जब भी हम ‘घर’ शब्द बोलते हैं, हमारे मन में एक ही तस्वीर उभरती है, एक ऐसी खूबसूरत जगह जहाँ माँ, पिता, भाई या बहन होते हैं। इससे हटकर शायद हममें से बहुत लोगों ने सोचा ही नहीं होगा। लेकिन पंजाब के राजपुरा में एसओएस चिल्ड्रेन विलेज में, आपको घर की एक अलग ही तस्वीर देखने को मिलेगी। एक प्यारा सा चार कमरे का मकान जहाँ आठ से दस बच्चे एक साथ रहते हैं और इनका ख्याल रखती हैं इनकी माँ। यह वह माँ नहीं है जिन्होंने इन बच्चों को जन्म दिया है बल्कि यह तो वह माँ है जिसने इन्हें पाला है। इन बच्चों का भी एक दूसरे से खून का कोई रिश्ता नहीं है, लेकिन इनके बीच प्यार और दिल का ऐसा रिश्ता है कि ये एक दूसरे को भाई-बहन मानते हैं।
इनमें से कुछ तो दस साल के थे जब यहाँ लाये गए, वहीं कुछ आठ साल के थे तो कोई सिर्फ एक ही दिन का था। इनके लिए घर का मतलब है इनका यही सुखी परिवार।
कहाँ से हुई शुरुआत

ऑस्ट्रिया में रहने वाले एसओएस चिल्ड्रेन विलेज के संस्थापक डॉ. हरमन माइनर ने कभी अपनी माँ को नहीं देखा था। उनकी परवरिश उनकी बहन ने की। जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई बच्चों ने अपना परिवार खो दिया तो डॉ. हरमन की ही ये सोच थी कि इन बच्चों को फिर से एक परिवार की सौगात मिले। उन्हें लगा था कि जैसे उन्हें बड़ी बहन के रूप में माँ मिली उसी तरह इन अनाथ बच्चों के लिए भी एक माँ होनी चाहिए। इसी सोच के साथ साल 1949 में पहली बार उन्होंने ऑस्ट्रिया में एसओएस चिल्ड्रेन विलेज की स्थापना की। इसके बाद 1964 में हरियाणा के फरीदाबाद में उन्होंने भारत का पहला एसओएस विलेज खोला। आज इसकी भारत भर में कुल 32 शाखाएं हैं, जिनमें से एक राजपुरा का एसओएस चिल्ड्रेन विलेज भी है। वहीं दुनियाभर में 135 देशों में एसओएस विलेज अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
यह अनाथ बच्चों को माँ का सहाराऔर घर परिवार देने का काम कर रहा है। यहाँ बच्चों को 23 वर्ष की आयु तक करियर बनाने और अपने पैरों पर खड़े होने तक मदद और आश्रय दिया जाता है। परिवार में माँ की भूमिका का एक अहम योगदान होता है। इसीलिए संस्था माँओं को भी रिटायरमेंट के बाद आश्रय देती है।
माँ की भूमिका अदा करती भागीरथी भंडारी

भागीरथी भंडारी, राजपुरा के एसओएस चिल्ड्रेन विलेज के साथ 1996 से जुड़ी हैं जब वह केवल 24 साल की थीं और आज वह एसओएस में अपनी माँ की भूमिका से बहुत खुश हैं। उत्तराखंड की रहने वाली भागीरथी ने शादी कर अपना एक वैवाहिक जीवन शुरू करने की बजाय अपने लिए एक ऐसी ज़िन्दगी चुनी जहाँ आज उनके साथ कई नन्हीं ज़िंदगियां जुड़ चुकी हैं। भागीरथी बहुत से अनाथ बच्चों की माँ बन, उनका सहारा बन चुकी हैं। इनमें से कई बच्चे आज अपनी ज़िन्दगी में एक मुकाम पर पहुंच चुके हैं।
भागीरथी बताती हैं, “आज से बहुत साल पहले जब मैंने एसओएस चिल्ड्रेन विलेज के साथ जुड़ने का फैसला लिया तो मेरे इस कदम से कोई भी खुश नहीं था। मैं दादी के बहुत करीब थी और वह नहीं चाहती थीं की मैं घर से जाऊं।”
भागीरथी एसओएस में एक दिन से लेकर दस दिन तक के बच्चों को संभाल चुकी हैं।
वह आगे बताती हैं, “मुझे कभी शादी करनी ही नहीं थीं, दादी से दूर जाने की भी यही वजह थी।”
एसओएस में अपने सबसे यादगार पलों के बारे में बताते हुए भागीरथी एक अनाथ बच्चे की कहानी बताती हैं, जहाँ एक पिता शराब के नशे में अपने पूरे घर परिवार को आग लगा दी थी और सिर्फ एक नन्हा सा बच्चा बचा था। उस बच्चे की जिम्मेदारी फिर भागीरथी को मिली और आज वही बच्चा दूसरे शहर में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा है। एसओएस में अपना पूरा बचपन गुज़ार कर ज़िन्दगी में कुछ बन चुके बच्चे आज भी अपनी प्यारी माँ भागीरथी को भूले नहीं हैं और इसे ही भागीरथी अपनी सबसे बड़ी कामयाबी मानती हैं। भागीरथी मानती हैं एसओएस जैसी संस्थाओं से कई अनाथ बच्चों का भविष्य संवारा जा सकता है।
रिटायरमेंट के बाद भी माँओं को मिलता है सहारा

