बिहार में चंपारण से संबंध रखने वाले 34 वर्षीय नेहा उपाध्याय एक सोशल एंटरप्राइज, गुण ऑर्गनिक्स की फाउंडर हैं। उनका उद्देश्य किसानों की मदद करना और उन्हें उनकी एक पहचान देना है।
नेहा ने 2012 में लंदन से अपनी मास्टर्स की डिग्री पूरी की और फिर उन्हें वहीं पर बतौर रिसर्च ऑफिसर की नौकरी भी मिल गई। किसी भी आम लड़की के लिए यह उसका सपना हो सकता है, लेकिन नेहा को हमेशा कुछ अधूरा-सा लगता था। मानो कुछ और भी है जो उन्हें करना था।
नेहा ने द बेटर इंडिया को बताया, “ लंदन में मेरा काम बच्चों के व्यवहार और खाने की आदतों और उनको होने वाली बिमारियों पर शोध का था। मैंने काम के दौरान समझा कि कैसे वहां का खान-पान हमसे बिल्कुल अलग है। पर खाना किसानों से आता है और रासायनिक खेती की वजह से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां वहां भी बिल्कुल वैसी हैं, जैसा भारत में है।”
नेहा लगातार इस बारे में पढ़ रही थी कि कैसे एक स्वस्थ्य ज़िंदगी के लिए स्वस्थ्य कृषि का होना ज़रूरी है। इस क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी इस कदर बढ़ी कि उन्होंने खुद जैविक खेती में एक सर्टिफिकेट कोर्स किया। इसके बाद वह भारत वापस आ गईं और यहाँ उन्होंने कुछ सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर काम किया। उनका उद्देश्य लोगों को पारंपरिक और जैविक खेती से जोड़ना है।

“देश में जब मैंने किसानों की दुर्दशा देखी तो लगा कि अब इन्हीं के लिए काम करना है। मैं खुद बिहार के चंपारण से संबंध रखती हूँ और मेरा परिवार भी कृषि से जुड़ा हुआ था। जागरूकता के साथ-साथ मुझे लगा कि सिर्फ जैविक खेती करने से काम नहीं चलेगा। हमें किसानों को एक मंच भी देना होगा जो उन्हें सीधा ग्राहकों से जोड़े तभी उन्हें फायदा होगा,” उन्होंने बताया।
अपने जागरूकता अभियानों के लिए उन्होंने बहुत से राज्यों में वर्कशॉप की जैसे महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, लेह और लद्दाख आदि। जब वह लद्दाख में काम कर रही थीं तो उन्हें वहां के किसानों से मिलना-जुलना हुआ। वहां उन्होंने देखा कि कैसे गाँव की औरतें खेत-घर सब जगह काम करतीं हैं और अपने जीवन को संवार रही हैं। वहां पर जब उन्होंने वर्कशॉप की तो वहां के लोगों ने समझा और कई लोगों ने जैविक खेती शुरू भी की।
नेहा ने लद्दाख के तकमाचिक गाँव से ही अपने इको -मॉडल विलेज की नींव रखने का फैसला किया। उन्होंने अपने सोशल एंटरप्राइज गुण ऑर्गनिक्स की स्थापना की। इस सोशल एंटरप्राइज के ज़रिए उनका उद्देश्य तमकाचिक गाँव और देश के दूसरे ग्रामीण इलाकों को सेल्फ-सस्टेनेबल बनाना है। इस काम के लिए उन्होंने अपनी बचत के पैसों को इन्वेस्ट किया और साथ ही, उनके प्रयासों से उन्हें UNDP का एक प्रोजेक्ट मिला गया। जिसके फंड से उनकी काफी मदद हुई।
“वहां पर अखरोट, खुबानी काफी अच्छी मात्रा में होता है। हमने किसानों को यह सभी फसलें जैविक और प्राकृतिक तरीकों से उगाने के लिए प्रेरित किया। फसल की हार्वेस्टिंग करके इसे बिचौलियों के माध्यम से बाज़ार तक पहुंचाने की बजाय हमने इन्हें प्रोसेस करके गुण आर्गेनिक्स के माध्यम से सीधा ग्राहकों तक पहुँचाना शुरू किया,” उन्होंने आगे बताया।

