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बदहाल भवनों को लाइब्रेरी का रूप दे रहा झारखंड का यह आईएएस अधिकारी

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पुस्तकालय का सरल अर्थ है – पुस्तक का घर। लेकिन, यह इसका अतिसाधारण अर्थ है। इससे इसकी विशिष्टता और महत्ता का थोड़ा सा भी संकेत नहीं मिलता है। पुस्तकालय एक ऐसी जगह है, जहाँ संसार के सर्वोत्तम ज्ञान और विचारों का सम्मिलन होता है।

हमारे देश के शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े होने का एक महत्वपूर्ण कारण है कि उन्नत देशों के मुकाबले यहाँ के पुस्तकालय काफी पिछड़े हुए हैं। अतः हम अपनी निष्ठा और सतर्कता से देश में जितनी जल्दी अपने पुस्तकालयों को बढ़ावा देंगे, हम उतनी ही जल्दी हम ज्ञान के क्षेत्र में अपना परचम लहरा सकेंगे।

इन्हीं चिंताओं को समझते हुए झारखंड के जामताड़ा के जिलाधिकारी आईएएस फैज अहमद ने, जिले में पुस्तकालयों को बढ़ावा देने के लिए अनोखी पहल छेड़ी है।

Jharkhand IAS
स्थानीय लोगों से भेंट करते आईएएस फैज अहमद

आईएएस फैज अहमद ने द बेटर इंडिया को बताया, “इस बात के एक महीने से अधिक हो चुके हैं। एक जनता दरबार के आयोजन के सिलसिले में, मैं चेंगाडीह पंचायत गया था। इसी दौरान, किसी शख्स ने कहा कि अगर यहाँ लाइब्रेरी होता तो, इससे हमें काफी मदद मिलती। उनके इस अपील के बाद, मैंने इस दिशा में कुछ सार्थक करने का विचार आया।”

फैज बताते हैं कि शहर में एक सरकारी भवन था, जो काफी जर्जर स्थिति में था। उन्होंने इसे तोड़ने का फैसला किया। लेकिन, जब इंजीनियर ने उन्हें इसका खर्च बताया, तो फैज को अहसास हुआ कि सरकारी भवनों को बनाने में भारी खर्च होता है, लेकिन सही इस्तेमाल नहीं होने के कारण कुछ वर्षों में उसकी स्थिति बदहाल हो जाती है और उसे तोड़ दिया जाता है। इसके बाद, उन्हें विचार आया कि क्यों न ऐसे भवनों को चिन्हित कर, उसे फिर से संवारा जाए और एक पुस्तकालय के रूप में तब्दील किया जाए।

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नवनिर्मित पुस्तकालयों का मुआयना करते फैज अहमद

फैज बताते हैं, “हमारे इस पहल का दो मकसद था। पहला तो जर्जर भवनों के पुनरुद्धार की और दूसरा सामुदायिक स्तर पर पुस्तकालय की सुविधा विकसित करने की। जहाँ छात्र बैठकर आसानी से पढ़ सकें। मेरा मानना है कि किसी भी समुदाय के विकास में पुस्तकालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।”

कितने पुस्तकालयों को बनाने का है विचार

फैज बताते हैं, “पिछले एक महीने के दौरान हमने  चेंगाडीह, नाला, कुंडहित, फतेहपुर जैसे सात स्थानों पर पुस्तकालय का निर्माण किया है। हम अगले 15 दिनों में 25 और पुस्तकालय बनाएंगे और इसका मूल्यांकन करने के बाद हमारी योजना सभी पंचायतों में इस तरह से 118 पुस्तकालयों को बनाने की है।”

शुरूआती दिनों में फैज की योजना महज 20-30 पुस्तकालयों को बनाने की थी, लेकिन लोगों के उत्साह को देखते हुए उन्होंने अपने दायरे को बढ़ाने का विचार किया।

किस मॉडल के तहत कर रहे काम

फैज बताते हैं, “इन पुस्तकालयों में किताबों की उपलब्धता जनभागीदारी के तहत सुनिश्चित की जा रही है। जहाँ मामूली खर्च की जरूरत पड़ रही है, वहाँ सरकार के कन्वर्जन से संसाधनों को जुटाया जा रहा है। जैसे पीएचडी, नल की सुविधा दे रही है, तो बिजली विभाग निःशुल्क बिजली की। वहीं, टेबल,अलमारी जैसे संसाधनों को सीएसआर फंड से जुटाया जा रहा है।”

पुस्तकालय के रखरखाव के लिए क्या है योजना

फैज कहते हैं, “हमने पुस्तकालयों के रखरखाव के लिए लोगों को अपनी तरफ से ज्यादा दिशा निर्देश नहीं दिए हैं। हमने इसके सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय समुदायों को ही सौंप दिया। इसे कब और कितने समय के लिए खोलना है, यह पूरी तरह उनके ऊपर निर्भर करता है।”

वह आगे बताते हैं, “इसके लाइब्रेरियन, लाइब्रेरी के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष का चयन किया जा रहा है। हम उनके अकाउंट बना रहे हैं, ताकि यदि कोई डोनेशन देना चाहता है, तो वह इसे आसानी से कर सके।”

क्या है भविष्य की योजना

फैज बताते हैं, “हम भविष्य में हर पुस्तकालय की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा करेंगे। जैसे ही, यह मॉडल सफल होगा, हम इंटर लाइब्रेरी डिबेट कम्पीटीशन का आयोजन करेंगे, ताकि छात्रों को एक बेहतर माहौल मिल सके।”

जामताड़ा में आईएएस फैज अहमद के इस पहल को काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है और लोगों को इसे एक जुड़ाव महसूस हो रहा है। आलम यह है कि कई स्थानों पर उनके कहने से पहले ही छात्रों ने खुद से ही वाई-फाई आदि की सुविधा विकसित कर ली।

पहले और बाद में

इसी कड़ी में, जामताड़ा के एक रेलकर्मी बिहारी मंडल कहते हैं, “जब से मैंने फैज सर के इस पहल के बारे में सुना है, मैं तब से जिले में पुस्तकालय बनाने में अपना योगदान दे रहा हूँ। यह एक ऐसी पहल है, जिससे यहाँ एक प्रतियोगी माहौल का विकास होगा, जो हमारे बच्चों के भविष्य के लिए बेहतर है।” 

वहीं, चेंगाडीह के अशरफ अली बताते हैं, “मैं एक स्थानीय कॉलेज से हिन्दी में ग्रेजुएशन कर रहा हूँ। हमारे गाँव में पढ़ाई का ज्यादा माहौल नहीं है। लेकिन, जब से यहाँ पुस्तकालय बना है, छात्रों में एक नए ऊर्जा का संचार हुआ है।”

वह अंत में बताते हैं, “पुस्तकालय में अखबारों के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षा के लिए कई जरूरी किताबें हैं। हमने यहाँ ग्रुप स्टडी की भी शुरूआत की है। जिसका फायदा प्रत्यक्ष तौर पर हमें मिल रहे हैं।”

द बेटर इंडिया पुस्तकालय शुरू करने के लिए इस तरह के प्रयासों की सराहना करता है।

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संपादन – जी. एन झा

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