42 वर्षीया सुमा नरेंद्र, केरल के पेरिंगनाड में रहती हैं। सुमा अपने परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। वह एक बेहतरीन भरतनाट्यम डांसर हैं और एक एक्सपर्ट गार्डनर हैं। बागवानी की बात की जाए तो सुमा ग्रो बैग्स का इस्तेमाल करके छोटी जगह का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने का कौशल रखती हैं।
सुमा बताती हैं कि डांस उनका हमेशा से जुनून रहा है। डांस के साथ ही उन्हें बागवानी का भी शौक रहा। उनका सपना था कि उनके घर में एक छोटा सा बगीचा ज़रूर हो। उन्होंने अदूर में एक घर खरीदा जो 4356 वर्ग फुट क्षेत्र में स्थित था। घर बनाने के बाद उनके पास बहुत कम जगह बची थी जिसमें वह कुछ उगाने की सोच सकें।

लेकिन सुमा ने बागवानी और खेती करने का सपना देखना नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने सपनों का बगीचा ग्रो बैग में सेट करना शुरू किया। सुमा ने फिर क्रीपर्स यानी लताएं, क्लाइंबर्स और स्थानीय फलों औऱ सब्जियों को उगाने के लिए टैरेस और बाड़ यानी घर की चाहरदीवारी की जगह का उपयोग करने का सोचा।
उन्होंने अदूर के कृषि भवन से 25 ग्रो बैग खरीदे और 2005 में केमिकल फ्री टैरेस बागवानी शुरू की। टमाटर और हरी मिर्च जैसी आसान सब्जियों से शुरुआत करके, सुमा ने धीरे-धीरे बागवानी की दुनिया में कदम रखा।
केवल पांच वर्षों में सुमा के टैरस गार्डन में फूलगोभी, चुकंदर, प्याज, अदरक, गोभी समेत 500 से भी ज़्यादा सब्जियां और फल के पौधे हैं। यहां तक कि हर्ब गार्डन यानी कि हरी शाक और औषधि पौधों के लिए भी अलग जगह है।
आज, 4 हज़ार वर्ग फीट की ज़मीन पर उन्होंने करीब 25 किस्मों के पौधों उगाए हैं और बेस्ट टैरेस फार्मर के लिए केरल स्टेट अवार्ड जीत चुकी है!
ग्रो बैग का इस्तेमाल करते हुए जगह का प्रबंधन

1990 में पठानमथिट्टा डिस्ट्रिक्ट यूथ फेस्टिवल में ऑलराउंडर का इनाम जीतने के बाद, सुमा ने अपने प्री-डिग्री दिनों के दौरान एक डांस स्कूल शुरू किया। वह त्रिपुनिथुरा के आर.एल.वी. कॉलेज से भरतनाट्यम में बैचलर ऑफ आर्ट्स डिग्री में पहली रैंक धारक बनी। लेकिन एक चीज़ उन्होंने कभी नहीं सोची थी कि बागवानी उनकी ज़िंदगी का इतना अहम हिस्सा बन जाएगा और कुछ ही वर्षों में वह केरल के सबसे बेहतरीन टैरेस फार्मिंग विशेषज्ञों में से एक होंगी।
अपनी शादी के तुरंत बाद, सुमा अपने पति के साथ पेरिंगनाड से केरल के अदूर चली गई। सुमा के पति, सुरेश कुमार इलेक्ट्रिक-प्लंबिंग कॉन्ट्रैक्टर हैं।
अपनी टैरेस की खेती के साथ, सुमा ने चाहरदीवारी पर लताएं और क्लाइंबर्स भी उगाना शुरू कर दिया। साथ ही उन्होंने 2 रिंग कम्पोस्ट की स्थापना भी की ताकि वह पौधों के लिए अपनी रसोई के सभी बायोवेस्ट का उपयोग कर सके।
सुमा बताती हैं, “हमें इन पौधों से बहुत अच्छी फसल मिल जाती है। हम अपने पड़ोसियों को मुफ्त में वितरित करते हैं और कभी-कभी इसे बाजार में बेचते हैं। यह हमारे लिए आय का एक अच्छा स्रोत है। लेकिन हम इसका ज़्यादातर इस्तेमाल रोज की ज़रूरतों के लिए करते हैं।”
सुमा के पति सुरेश कहते हैं कि इस लॉकडाउन के दौरान उनसे कई लोगों ने पूछा कि उन्हें किसी तरह के नुकसान का अनुभव हुआ है। सुरेश गर्व से कहते हैं कि उन्हें किसी तरह के नुकसान का अनुभव नहीं हुआ है बल्कि उन्हें अपने निजी खेत होने के महत्व का एहसास हुआ क्योंकि वह अपने घर पर उगाए गए फलों और सब्जियों को बिना किसी जोखिम के सुरक्षित रूप से खा सकते हैं।
सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला उनका बेटा, गौतम कृष्ण और बेटी रंजनी कृष्णा सहित उनके चार लोगों के परिवार के लिए उनका उत्पादन पर्याप्त था।
सुमा के पड़ोसी नोना थॉमस ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने हमेशा छोटे पैमाने पर खेती की है। लेकिन जब से सुमा और उनका परिवार हमारे घर के सामने रहने आया, बैग में खेती करने के लिए वे हमारे लिए प्रेरणा बन गए हैं।”
यह जानना बेहद दिलचस्प है कि सुमा ने छोटी सी जगह का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल कैसे किया। द बेटर इंडिया के साथ उन्होंने अपने 15 वर्षों के अनुभव को साझा किया है।
कम जगह, ज़्यादा उपयोगिता

