24 मार्च से जब पूरे देश में लॉकडाउन जारी हुआ तो लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। लोगों के मन में सबसे ज्यादा डर था कि कहीं उन्हें ग्रोसरी या फिर साग-सब्ज़ियाँ मिलनी बंद न हो जाएं। केरल के तिरुवनंतपुरम में रहने वाले बैजू चंद्रन के कुछ पड़ोसियों को भी इसी बात की चिंता सता रही थी।
बैजू ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं पिछले कई सालों से अपनी छत पर साग-सब्ज़ियाँ उगा रहा हूँ। इसलिए जब लॉकडाउन हुआ तो कुछ पड़ोसी चिंता में मेरे पास आए और मुझसे गार्डनिंग के बारे में पूछने लगे। उनकी बात मुझे भी सही लगी कि वाकई अगर स्थिति और बिगड़ गई तो कैसे साग-सब्जी मैनेज होगा।”
ऐसे में, उन्होंने अपने एक पड़ोसी, प्रदीप कुमार से बात की। प्रदीप के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा (14 सेंट की ज़मीन) है, जिसमें सिर्फ एक टिन का शेड लगा हुआ था। प्रदीप उस खाली जमीन पर ऑटोमोबाइल रिपेयर शॉप शुरू करन चाहते थे।

लेकिन जब बैजू और उनके भाई शिजू और दूसरे पडोसी, शिबू ने उनसे कहा कि क्योंकि न उनकी ज़मीन को सब्ज़ियाँ उगाने के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो वह तुरंत तैयार हो गए। अगले दिन से ही, ये चारों पड़ोसी अपने काम में जुट गए। सबसे पहले, ज़मीन पर टिलिंग की गई और फिर इसमें खाद आदि मिलकार इसे खेती के लिए तैयार किया गया।
एक बार जब ज़मीन तैयार हो गई तो उन्होंने लगभग 10-12 किस्म के साग-सब्जियां इसमें बोए। बैजू के मुताबिक, उन्होंने नियमित रूप से इसकी देखभाल की और मात्र 2 महीने में ही कभी खाली पड़ी यह ज़मीन हरी-भरी हो गई। केरल गवर्नमेंट सैक्रेटेरिएट में बतौर असिस्टेंट ग्रेड अफसर काम करने वाले बैजू कहते हैं, “सिर्फ दो महीने की मेहनत से हमने इतनी उपज मिली कि यह हमारे चार परिवारों के लिए पर्याप्त से भी ज्यादा है। हमें कहीं बाहर से सब्जियां खरीदने की ज़रूरत ही नहीं है, बल्कि दूसरे लोग हमारे यहाँ आकर सब्जियां लेकर जाते हैं।”

शिजू और शिबू के लिए यह बिल्कुल ही नया अनुभव था। उन्होंने इससे पहले कभी सब्जियां नहीं उगाई थीं। “अपनी खुद की उगाई सब्जियां खाने के साथ-साथ इस बात की भी ख़ुशी है कि हमने लॉकडाउन को किसी अच्छी चीज़ में लगाया। इस समय का सदुपयोग किया और कुछ नया सीखा, जो जीवन भर हमारे काम आएगा,” उन्होंने कहा।
हालांकि, प्रदीप बहुत पहले कभी खेती किया करते थे लेकिन फिर वह जेसीबी ड्राईवर के तौर पर काम करने लगे और किसानी कहीं पीछे छूट गई। पर इस दौरान उन्हें भी एक बार फिर से मिट्टी से जुड़ने का मौका मिला।
“लॉकडाउन के दौरान हम सुबह 6 बजे से दिन के 10-11 बजे तक काम करते थे। फिर शाम में 5 बजे से 7 बजे तक। लेकिन जैसे-जैसे लॉकडाउन खुल रहा है और हम अपने कामों पर वापस लौट रहे हैं तो अभी हम सुबह और रात को खेत में समय देते हैं। इसके अलावा, छुट्टी वाले दिन हम ज्यादा काम करते हैं,” उन्होंने आगे बताया।

