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सरकारी शौचालयों की बदहाली देख, खुद उठाया जिम्मा, शिपिंग कंटेनरों से बनायें सैकड़ों शौचालय

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भारत में, रखरखाव के अभाव में सार्वजनिक शौचालयों में कहीं अवारा पशुओं का जमावड़ा रहता है, तो कहीं इतनी बदबू होती है कि आपको वहाँ पहुँचने से पहले सौ बार सोचना होगा। लेकिन, जरा सोचिए कि ऐसे शौचालयों के पास, यदि बदबू की जगह फूलों की खुशबू आए तो? ताज्जुब मत करिए, आज हम आपको ऐसे ही शौचालय के बारे में बताने जा रहे हैं। 

हैदराबाद शहर के कई हिस्सों में ऐसे 200 से अधिक शौचालय बने हुए हैं, जो बिल्कुल निःशुल्क हैं, जिसका नाम लू कैफे है।

लू कैफे की नींव, हैदराबाद स्थित एक्जोरा एफएम कंपनी द्वारा रखी गई है, जो सार्वजनिक शौचालयों को नया रूप देने के साथ-साथ, लोगों के बीच इसके व्यवहार को भी बढ़ावा दे रही है।

Hyderabad Startup
अभिषेक नाथ

लू कैफे स्टार्टअप के संस्थापक अभिषेक नाथ कहते हैं, “लू कैफे को रीसाइकल्ड शिपिंग कंटेनरों से बनाया जाता है और यह अत्याधुनिक तकनीकों से लैस है। इसमें सेंसर लगा है, जो शौचालय को बदबू से दूर रखने में मदद करने के साथ ही, टैंक में पानी का स्तर कम होने पर हाउसकीपर को सूचित करता है।”

इन शौचालयों को पुरुषों, महिलाओं और दिव्यांगों के लिए अलग-अलग बनाया गया है। इसके लिए एक नियंत्रण केन्द्र की स्थापना की गई है, जहाँ से पेशेवरों की एक टीम द्वारा इसकी चौबीसों घंटे निगरानी की जाती है।

शौचालय के चारों और सुगंधित फूलों और पौधों को लगाया जाता है, ताकि इसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो।

अभिषेक ने मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स क्लीनिंग और सेनिटाइजेशन के क्षेत्र में 20 सालों तक काम करने के बाद पाया कि हमारे देश में साफ-सफाई और हाइजीन को लेकर कई कई चिंताएं हैं।

वह कहते हैं, “यहाँ सार्वजनिक शौचालय की कमी नहीं है, लेकिन बदहाली के कारण इसका व्यवहार नहीं होता है। इस तरह, शौचालय को बनाना आसान है, लेकिन इसका रखरखाव करना मुश्किल है।”

Hyderabad Startup
लू कैफे

जैसा कि लू कैफे की सुविधा लोगों के लिए बिल्कुल निःशुल्क है, तो इसके रखरखाव के खर्च को निकालने के लिए, अभिषेक ने यहाँ स्नैक्स और ड्रिंक्स की सुविधा विकसित की है।

शौचालय के इस्तेमाल को बढ़ावा

अभिषेक बताते हैं, “लंबी सड़क यात्राओं के दौरान अच्छे सार्वजनिक शौचालयों की कमी से वजह से मुझे स्वच्छ, फ्रेंडली और उपयोग में आसान शौचालय को बनाने की प्रेरणा मिली। हम सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल को लेकर बनी धारणाओं को तोड़ना चाहते हैं।”

अभिषेक कहते हैं कि पहला शौचालय बनने के बाद, शहर में 20 × 8 फीट से लेकर 4 × 5 आकार तक के शौचालय लग रहे हैं। उनके अनुसार, हर शौचालय में प्रतिदिन करीब 200 से 1,500 लोग जाते हैं।

इस सुविधा को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के जरिए विकसित किया गया है। इसके तहत, जगह ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) द्वारा सुनिश्चित की जाती है, जबकि संरचना को अभिषेक द्वारा बनाया जाता है।

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इस कड़ी में केएस रवि जो कि जीएचएमसी में एक सहायक चिकित्सा अधिकारी हैं, कहते हैं, “लोग बस स्टेशनों और हवाई अड्डों के पास इन शौचालयों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। यहाँ तक कि लोग अन्य शौचालयों के बजाय इसे पसंद करते हैं।”

वह बताते हैं कि उपयोगकर्ता शौचालय में कुछ दवाओं या दैनिक जरूरतों की वस्तुओं का भी अनुरोध करते हैं।

क्या हैं चुनौतियाँ

“हमें पेवमेंट, फुटपाथ और शौचालयों को बनाने के लिए जगह को चुनने में सावधानी बरतनी पड़ती है। क्योंकि, कई लोगों को अपने घरों या हाउसिंग सोसाइटी के सामने सार्वजनिक शौचालय पसंद नहीं होता है,” अभिषेक कहते हैं।

वह कहते हैं, “उपकरणों का इस्तेमाल करते समय भी विशेष सावधानी बरती जाती है। हमने पिछले वर्षों से काफी कुछ सीखा और बेहतर करने का प्रयास किया। हमारी सर्वे की एक टीम है, जो किसी क्षेत्र विशेष में उपयोगकर्ताओं की मानसिकता को समझने के लिए समर्पित है। हम शौचालय का निर्माण इसी के अनुसार करते हैं।”

क्या है भविष्य की योजना

अभिषेक कहते हैं कि वह शौचालय में बिजली के सौर ऊर्जा, मानव अपशिष्ट के ट्रीटमेंट के लिए बायो-डाइजेस्टर जैसी कई नई तकनीकों की टेस्टिंग चल रही है। उनका उद्देश्य शौचालयों को सीवेज लाइनों से मुक्त और मानव अपशिष्ट से एक उपयोगी “पोषक तत्वों से भरपूर उत्पाद” बनाना है। इसके अलावा, शहर के कुछ हिस्सों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग और वाटर लैस यूरिनल से संबंधित प्रयोग भी चल रहे हैं।

वह कहते हैं, “यूवी स्ट्रिप्स वाले एक प्रोटोटाइप की मदद से एल्कलाइन वाटर शौचालयों को बैक्टीरिया मुक्त रखता है। इसे जल्द ही बंजारा हिल्स के लू कैफे में पेश किया जाएगा।”

अन्य शहरों को लेकर अभिषेक कहते हैं कि श्रीनगर में लू कैफे का ऑपरेशन शुरू हो चुका है। चेन्नई में यह परियोजना शुरू होने वाली है। जबकि, बेंगलुरु और पुणे में अभी बातचीत चल रही है।

यह भी पढ़ें – अमेरिका से लौट, हजारों देशवासियों के आँखों को दी नई रोशनी, मिला 3 मिलियन डॉलर का पुरस्कार

मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE

संपादन – जी. एन झा

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