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अतिरिक्त कमाई के लिए शुरू किया था इडली बनाने का काम, आज है अपनी फूड कंपनी

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केरल के कोच्चि की रहने वाली रनिता शाबू के बचपन से ही खाना बनाने का काफी शौक रहा है। उनके बनाए कोज्हुकत्ती और पलाप्पम आपके मुँह में पानी ला देंगे।

लेकिन, एक फूड एंटरप्रेन्योर होना रनिता के लिए महज एक इत्तेफाक था। 

वह कहती हैं, “अपने बेटे, गोकुल के जन्म के बाद मैंने कई व्यंजनों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया, क्योंकि वह मेज पर अलग-अलग तरह के खानों को देख कर काफी खुश होता है। इसी कड़ी में, मैंने कई नए व्यंजनों को बनाना सीखा।”

हालांकि, रनिता पहले एक दुग्ध उत्पादन इकाई में सचिव के रूप में काम करती थीं। जबकि, उनके पति, शबु एक टायर कंपनी में फोरमैन थे। 

Kerala Woman
रनिता

परिवार को संभालने के साथ अपने बिजनेस को भी शुरू करने का मिला मौका

यह साल 2005 था, जब रनिता को पहली बार में 100 इडली बनाने का ऑर्डर मिला।

इसे लेकर वह कहती हैं, “हम रेसमी आर्ट्स और स्पोर्ट्स क्लब के पास रहते हैं। एक दिन, क्लब के छात्र किसी टूर पर जा रहे थे और उन्हें नाश्ते के लिए इडली की जरूरत थी। इसलिए मैंने उनके लिए सौ इडली, सांबर और नारियल की चटनी बनाए। जब वे वापस आए, तो उन्होंने मेरे खाने की काफी तारीफ की। इससे मुझे एहसास हुआ कि मैं घर का बना खाना बेचकर, कुछ अतिरिक्त कमाई कर सकती हूँ।”

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शाबू से इस विषय में बात करने के बाद, उन्होंने उसी वर्ष अपने वेंचर – गोकुलसन फूड एंड प्रोसेसिंग यूनिट की शुरुआत की। इस बिजनेस को दोनों ने मिलकर चलाना शुरू किया। उनके पति भोजन वितरण की जिम्मेदारी संभालते थे, तो रनिता खाना बनाती थीं।

कुछ ही दिनों में उन्हें कई स्थानीय होटलों से ऑर्डर मिलने लगे। इस तरह, रनिता को पहले महीने में करीब 1 हजार इडली के ऑर्डर मिले।

धीरे-धीरे, उनके पास ऑर्डर बढ़ने लगे और आगे चलकर वे सिर्फ इडली ही नहीं, इडियप्पम, वट्टायप्पम, चक्कायदा, चक्का वट्टायप्पम, नय्यप्पम, उन्नीअप्पम, कोज्हुकत्ती और पलाप्पम को भी बेचने लगे।

रनिता को अपने इस काम में अपने बेटे, गोकुल की भी पूरी मदद मिलती है। 

24 वर्षीय गोकुल कहते हैं, “मैं खाने को पैक करता हूँ और कॉलेज जाने के दौरान, इसे कई दुकानों, कॉलेज के कैंटीन और अपने दोस्तों को वितरित कर देता हूँ। इससे न सिर्फ माता-पिता की मदद हो जाती है, बल्कि मैं अपने एमबीए की फीस भी भर पाता हूँ।”

निरंतर बढ़ते ऑर्डर के कारण, रनिता और शबू ने अपनी नौकरी छोड़ दी, ताकि वे अपने बिजनेस को ठीक से चला पाएं।

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खुद से बनाया मशीन

शुरुआती दिनों में बढ़ती माँग के कारण, एक स्टोव पर खाना तैयार करना उनके लिए काफी मुश्किल हो गया था। इसके बाद, इस जोड़ी ने कम समय में अधिक खाना तैयार करने वाले कई मशीनों के बारे में पता किया, लेकिन सब बेकार था।

इसके बाद, शबू ने साल 2006 में, एक ऐसे मशीन को बनाया, जिससे एक घंटे में 450 पलाप्पम बन सकती थी और इसके लिए केवल एक व्यक्ति की जरूरत थी। इस डिजाइन को तैयार करने में, उन्हें स्थानीय मेटल कंपनी के एक इंजीनियर की भरपूर मदद मिली।

इसके अलावा, उन्होंने एक ऐसा कूकर बनाया, जिससे जिससे एक घंटे में इडियप्पम, वट्टायप्पम, चक्का वट्टायप्पम जैसे 750 व्यंजनों को बनाया जा सकता है।

उन्हें मशीनों को बनाने में करीब 30 लाख रुपए खर्च हुए। इसके लिए उन्होंने बैंक से कर्ज लेना पड़ा। इसके अलावा, उन्हें प्रधानमंत्री योजना, त्रिशूर जिला उद्योग केंद्र के जरिए महिला उद्योग कार्यक्रम और उद्यमी सहायता योजना से भी आर्थिक मदद मिली।

कोरोना महामारी से हुआ भारी नुकसान

गोकुल कहते हैं, “कोरोना महामारी से पहले हमें हर महीने 1 लाख रुपए की कमाई हो जाती थी। लेकिन, अब 60 हजार ही होते हैं। हमें उम्मीद है कि यह स्थिति जल्द ही बदल जाएगी और हम और अधिक लाभ कमा पाएंगे।”

अंत में रनिता कहती हैं कि उन्होंने इस बिजनेस को बेहतर ढंग से चलाने के लिए 7 महिलाओं को रोजगार दिया है। वे तीन शिफ्ट में काम करती हैं। 

वह कहती हैं कि ये महिलाएं उनकी गृहिणी हैं और उन्हें जिस काम को करने का अनुभव है, उससे कमाई कर वे काफी खुश हैं। उनका इरादा अपने बिजनेस के दायरे को बढ़ा कर, अधिक से अधिक महिलाओं को रोजगार देने का है।

मूल लेख: SANJANA SANTHOSH

संपादन: जी. एन. झा

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