फ़िलहाल, उन्हें उनके गार्डन से खीरा, भिन्डी, बैंगन, पत्तेदार सब्ज़ियाँ, हरी मिर्च आदि की काफी अच्छी उपज मिल रही है और इसके अलावा, उन्होंने कद्दू, पेठा आदि के बीज लगाए हैं। बैजू कहते हैं कि उनके यहाँ ओणम पर खास पकवान बनते हैं, जिनमें कई तरह की सब्जियों का इस्तेमाल होता है। इसलिए अब वे लोग ओणम के लिए साग-सब्जियां उगाने में जुटे हैं। खुद अपनी सब्ज़ियाँ उगाने के प्रति जागरूक बैजू कहते हैं कि गार्डनिंग का उनका सफर एक न्यूज़ रिपोर्ट से शुरू हुआ। दरअसल, उन्होंने अखबार में एक खबर पढ़ी कि किस तरह बाज़ार में मिलने वाली सब्ज़ियाँ रसायनयुक्त होती हैं।
“मैंने तब से ही निश्चय किया कि मैं खुद अपनी सब्ज़ियाँ उगाऊंगा। मुझे खेती का कोई अनुभव नहीं था तो मैंने तिरुवनंतपुरम कृषका कोट्टयम संगठन द्वारा आयोजित वर्कशॉप में भाग लिया। वहां से मैंने जैविक रूप से सब्ज़ियाँ उगाने के गुर सीखे। पिछले चार सालों से मैं खुद अपनी छत पर गार्डनिंग कर रहा हूँ और इससे मुझे यह संतुष्टि रहती है कि कम से कम मेरा परिवार शुद्ध और स्वस्थ सब्जियां खा रहा है,” उन्होंने आगे कहा।

बैजू को सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की है कि उनकी यह पहल और लोगों को भी प्रेरित करने में सफल रही। लॉकडाउन में जब उनके और भी पड़ोसियों ने इन चारों को इस तरह सब्ज़ियाँ उगाते देखा तो उन्होंने भी अपने घरों में पेड़-पौधे लगाना शुरू किया। बैजू के भाई, शिजू चंद्रन कहते हैं कि इससे पहले वह गार्डनिंग आदि से जुड़े हुए नहीं थे। लेकिन अब उन्हें इस खेत को देखकर बहुत ख़ुशी होती है। खुद उगाई गई सब्जियों को पकाकर खाने का स्वाद ही एकदम निराला होता है। उनके इस 14 सेंट के खेत ने न सिर्फ इन चार परिवारों का बल्कि और भी कई परिवारों का भरण-पोषण किया है।
“हमारी सब्जियों की हार्वेस्टिंग जब शुरू हुई तो बहुत से लोगों ने हमारे फार्म पर आना शुरू कर दिया। हमारे परिवारों के लिए सब्जियां अलग रखकर, जो भी उपज बचती, उसे हम इन लोगों को बेच देते। इससे उन्हें भी शुद्ध और स्वस्थ खाने का मौका मिला। साथ ही, कई लोगों ने हमसे पूछकर अपने घरों में भी गार्डनिंग शुरू की क्योंकि सवाल लॉकडाउन होने का नहीं है बल्कि अच्छा और रसायनमुक्त खाने का है, जो मुझे लगता है कि आज के समय में बहुत ज़रूरी है,” बैजू ने अंत में कहा।

बेशक, लॉकडाउन का इससे अच्छा सदुपयोग हो ही नहीं सकता था। हालांकि, देर अभी भी नहीं हुई है। आपको बस एक पौधे से शुरुआत करनी है और देखिएगा, धीरे-धीरे आप खुद भी अपना खाना उगाने लगेंगे।
आप बैजू चंद्रन से 082812 97424 पर संपर्क कर सकते हैं!
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