नेहा की राह मुश्किल थी लेकिन नामुमकिन नहीं। गाँव से ही उन्हें महिलाओं का काफी साथ मिला। महिलाएं खेत और घर दोनों जगह काफी ज्यादा मेहनत करतीं हैं। वहां घर भी पहाड़ों पर काफी-काफी ऊँचे-ऊँचे होते हैं, पर ये महिलाएं खेतों से लेकर बाज़ार तक के काम खुद करतीं हैं।
नेहा बतातीं हैं कि उनके साथ जुडी महिला किसानों ने उनके अभियान में काफी साथ दिया। उन्होंने हर एक परिवार को गुण आर्गेनिक्स से जोड़ा। प्राकृतिक खेती के फायदे बताए और किसानों को बिचौलियों के चुंगल से निकल खुद अपनी फसल को प्रोसेस करके और पैकेजिंग करके मार्किट करने के लिए प्रोत्साहन दिया।
जैविक खेती के अलावा, गुण आर्गेनिक्स ने अपने अभियानों के ज़रिए यहाँ के परिवारों को सोलर ड्रायर और स्मोकलेस स्टोव भी दिलाई। नेहा ने ग्रामीणों को सोलर ड्रायर बनाने की वर्कशॉप कराई। इसके बाद सभी ग्रामीणों के खुद मिलकर अपने-अपने हिसाब से सोलर ड्रायर तैयार किए, जिससे उन्हें प्रोसेसिंग के साथ-साथ अपनी घरेलू चीजों को भी ज्यादा समय तक संरक्षित करने में मदद मिल रही है। सोलर ड्रायर के बाद परिवारों ने सोलर कुकर भी इस्तेमाल करना शुरू किया है।

नेहा कहती हैं कि जैविक खेती और सोलर तकनीकों की वजह से आज वह लद्दाख के लगभग 10 गांवों के 650 किसानों का जीवन संवार रही हैं। गुण आर्गेनिकस के ज़रिये, वह जैविक खुबानी, खुबानी का तेल, बारले, बकबीट, मशरूम, और अखरोट-बादाम जैसे नट्स बेच रही हैं। इसके अलावा, स्थानीय बाज़ारों के लिए उन्होंने सोलर ड्रायर से ब्रेड और बिस्किट आदि बनाना भी ग्रामीणों को सिखाया है और वह खुबानी से पापड़ बनाने पर भी काम कर रहे हैं।
गुण ऑर्गनिक्स के ज़रिए हर महीने लगभग 800 ग्राहकों तक इन किसानों के उत्पाद पहुँचते हैं। पहले किसान जिस खुबानी को 190 रुपये प्रतिकिलो में बेचते थे, वह अब प्रोसेसिंग के बाद 650 रुपये प्रति किलो के हिसाब से जाता है।
गुण आर्गेनिकस की टीम जिन भी गांवों में काम कर रही हैं, वे सभी प्लास्टिक मुक्त भी बन रहे हैं। सभी पैकेजिंग कागज़ या फिर कांच की बोतलों में होती है। सोलर ड्रायर की मदद से वह एक साल में ही 436 किलोग्राम कार्बन एमिशन को रोकने में सफल रहे हैं।
प्रोसेसिंग की जानकारी होने से अब महिलाएं घर के लिए भी खुद ही आटा,दलिया आदि तैयार कर लेती हैं और उन्हें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता है। पहले इस पुरे इलाके में बिचौलियों की मोनोपॉली थी लेकिन अब किसानों की सभी उपज सीधा ग्राहकों तक पहुँचती है। नेहा एक्सपोर्ट करने के लिए लाइसेंस ले लिया है। पर कोविड-19 के चलते अभी उनका काम इस दिशा में शुरू नहीं हुआ है।

लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर लगभग 7 हज़ार लोगों की राशन, सेनेटरी किट आदि से मदद की। नेहा कहती हैं कि अभी भी प्रोडक्ट्स की बिक्री वैसे नहीं है, जैसे होनी चाहिए। यह बात कभी-कभी ग्रामीणों को हताश करती है लेकिन उनकी कोशिश यही रहती है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से जुड़कर इन किसानों को उनकी एक पहचान दिलाएं।
“मैं सबसे बस यही कह सकती हूँ कि अगर आप गुण आर्गेनिकस से कुछ खरीदते हैं तो यहां से सिर्फ आपको जैविक और प्राकृतिक प्रोडक्ट्स नहीं मिलेंगे बल्कि आपकी एक खरीद, हमारे किसानों को आत्म-विश्वास देगी। बाहर से आने वाले ड्राई फ्रूट्स को हज़ारों रूपये देकर खरीदने में हम बिलकुल नहीं सोचते हैं बल्कि इससे हमारा स्टेटस ऊंचा होता है। लेकिन अपने ही यहां के किसानों को उनकी मेहनत की सही कीमत हमें अचानक ज़्यादा लगने लगती है। जबकि हमें अपने किसानों को सपोर्ट करके अपने देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देना चाहिए। उम्मीद है कि लोग मेरी बात को समझेंगे और ‘मेड इन इंडिया’ को बढ़ावा देंगे,” उन्होंने अंत में कहा।
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