मानव तस्करी के खिलाफ अपनी आवाज उठाने वाली भारत की अग्रणी समाज सुधारक इंद्राणी सिन्हा का 22 अगस्त 2015 को 65 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उन्होंने अपनी संस्था संलाप के जरिए वंचित और कमजोर लोगों के लिए काम करते हुए मानव तस्करी की शिकार हजारों लड़कियों और बच्चों के जीवन में प्यार और सम्मान लौटाया और उन्हें सुरक्षित बाहर भी निकाला।
बार-बार धमकी मिलने के बावजूद उन्होंने अपना कदम पीछे नहीं खींचा। उनके असामयिक निधन को लगभग पांच साल हो गए। द बेटर इंडिया इस महान आत्मा को श्रद्धांजलि देता है।
संघर्ष से शुरु हुआ जीवन, लेकिन खोज निकाला अपना रास्ता
15 मार्च 1950 को कोलकाता में जन्मी इंद्राणी को समय से पहले ही बड़ा होना पड़ा। उनके पिता की स्थायी नौकरी नहीं थी। इसके कारण 17 साल की उम्र में इंद्राणी को घर चलाने के लिए अपनी पढ़ाई से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
23 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया और उसके एक वर्ष बाद उन्हें एक बेटा हुआ। दुर्भाग्य से उनकी शादी लंबे समय तक नहीं चली और इंद्राणी ने जल्द ही अपने युवा बेटे के साथ पति को भी छोड़ दिया।
उनके दूसरे पति पिनाकी रंजन सिन्हा जो अब संलाप के कार्यकारी निदेशक हैं, बताते हैं, “मैं 1979 में इंद्राणी से मिला। हम दोनों मेनोनाइट सेंट्रल कमेटी नामक एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी में काम करते थे। उस समय वह न केवल अपने बेटे बल्कि अपने माता-पिता, छोटे भाई और बहन का भी खर्च उठा रही थीं। 1979 से पहले उन्होंने एक निजी स्कूल में शिक्षक के रूप में और टीडीएच (टेरे देस होम्स) नामक एक संस्था में काम किया था।”
लगभग दो वर्षों तक एमसीसी के साथ काम करने के बाद वह ऑक्सफैम इंडिया ट्रस्ट में शामिल हो गई। ऑक्सफेम में अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान इंद्राणी ने पूरे देश में विभिन्न संगठनों के साथ महिलाओं से जुड़े मुद्दों और महिला सशक्तीकरण पर काम किया जो नॉन- प्रॉफिट पार्टनरशिप में थीं। वहां अपने कार्यकाल के बाद उन्होंने अपना खुद का परामर्श केंद्र खोला जो मुख्य रूप से महिलाओं के अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित था।
रंजन सिन्हा कहते हैं, “दक्षिण 24 परगना में अपने परामर्श कार्य के दौरान उन्हें उन महिलाओं की स्थिति के बारे में पता चला जो प्रताड़ित हो रही थी और परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जगह-जगह ठोकरें खा रही थी। पुरुष पैसे कमाने के लिए कोई काम नहीं करते थे महिलाएं कुछ सामान बेचकर जो भी पैसे कमाती उसे वे ले लेते थे। उन्होंने यह भी पाया कि बहुत से युवा बच्चे, खासतौर से लड़कियां और महिलाएं गांव से लापता हो रही थी। उनके बारे में गांव वाले बताते थे कि ज्यादातर महिलाओं और लड़की को बड़े शहर (कोलकाता) ले जाया गया और फिर उनके बारे में कुछ सुनने को नहीं मिला।’

संलाप: बेजुबानों की आवाज
1987 में संलाप (’डायलॉग’) की स्थापना की गई। यह एक गैर-सरकारी संस्था है जो शोषण और मानव तस्करी से लोगों को बचाने में मदद करती है। औपचारिक रूप से 1989 में स्थापित संलाप एक ऐसा माध्यम था जिसके जरिए वह उन लोगों के लिए आवाज उठाती थी जो बोलने से डरते थे। यह एनजीओ नाबालिग तस्करी पीड़ितों, वेश्यावृत्ति में शामिल महिलाओं, रेड लाइट एरिया में कमजोर महिलाओं और युवा लड़कियों और पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में यौन शोषण के शिकार लोगों के लिए काम करता है। यह एनजीओ बचाव, पुनर्वास, बहाली और घर वापसी के लिए भी काम करता है।
