खेती-किसानी में नए प्रयोग करने वाले किसानों को शुरूआत में सफलता नहीं मिलती है लेकिन ऐसी कहानियों को पढ़कर अन्य किसानों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। सरकार भी चाहती है कि किसान वैकल्पिक फसल या खेती में नए तरीकों को अपनाए। आज हम एक ऐसे ही किसान की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसने सिंचाई की कमी के बावजूद खेती में अभिनव प्रयोग किया है।
महाराष्ट्र के बीड जिले के पराली तालुका के नंदगौल गाँव के संदीप गिते ने सूखाग्रस्त क्षेत्र में विपरीत परिस्थितियों खेती कर उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
संदीप ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं पहले, आमतौर पर सोयाबीन, चना और अन्य फसलों की खेती करता था। लेकिन, जैविक खेती से संबंधित एक गाइडिंग सेशन में फलदार पौधों की खेती के फायदे जानने के बाद, मैंने अपने एक एकड़ जमीन पर पपीते की खेती करने का फैसला किया।”

संदीप आगे कहते हैं, “मैंने साल 2019 के अंत में, पपीते के 1 हजार पौधे लगाए थे, जिसमें से कुछ पौधे मुझे मयंक गाँधी ने दिए थे, जो कि फिलहाल गाँव में किसानों के सशक्तिकरण की दिशा में काम कर रहे हैं।”
संदीप बताते हैं कि जैविक विधि से खेती करने में परम्परागत शैलियों के मुकाबले काफी कम पानी की जरूरत होती है और खर्च में भी कम होता है।
इस तरह, संदीप ने सात महीने में 3 लाख रुपए की कमाई की।
वह बताते हैं, “जैविक खेती के लिए 1.5 लाख रुपए का निवेश किया। मैंने तरबूज को एक अतिरिक्त फसल के रूप में लगाया। मैंने अपने खेतों में उर्वरक, पानी और अन्य संसाधनों का उपयोग केवल एक बार किया, जिससे कि कुल लागत में कमी आई।”
अपने खेतों में दोहरी फसलों की खेती करने से संदीप की आय में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई।
वह बताते हैं, “इन नतीजों को देखते हुए मैंने अपने खेती के दायरे को एक एकड़ और बढ़ा दिया और दो एकड़ जमीन से मुझे 11 लाख रुपए की कमाई करने में मदद मिली।”
संदीप फिलहाल, 20 टन पपीते की खेती करते हैं और उनके उत्पादों की आपूर्ति राज्य के कई हिस्सों में की जाती है।
संदीप के कामयाबी को देखते हुए गाँव के अन्य किसान भी कुछ ऐसा ही प्रयोग करने के लिए विचार करने लगे। यहाँ जनवरी, 2020 में आठ किसानों का समूह बनाया गया था, जिससे कि आज 50 किसान जुड़े हुए हैं। ये किसान दूसरे फलों की भी खेती करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
संदीप कहते हैं, “गाँव में अब लगभग 150 एकड़ जमीन पर फलों की खेती होती है, जिसमें 40 एकड़ में पपीते लगे हुए हैं। जबकि, शेष में शरीफा, अमरूद, नींबू और आम जैसे फलों की खेती होती है।”
गाँव के एक अन्य किसान, ज्ञानोबा गीते ने भी संदीप के कृषि तकनीकों को दोहराते हुए, अपनी आमदनी में बढ़ोत्तरी की।

इसे लेकर वह कहते हैं, “मैंने अपने 3 एकड़ जमीन पर, संदीप के ही कृषि तकनीकों का इस्तेमाल किया और दिल्ली में अपने 6 टन उपज बेच कर अब तक 3 लाख रुपए कमाए। फलों की कटाई अभी जारी है और मुझे भविष्य में अच्छी आय होने की उम्मीद है।”
वहीं, शरीफे और पपीते की खेती करने वाले किसान सुभाष गीते कहते हैं, “अन्य फलों की खेती करने के पीछे का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि वे एक-दूसरे के पूरक हों, और हर कुछ महीनों के दौरान उनके उत्पाद प्राप्त हों।”
सुभाष कहते हैं कि इस पहल से साल में दो या उससे अधिक बार पैदावार सुनिश्चित होगी और इस तरह के प्रयोगों में किसानों में एक उम्मीद जगेगी और आत्महत्या की दर को कम करने में मदद मिलेगी।
इस कड़ी में पुणे डिविजन के कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक दिलीप जेंडे कहते हैं, “हमें किसानों के ऐसे कई प्रयोगों के विषय में जानकारी मिली है और सरकार भी उनकी सफलता और लाभों का अध्ययन करने की कोशिश कर रही है, ताकि इसका लाभ किसानों को वृहद पैमाने पर मिले।”
ऐसे समय में जब, देश के कई हिस्सों में भीषण सूखा पड़ने से किसानों की स्थिति बेहद खराब है; संदीप जैसे प्रयोगधर्मी किसानों की पहल किसानों की दशा सुधारने में निर्णायक साबित हो सकती है। प्रशासन को जरूरत है, जमीनी स्तर पर ऐसे प्रयासों को बढ़ावा देने की।
(मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE)
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