घरों में लोग कुत्ते-बिल्ली, खरगोश, तोता और चिड़िया आदि पालते हैं लेकिन अगर कोई कहे कि वह तितली पालती हैं, तो आप क्या कहेंगे? यही कि यह कैसे मुमकिन है। बिल्कुल, तितलियों को पालतू बनाना बिल्कुल भी मुमकिन नहीं लेकिन मुंबई के भांडुप में रहने वाली प्रियंका सिंह पिछले कई सालों से अपने फ्लैट की बालकनी में तितलियों को पाल रही हैं।
मूल रूप से वाराणसी की रहने वाली प्रियंका ने कभी भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह प्रकृति के संरक्षक के तौर पर काम करेंगी और लोग उनसे तितलियाँ पालना सीखेंगे। पर कहते हैं न कि किस्मत आपको कहाँ से कहाँ ले जाए, किसी को नहीं पता होता। प्रियंका ने विज्ञान विषय में अपनी पढ़ाई की, एविएशन सेक्टर में एयरहोस्टेस का कोर्स किया और फिर एमबीए किया।
साल 2008 में उनकी शादी हो गई और वह पति के साथ मुम्बई शिफ्ट हो गईं। वह बताती हैं, “शुरुआत में हम तिलक नगर चेम्बूर में रहते थे और वहां थोड़ी दूरी पर लैंडफिल था जहां से बहुत ही बदबू आती थी। उसके बारे में जानने के बाद मैंने तय कर लिया कि मुझे वेस्ट-मैनेजमेंट पर काम करने की ज़रूरत है। कम से कम मेरे घर का कचरा वहां न पहुंचे।”

वेस्ट-मैनेजमेंट के साथ-साथ उन्होंने कम्पोस्टिंग भी शुरू कर दी। वह बताती हैं कि वह घर के जैविक कचरे से ही काफी खाद बना लेती थीं। इसलिए उन्होंने बालकनी में काफी पेड़-पौधे भी लगा लिए। भांडुप शिफ्ट करने के बाद भी उनका यह काम जारी रहा। उनका फ्लैट 13वीं मंजिल पर है और यहाँ पर उन्होंने अपने एक कमरे की खिड़की पर अच्छे पेड़-पौधे लगाए हुए हैं। एक दिन प्रियंका ने देखा कि उनके एक पेड़ की पट्टी को छोटा-सा कैटरपिलर खा रहा है। उन्होंने उसे वहां से हटाया नहीं। कुछ दिनों बाद उन्होंने देखा कि यह कैटरपिलर एक बहुत ही खूबसूरत तितली बन गया।
और बस वहीं से उनके एक नए सफ़र की शुरुआत हुई। वह अक्सर गार्डनिंग से जुड़े लोगों से अलग-अलग जीवों के बारे में पूछने लगीं। कई बार उसी हिसाब से पेड़-पौधे खरीदतीं। प्रियंका को तितलियों से इतना लगाव हो गया कि उन्होंने तितलियों के बारे में पढ़ना शुरू किया और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से कोर्स करने भी सोची। लेकिन बाद में उन्होंने बटरफ्लाई साइंटिस्ट ऑफ़ इंडिया से टैक्सोनॉमी पर कोर्स किया।
उन्होंने सीखा कि तितलियाँ कुछ ही पेड़-पौधों पर रसपान के लिए आती हैं और वहीं पर उनकी प्रजनन प्रक्रिया होती है। तितली यूँ ही किसी भी पेड़ पर अपने अंडे नहीं देती बल्कि कुछ खास किस्म के पेड़ ही उन्हें चाहिए। वह बताती हैं, “पूरे संसार में लगभग 20 हज़ार किस्म की तितलियाँ हैं और उनमें से लगभग 1400 किस्म हमारे यहाँ हैं। मेरे अपने घर में फिलहाल 8 किस्म की तितलियाँ आती हैं।”

प्रियंका ने सिर्फ अपने घर में ही नहीं बल्कि सोसाइटी के आस-पास भी तितलियों के अनुकूल पेड़ लगाना शुरू किया। नियमित रूप से वह यह चेक करती हैं कि कहीं किसी तितली ने अंडे तो नहीं दिए। वह कभी भी अपने पेड़ों से उनके अंडे या फिर कैटरपिलर को नहीं हटाती हैं। उनकी कोशिश सिर्फ यही रहती है कि उनके पेड़-पौधे स्वस्थ रहें ताकि ज्यादा से ज्यादा तितलियाँ उनके यहाँ आए।
साल 2012 में उन्होंने किचन गार्डनिंग के एक इवेंट के दौरान अपना अनुभव लोगों से बांटा और तब से ही उन्हें लोग वर्कशॉप के लिए बुलाने लगे। वह स्कूल और कॉलेज में भी वर्कशॉप के लिए जाती हैं। वह कहती हैं कि सबसे पहले वह लोगों को खुद अपने घर के कचरे की ज़िम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करती हैं। बहुत से लोग तितली वाला गार्डन लगाना चाहते हैं तो वह उन्हें उसके तरीके भी सिखाती हैं। पर समस्या यह है कि लोग तितलियाँ देखना चाहते हैं पर कैटरपिलर उनके पेड़-पौधे खाएं, यह उन्हें गंवारा नहीं।

“अगर कोई तितलियाँ चाहता है तो अपने गार्डन में नेक्टर वाले पौधे लगाएं और फिर धीरे-धीरे ऐसे पेड़-पौधे जो इनके लिए होस्ट का काम करें। लोगों को मिट्टी की गुणवत्ता भी देखनी चाहिए। इसलिए हेमशा ही मिट्टी में जैविक खाद मिलाएं और अन्य पोषक तत्वों का भी ध्यान रखें,” उन्होंने आगे कहा।
प्रियंका के मुताबिक, उन्होंने अब तक लगभग 5000 तितलियों को पाला है। वह बताती हैं कि तितलियाँ कभी भी एक जगह नहीं टिकतीं। वो उनके गार्डन में आती हैं, रसपान करती हैं और वहीं पर अपने अंडे देती हैं और चली जाती हैं। उनके अण्डों से कैटरपिलर बनते हैं और फिर नयी तितलियाँ। अगर उन्हें बढ़ने के लिए सही वातावरण न मिले तो ये अंडे नष्ट हो जाएंगे। इसलिए प्रियंका इनका पूरा ध्यान रखती हैं।

कभी-कभी कम जगह होने से उन्हें परेशानी भी होती है लेकिन उनका जज्बा कम नहीं होता। उनकी कोशिश यही है कि ये तितलियाँ हमेशा उनके यहाँ आती रहें। “अगर हमें प्रकृति के करीब रहना है तो हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा। अगर हम खुद अपने कचरे की ज़िम्मेदारी लेते हैं तो इससे हमें अपने गार्डन के लिए अच्छी खाद मिलेगी और हम धरती से कचरे के बोझ को कम कर पाएंगे। इससे बड़ी देशभक्ति और क्या हो सकती है,” उन्होंने अंत में कहा।
प्रियंका के इस काम में उनकी 11 साल की बेटी भी पूरा साथ देती है और वह भी प्रकृति-संरक्षण सीख रही है। अगर आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप प्रियंका सिंह से greenhope26@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं!
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