इंद्राणी सिन्हा ने 1989-90 में यौन दुर्व्यवहार से पीड़ित बच्चों पर पहली स्टडी की थी। इसके बाद वह कोलकाता के वेश्यालय और शहर के कई उपनगरों में गई। वहां वह सैकड़ों युवा महिलाओं और लड़कियों से मिलीं, जिन्होंने अपनी भयानक दुर्दशा और एजेंसी की कमी की बात बताई।
उन्होंने उनके शोषण की कहानियां सुनी कि कैसे उन्हें इस पेशे में धोखे से लाया गया जहां उन्हें स्वास्थ्य समस्याओं के साथ ही यातनाएं भी झेलनी पड़ी। महिलाओं ने उन्हें बताया कि उनकी जरुरतें बहुत छोटी हैं लेकिन इस पेशे से जुड़े कलंक, कानूनी सुरक्षा की कमी और एक अत्याचारी वेश्यावृत्ति माफिया के डर के कारण इस दुख को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
2006 के दिए गए एक इंटरव्यू में इंद्राणी को उन महिलाओं से बातचीत करके जो बातें पता चली, उन्होंने उसके बारे में बताया।
“जब मैंने 1989 में संस्था की शुरुआत की तो मेरे पास ऐसा कोई रोल मॉडल नहीं था जिनसे मैं कुछ सीखती। इसलिए हमारे काम का तरीका रेड लाइट एरिया की महिलाओं से बात करना, उनकी जरूरतों को सुनना और उन पर काम करना था। इसी तरह हम अपने रास्ते पर आगे बढ़ते गए और बदलते रास्तों के साथ हमारी फिलॉसफी भी बदलती गई। अब हम महिलाओं को ‘सेक्स वर्कर‘ नहीं कहते हैं, लेकिन ‘वेश्यावृत्ति में महिलाएं‘ जैसे शब्द इस्तेमाल करते हैं। अब हम जानते हैं कि उनके पास वहां रहने अलावा कोई विकल्प नहीं था और तस्करों ने उनकी मजबूरी का फायदा उठाया और उन्हें वहां डाल दिया।
1990 के दशक में संलाप ने बाल संरक्षण पहल की शुरूआत की जो रेड लाइट एरिया में पैदा होने वाले बच्चों पर केंद्रित था। शुरूआत में यह एक समुदाय-आधारित कार्यक्रम था। कुछ दिन बाद इनकी देखभाल के लिए एक संस्था की जरुरत महसूस की गई। रेड लाइट एरिया में रहने वाली कमजोर लड़कियों के लिए 1992 में एक आश्रय गृह स्थापित किया गया था। तब से यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक जारी है।
संगठन अपने फेसबुक पेज पर बताता है, “1995 के अंत में भारत के दूसरे शहरों से वेश्यावृति में जबरदस्ती धकेली गई नाबालिग लड़कियों को पुलिस द्वारा बाहर निकालने की आवश्यकता महसूस की गई, जिन्हें बहाली के लिए न्यायपालिका के सामने पेश किया गया था। लेकिन यह सिस्टम सफल नहीं हुआ। ज्यादातर मामलों में बच्चों को नकली माता-पिता को सौंप दिया जाता था और फिर से मानव तस्करी की जाती थी। किशोर न्याय अधिनियम के तहत एक मान्यता प्राप्त संस्थान के रूप में, संलाप ने इन लड़कियों की पारिवारिक पहचान और बहाली का काम शुरू किया। स्रोत क्षेत्रों तक पहुंचने, प्रवासन और तस्करी के ट्रेंड को जानने और प्रभावी रोकथाम कार्यक्रम को लागू करने की आवश्यकता महसूस की गई थी।”
अगले दशक तक गैर-लाभकारी संस्था ने प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के माध्यम से दो जिलों – दक्षिण और उत्तर 24 परगना में हस्तक्षेप करना शुरू किया। लेकिन संलाप लड़कियों को तस्करी और वेश्यावृति से बाहर निकालने की भावना से काम कर रहा था। रंजन सिन्हा बताते हैं कि हस्तक्षेप क्षेत्रों का चयन करते समय भारत-बांग्लादेश और भारत-नेपाल सीमा और एनजेपी (न्यू जलपाईगुड़ी) रेलवे स्टेशन, मुर्शिदाबाद के आरएलए, मालदा का भूतनी द्वीप, जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के चाय बागानों, अलीपुरद्वार के आदिवासी वन गांव, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के सीमा प्रवेश बिंदु जैसे असुरक्षित क्षेत्रों का ध्यान रखा जाता था।
इस प्रकार अब तक संलाप ने 2,000 से अधिक नाबालिग तस्करी पीड़ितों को बचाया है और 10,000 से अधिक को पुनर्वास प्रदान किया है। संलाप पश्चिम बंगाल में कई आश्रय-पुनर्वास गृह चला रहा है।