एसओएस चिल्ड्रेन विलेज राजपुरा के डायरेक्टर अनूप सिंह पिछले 30 सालों से यहाँ हैं और मानते हैं कि एसओएस को सबसे अलग बनाता है यहाँ माँ और बच्चों के बीच का रिश्ता।
अनूप बताते हैं, “एक अनाथ बच्चे को हमें पहले चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) तक पहुँचाना होता है जहाँ बच्चे से जुड़ी जानकारी जुटाने के बाद ही तय होता है बच्चे को कहाँ भेजना सही रहेगा।”
अनूप आगे बताते हैं, “माँ के प्यार और पढ़ाई के अलावा यहाँ मौजूद काउंसलर बच्चों की दूसरी जरूरतों को पूरा करते हैं। जब एसओएस में माएँ 60 वर्ष की हो जाती हैं तब भी वो चाहें तो यहाँ के रिटायरमेंट होम में रह सकती हैं।” अनूप चाहते हैं सरकार को एसओएस जैसे और मॉडल बनाने चाहिए, जिसमें एक लम्बी अवधि के लिए ऐसे बच्चों को भावनात्मक मदद मिले।
संतोष सिंह जो एसओएस के साथ दो साल से अस्सिटेंट विलेज डायरेक्टर के तौर पर जुड़े हैं यहाँ अपने सबसे यादगार पलों को याद करते हुए बताते हैं, “दो छोटे बच्चों को उनके परिवार ने आर्थिक रूप से कमज़ोर होने की वजह से एसओएस को सौंपा दिया था। जिसमें से एक बच्चे ने अपनी आँखों की रौशनी को तकरीबन खो ही दिया था। परिवार ने तो उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन बाद में एसओएस में इलाज के दौरान वह बच्ची अब अपनी आँखों से देखने लगी है।”
परिवार और प्यार दोनों मिला
करमजीत सिंह जब आठ से दस साल के थे तब वह राजपुरा के एसओएस चिल्ड्रेन विलेज में लाये गए थे। आज करमजीत एक आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और उनका मानना है कि वह शायद एक चोर-उचक्के बन गए होते अगर उन्हें बचपन में सही दिशा नहीं दी जाती। पहले करमजीत ने अपनी मेहनत से एक घर बनाया और आज वह शादीशुदा हैं साथ ही उनका एक बेटा भी है। करमजीत कहते हैं, “एसओएस में परिवार और प्यार मिला जिसकी हम सभी को जरुरत होती है।”

आरती भंडारी चार साल की उम्र में एसओएस चिल्ड्रेन विलेज, राजपुरा आईं थीं। आज आरती मोहाली, पंजाब की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर हैं। आरती अपने नाम के साथ एसओएस चिल्ड्रेन विलेज की अपनी माँ भागीरथी भंडारी के नाम से भंडारी जोड़ती हैं। आरती के पास अब उनका परिवार है और एक अच्छी सी जॉब भी है।

अनाथ बच्चों को एक परिवार देने के साथ-साथ एसओएस चिल्ड्रेन विलेज आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों का उनके बच्चों को उज्जवल भविष्य देने में भी सहयोग कर रहा है। अगर आप चाहें तो एसओएस चिल्ड्रेन विलेज में अपना सहयोग दे सकते हैं। अपने सहयोग के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं।
संपादन- पार्थ निगम
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