाय, हिरणों की कई प्रजातियों, विदेशी सांपों और अन्य छोटे जानवरों और पक्षियां भी देखे जाते हैं।
स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक होने के बावजूद, भदलाव को कुछ नियमित रखरखाव की ज़रूरत है, जो ज्यादातर जीवित जानवरों को किसी भी नुकसान से बचाने के लिए ज़रूरी है। किसी भी प्रकार के अतिचार और अवैध शिकार गतिविधियों को रोकने के लिए केयरटेकर और वन विभाग के साथ मिलकर काम करते हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक पवित्रता को बनाए रखने के लिए, आदित्य और पूनम ने अपने टूरिस्ट लॉज से विज़िटरों को जंगल में आने-जाने पर सख्ती लगाई है।
पूनम कहती हैं,“बढ़ते मानव आवासों के साथ, बाघों को हमारी सबसे ज्यादा सुरक्षा की ज़रूरत है। भदलाव हमारे राष्ट्रीय पशु को बचाने के बड़े उद्देश्य की दिशा में एक छोटा सा प्रयास है।”
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