लड़कियों को उनके घर भेजने से पहले उनकी शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, नृत्य और संगीत प्रशिक्षण, आत्म-रक्षा और विभिन्न आय-सृजन कार्यक्रमों में काम करने के लिए सहयोग दिया जाता है।
रंजन सिन्हा कहते हैं, “ कौशल के आधार पर संलाप उन्हें मुख्यधारा के स्कूलों में प्रवेश दिलाने में भी मदद करता है। इसके अलावा संलाप विभिन्न संस्थानों में रोजगार के अवसर प्रदान करता है और साथ ही साथ जीविकोपार्जन में भी मदद करता है।”
1990 के दशक में संगठन ने पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में आश्रय स्थल बनाए। लेकिन बाद में प्रशासनिक और अन्य दिक्कतों के कारण संलाप ने स्नेहा नाम के एक आश्रयगृह से काम करना शुरू कर दिया, जो दक्षिण 24 परगना के नरेंद्रपुर में स्थित है।
रंजन सिन्हा बताते हैं, “इस आश्रयगृह में हम तस्करी से छुड़ाई गई लगभग 130-150 लड़कियों को रहने के लिए आश्रय देते हैं। इसके अलावा हम कोलकाता (खिदपोर) में एक आपदा केंद्र भी चलाते हैं, जहां हम 14 वर्ष की आयु तक के लगभग 20 छोटे बच्चों को रखते हैं, जो वेश्यावृत्ति में शामिल महिलाओं के बच्चे हैं। यह आश्रयगृह चौबीस घंटे खुला रहता है और उन्हें सभी प्रकार की मदद दी जाती है ताकि वे मुख्यधारा के समाज में आगे बढ़ सकें। संलाप एक नया प्रोजेक्ट है जिसके माध्यम से हम व्यावसायिक यौन शोषण से बचे लोगों के लिए एक छात्रावास चलाते हैं, जहां वे अब कानून, सामाजिक कल्याण और पुलिस सेवा की पढ़ाई कर रहे हैं। इस साल हमारे पहले वकील स्नातक होंगे और आने वाले वर्षों में और भी कई वकालत की पढ़ाई पूरी करेंगे।”
पिछले कुछ वर्षों में ऐसी हजारों लड़कियां भी मिली हैं, जिन्हें बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से बचाकर उन्हें उनके देश भेजा गया।

उनकी संस्था ने कमजोर समुदायों तक पहुंचने के लिए अपने सहयोगी संगठनों एवं केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों के साथ भी मिलकर काम किया। संलाप पुलिस, बीएसएफ और एसएसबी जैसी कानून लागू करने वाली विभिन्न एजेंसियों को मानव तस्करी के खिलाफ कानूनी प्रशिक्षण भी देती है।
पूर्वोत्तर में मानव तस्करी के संकट से जूझ रही एक प्रमुख संस्था इम्पल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक हसीना खरबिहा ने संलाप के साथ अपने सहयोग के बारे में द बेटर इंडिया से बात की। वह बताती हैं, “इंद्राणी और मैं रोजाना तस्करी पर अंकुश लगाने और बचायी गई महिलाओं और बच्चों की आजीविका के बारे में योजनाएं बनाते थे। वह हमेशा मानव तस्करी जैसी महामारी को रोकने के लिए हमारे संबंधित संगठनों द्वारा स्थापित आजीविका पहल में योगदान देने की उत्सुक थीं। उनके निधन के बाद भी हम उनकी इच्छाओं का सम्मान करने और उनके सपने को पूरा करने में कामयाब रहे हैं। “
इन तीन दशकों में संलाप को कई पुरस्कार प्राप्त हुए। 1997 में राष्ट्रपति द्वारा बाल कल्याण के राष्ट्रीय पुरस्कार और 2000 में राष्ट्रीय महिला आयोग पुरस्कार प्रदान किया गया। 2003-04 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र ने कोसोवो में भी अपने मिशन के साथ काम करने के लिए आमंत्रित किया।
हालांकि कठिनाइयां भी कम नहीं थीं। जैसे कि पश्चिम बंगाल में वेश्यावृत्ति माफिया की ताकत को चुनौती देने के बाद उन्हें कई धमकियां मिलीं।
उनकी बेटी ऑनड्रिला एक फेसबुक पोस्ट में बताती हैं कि, ‘जब मुझे और मेरी बहन को आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया तब हम दोनों की उम्र 8 और 9 साल थी। उस समय उन्हें अपहरण की बहुत सी धमकियां मिलती थी।’

वेश्यावृत्ति: वैध या नहीं?