सुमा बताती हैं कि जहां तक टैरेस पर खेती करने की बात है, तो इसमें जगह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है और जगह का बड़ी कुशलता से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वह बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार टैरेस पर ग्रो बैग का उपयोग करना शुरू किया, तो उन्हें यह ध्यान रखना था कि ग्रो बैग से निकलने वाला पानी टैरेस की नींव को प्रभावित ना करे। तो इन्हें ठीक तरीके से रखना भी था और साथ में सब्जियां भी उगानी थी।
सोच-विचार कर, सुमा ने पूरे टैरेस में, कंक्रीट पाइपों पर ग्रो बैग्स रखा। इसके अलावा, उन्होंने अपने पौधों के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली भी स्थापित किया है और इसके लिए उन्होंने पीवीसी पाइप का उपयोग किया है।
वह बताती हैं, “यह एक बहुत ही अनोखी तकनीक है और हर दिन पानी देने के काम को कम करता है।”
जगह की कमी के बावजूद, सुमा ने सुनिश्चित किया है कि ग्रो बैग को एक-दूसरे से अलग रखे जाए ताकि ग्रो बैग पर कीट सुरक्षात्मक जाल लगाए जा सकें।
उन्होंने बताया, “पूरी तरह से विकसित पौधों को कवर करने के लिए मैं कुछ ‘चिपचिपे’ जालों का उपयोग करती हूं जो नीले और पीले रंग के होते हैं। ये रंग कीटों और कीड़ों को आकर्षित करते हैं और वे जाल पर फंस जाते हैं। इस तरह के जाल आसानी से कृषि भवन और नर्सरी में उपलब्ध होते हैं।
सुमा ने एक रेन रूफ स्थापित किया है जहां वह कई किस्म की सब्जियां, फल, और शाक उगाती है।
सुमा आगे बताती हैं कि उन्होंने घर के पीछे, दो-रिंग कम्पोस्ट स्थापित किया है ताकि रसोई घर से निकलने वाले बायोवेस्ट को खाद में बदला जा सके। यह ज्यादा जगह नहीं लेता है और बहुत प्रभावी है।
अंत में वह कहती हैं, “घर के आस-पास की जमीन के हर छोटी जगह और कोने का इस्तेमाल बेहतर तरीके से किया गया है। सुरेश और मैं समझ चुके हैं कि जहां तक खेती की बात है तो स्पेस वास्तव में उतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है कि हम कितनी देखभाल करते हैं और कितना धैर्य रखते हैं।”
लगभग 4 हज़ार वर्ग फीट ज़मीन पर 500+ पौधों के साथ, सुमा ने सभी को गलत साबित कर दिया है और यह दिखाया है कि जब खेती की बात आती है तो बहुत ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत नहीं होती है। सुमा द्वारा बताए गए टिप्स निश्चित रूप से फायदेमंद हैं। हमें ज़रूर बताएं कि इन टिप्स से आपको और आपके शहरी गार्डन को कितना फायदा पहुंचा है।
मूल लेख-SERENE SARAH ZACHARIAH
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