“अगर आप किसी को कुछ मछलियाँ पकड़ कर दें, तो वह उसे शायद एक या दो दिन में ही पकाएगा और खा लेगा। लेकिन अगर आप किसी को मछली पकड़ना सिखा दें तो वह ज़िंदगी भर अपना पेट भर सकता है,” यह कहना है तेजपुर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर डॉ. रबिन कुमार दत्त का।
डॉ. दत्त ने कई सालों तक रिसर्च करके एक ऐसा फिल्टर बनाया है जो पानी में अत्यधिक मात्र में मौजूद आर्सेनिक और आयरन को निकालकर कर पानी को पीने योग्य बनाता है। उनके फिल्टर की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बहुत ही ज्यादा सस्ता है और इसे कोई भी सीखकर बना सकता है।
असम के रहने वाले डॉ. दत्त बताते हैं कि साल 1997 में तेजपुर यूनिवर्सिटी में केमिकल स्टडीज का डिपार्टमेंट सेटअप हुआ था। साल 1999 में उन्हें पता चला कि असम के कई इलाकों के पानी में आर्सेनिक और फ्लूरोइड जैसे मिनरल्स की मात्रा बहुत ज़्यादा है और यह पानी सेहत के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकता है। उन्होंने जब इस बारे में डाटा इकट्ठा करना शुरू किया तो बहुत ही गंभीर स्थितियाँ उनके सामने आईं। उन्होंने देखा कि हर एक इलाके में लोगों को तरह-तरह की बीमारियों का शिकार होना पड़ रहा है।
त्वचा की बीमारी से लेकर कैंसर तक की बीमारी से लोग मर रहे थे। पर किसी के पास समस्या का कोई हल नहीं था। डॉ. रबिन ने इस पर जब शोध शुरू किया तो उन्होंने पाया कि न सिर्फ असम में बल्कि पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर-प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों के भी इलाकों में आर्सेनिक की समस्या है। यहाँ तक कि वह खुद जिस गाँव से आते हैं वहाँ के पानी में आर्सेनिक की काफी ज़्यादा मात्रा होने की वजह से बहुत से लोगों की कैंसर से मौत हुई है। उन्होंने अपने बड़े भाई और पिता को भी इसी वजह से खो दिया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 21 राज्यों के 153 जिलों में 239 मिलियन लोग आर्सेनिक की परेशानी से जूझ रहे हैं। ऐसे में, डॉ. रबिन ने ठान लिया कि वह इस समस्या का हल ज़रूर ढूँढेंगे और उन्होंने कोई ऐसा तरीका खोजने पर जोर दिया, जिसे बहुत ही आसानी से और सस्ती लागत पर लोगों तक पहुँचाया जा सके।
क्या है आर्सेनिक:
आर्सेनिक एक मेटलॉइड है, जिसके गुण मेटल और नॉन-मेटल से मेल खाते हैं। यदि यह बहुत ज़्यादा मात्रा में हमारे शरीर में जाए तो हानिकारक होता है। कैंसर के मुख्य कारणों में से एक आर्सेनिक है। बहुत-सी जगह भूजल में यह काफी ज़्यादा मात्रा में होता है और अगर उस जगह के लोग पानी को बिना फ़िल्टर किए पियें तो उन्हें स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ हो सकती हैं।
चिंता वाली बात यह है कि अब तक इसका कोई ठोस हल नहीं निकाला जा सका है। बहुत-सी जगह तो लोगों को पता ही नहीं होता कि उनके शरीर पर होने वाले दाग-धब्बे और तरह-तरह की एलर्जी का कारण पानी में आर्सेनिक का होना है। जागरूकता न होने के कारण बहुत से लोग अंध-विश्वास का शिकार हो जाते हैं।
डॉ. रबिन बताते हैं कि जहाँ आर्सेनिक की मात्रा पानी में ज़्यादा होती है वहाँ आयरन की मात्रा भी बहुत ज़्यादा होती है और इसलिए उन्होंने इन दोनों को ध्यान में रखकर फ़िल्टर बनाया।
क्या है आर्सिरोन निलोगन फ़िल्टर:
लगभग 10 सालों के शोध के बाद डॉ. दत्त और उनके साथियों को सफलता मिली। उन्होंने साल 2010-11 में जोरहाट के तीताबार गाँव से अपनी इस तकनीक का ट्रायल शुरू किया। इसके बाद, असम के छह स्कूलों में भी यह फिल्टर लगाया, जहाँ आर्सेनिक की समस्या थी। हर तरह की जाँच-परख के बाद ही उन्होंने अपनी इस तकनीक पर पेटेंट के लिए अप्लाई किया।