वेश्यावृत्ति को वैध बनाने की वकालत करने वाले अधिवक्ताओं के विपरीत इंद्राणी वेश्यावृत्ति को अच्छा नहीं मानती थीं। उन्होंने 2006 के साक्षात्कार में कहा था, “क्या बाल श्रम सिर्फ इसलिए वैध होना चाहिए क्योंकि कुछ जगहों पर ऐसा होता है? हिंसा का एक रूप केवल इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह वहां है और सदियों से है; इसके अस्तित्व के आधार को चुनौती देने की जरूरत है। इससे पहले कि हम वेश्यावृत्ति के पक्ष में बोलें, हमें वेश्यावृत्ति को पहचानने की आवश्यकता है कि यह क्या है: एक ऐसी स्थिति जो बलात्कार और अपनी मर्जी के खिलाफ शुरू होती है।”
इंद्राणी वेश्यावृत्ति को वैध बनाने के खिलाफ थी। उनका मानना था कि अगर सरकार वेश्यावृत्ति को वैध बनाती है तो इससे तस्करी के मामले और बढ़ेंगे। वह इसे एक पेशा नहीं मानती थी इसलिए उन्होंने सेक्स वर्कर शब्द का इस्तेमाल कभी नहीं किया और हमेशा वेश्यावृति में महिलाएं, शब्द से संबोधित करती थी। उन्होंने इसे वैध नहीं माना और पूरी दुनिया में उसी की वकालत की। पिनाकी का कहना है कि उन्हें इसके लिए काफी समर्थन मिला।

विरासत
अपने असामयिक निधन तक इंद्राणी ने काम करना जारी रखा और दुनिया की यात्रा कर मानव तस्करी के बारे में जागरूकता फैलायी और कमजोर लड़कियों और महिलाओं की मदद करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा खर्च की।
“वह मुझसे अधिक लंबे समय से मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई में शामिल थी और मैं उनके काम की सराहना करता था। इंद्राणी बहुत ही मजबूत और हौसले से लबरेज महिला थी जिसने कभी हार नहीं मानी। उसकी ऊर्जा, दृढ़ संकल्प और दूरदर्शिता हमेशा मेरे साथ प्रतिध्वनित होती रही है और उनके समर्पण से प्रेरणा मिलती है, ”हसीना कहती हैं।
रंजन सिन्हा कहते हैं, “वह चाहती थीं कि हर कोई मानव तस्करी के खिलाफ आवाज उठाए। हम कड़ी मेहनत करते हैं और उनके विश्वास को आगे ले जाते हैं। वह हमें प्रेरित करती हैं और हम जानते हैं कि उनके काम को आगे बढ़ाकर हमें उन पर गर्व होगा।“
संलाप के साथ जुड़ी उनकी बेटी ऑनड्रिला अपनी माँ की भावनाओं का सम्मान करती हैं। वह कहती हैं, “22 अगस्त 2015 को उन्होंने आखिरी सांस ली, लेकिन हम आज भी उनके काम को आगे बढ़ा रहे हैं। हम कड़ी मेहनत करने की कोशिश करते हैं और हमें उम्मीद है कि कहीं न कहीं ऊपर से वह हमें देख रही होंगी और अपने काम पर गर्व महसूस कर रही होंगी। वह हमें हर दिन प्रेरित करती हैं।”
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द बेटर इंडिया मानव तस्करी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली इंद्राणी सिन्हा को नमन करता है।
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