आर्सिरोन शब्द आर्सेनिक और आयरन से मिलकर बना है और निलोगन का आसामी भाषा में मतलब होता है हटाना। यह फ़िल्टर दो स्तर की तकनीक है। इसके लिए आपको पानी की मात्रा के हिसाब से प्लास्टिक के बाल्टी, ड्रम या टंकी चाहिए। सबसे पहले एक टंकी में आप मापकर पानी लीजिये। अब इस पानी की मात्रा के हिसाब से आपकी मापकर तीन सामान्य रसायन, बेकिंग सोडा, पोटैशियम परमेगनटे, और फैरिक क्लोराइड मिलाएँ।
अगर आप 20 लीटर पानी ले रहे हैं तो आपको 2 ग्राम बेकिंग सोडा, 5% पोटैशियम परमैगनेट द्रव, और 2 मिली० 25% फैरिक क्लोराइड द्रव डालें। इन्हें किसी लकड़ी की मदद से अच्छे से मिलाएँ और पानी को एक से डेढ़ घंटा यूँ ही छोड़ दें। इसके बाद एक दूसरी बाल्टी या ड्रम लें। जिसमें आपको सबसे नीचे पत्थर डालने हैं इसके ऊपर कोई जाली रखें और उसके ऊपर रेत डालें। अब उस पानी को इसमें डालकर फ़िल्टर करें, जैसा कि तस्वीर में दिखाया गया है।
बिहार में स्वच्छ भारत मिशन के साथ कार्यरत मयंक जोशी बताते हैं कि उन्होंने बक्सर के तत्कालीन डीएम की मदद से वहाँ पर 5 फ़िल्टर यूनिट लगवाए हैं। लेकिन इससे पहले उन्होंने इस फ़िल्टर का अच्छे से टेस्ट किया। उन्होंने फ़िल्टर किये हुए पानी को अलग-अलग लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा और पाया कि इस फ़िल्टर की मदद से 50 ppb से आर्सेनिक की मात्रा 2ppb तक लाया जा सकता है।
सबसे अच्छी बात है कि यह बहुत ही सस्ता माध्यम है। अगर इन रसायनों की कीमत का हिसाब लगाया जाए तो आप 1 रुपये से 100 लीटर पानी से आर्सेनिक निकाल सकते हैं। इसके साथ अगर फ़िल्टर सेट-अप की बात की जाए तो आपको बस दो ड्रम, उनमें दो टैप, पत्थर, रेत और जाली की ज़रूरत होगी। इन सब चीज़ों पर आपको मुश्किल से 500 रूपये का खर्च आएगा और आप अपने घर में आसानी से 20 से 25 लीटर पानी की फ़िल्टर यूनिट सेटअप कर सकते हैं।
आम लोगों तक पहुंची मदद:
डॉ. रबिन की यह तकनीक असम के साथ-साथ बिहार व उत्तर-प्रदेश समेत कई राज्यों तक पहुँची है। उन्होंने बहुत से लोगों को यह बनाने की ट्रेनिंग दी है। वह बताते हैं, “सबसे पहले पानी को चेक किया जाता है और उसके बाद फ़िल्टर बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। असम के कई गाँवों में भी लोगों को सामुदायिक स्तर की यूनिट लगाने की ट्रेनिंग दी गई है।”
असम के मज़गाँव में दिपरूपा भक्त्यारी ने इसे बनाने की ट्रेनिंग ली है। उनके इलाके में आर्सेनिक के बारे में तब पता चला जब लोगों को शरीर पर दाग-धब्बे होना शुरू हो गए।
इस इलाके का जब डॉ. दत्त और उनकी टीम ने दौरा किया तो उन्होंने गाँव के लोगों को जागरूक किया और दिपरूपा ने ट्रेनिंग ली। अब वह काफी समय से 200 लीटर पानी की फ़िल्टर यूनिट को ऑपरेट कर रही हैं। इस यूनिट से एक छोटे परिवार को आराम से एक हफ्ते के लिए पानी मिल जाता है। इसके अलावा , उनके गाँव में और 6 यूनिट्स हैं।
डॉ. दत्त से ट्रेनिंग लेकर बहुत से स्वयं-सेवी संगठनों ने भी ग्रामीण इलाकों में काम किया है। अब तक असम के 14 जिलों में लगभग 4000 यूनिट सेटअप हो चुकी हैं, जिनसे हजारों लोगों को साफ़ पानी मिल रहा है।
डॉ. दत्त कहते हैं कि उनका उद्देश्य हर ज़रूरतमंद तक इस समाधान को पहुँचाना है। बस थोड़ी-सी जागरूकता की ज़रूरत है और हम हर एक इलाके में लोगों को आर्सेनिक की वजह से होने वाली बीमारियों से बचा सकते हैं। लेकिन इसके लिए सभी को आगे आना होगा।
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