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आर्किटेक्ट के साथ बनी अर्बन किसान भी, छत पर उगा रहीं हैं किचन के लिए पर्याप्त सब्ज़ियां

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यह सच है कि हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जो गार्डनिंग करना चाहते हैं लेकिन अपने व्यस्त जीवन में इस काम के लिए वक़्त नहीं निकाल पाते हैं। ऐसे लोगों के लिए लॉकडाउन बहुत ही अच्छा समय रहा क्योंकि उन्हें अपनी दौड़ती-भागती ज़िंदगी में अपने लिए वक्त बिताने भरपूर समय मिला। आप इसे लॉकडाउन का एक सकारात्मक पक्ष मान सकते हैं। यही वजह है कि लॉकडाउन में गार्डनिंग की जितनी कहानियां समाने आई हैं, उतनी पहले ही कभी आपने सुनी हों। आज ऐसी ही एक केरल की आर्किटेक्ट (Kerala Architect) की गार्डनिंग की कहानी हम आपको बता रहे हैं। 

यह कहानी है कोच्चि में रहने वाली एक आर्किटेक्ट, एलिज़ाबेथ चेरियन की, जो पिछले कई बरसों से अपने क्लाइंट के घरों के साथ-साथ उनके टैरेस गार्डन या होम-गार्डन डिज़ाइन कर रहीं हैं। लेकिन उन्हें खुद अपने घर में पेड़-पौधे लगाने का या फिर कुछ उगाने का समय कभी नहीं मिला। लेकिन जब लॉकडाउन हुआ तो इस 33 वर्षीय आर्किटेक्ट ने ठान लिया कि वह अपनी इस इच्छा को पूरा करेंगी और अपने घर की छत पर गार्डन लगाने की तैयारी में जुट गईं। 

अक्टूबर 2020 में वह एक नर्सरी पहुँचीं और वहाँ से अलग-अलग फलों और सब्ज़ियों के बीज लेकर आईं। दिसंबर 2020 तक उनकी छत पर मात्र 10 सेंट ज़मीन पर लगे गार्डन में 30 तरह के फल और सब्ज़ियों के पौधे थे। 

“मैंने हमेशा अपने क्लाइंट के लिए गार्डन और लैंडस्केपिंग प्रोजेक्ट्स किए और सोचती थी कि मैं अपने लिए क्यों नहीं करती? मेरी बागवानी की सफलता यह है कि मेरी किचन के लिए लगभग सभी सब्ज़ियां घर के गार्डन से ही आ जाती हैं। आलू, प्याज, अदरक और लहसुन के अलावा, मैं बाजार से कोई भी सब्जी नहीं खरीदती,” उन्होंने बताया। वह अपने अपने भाई, पति और दो बच्चों के साथ रहती है।

Kerala Urban Farmer
Her Garden

वह कहती हैं कि उनके बगीचे से इतनी अधिक उपज मिलती है कि वह नियमित रूप से अपनी कॉलोनी में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को भी सब्ज़ियां बाँट देती हैं। वह कहतीं हैं कि छत पर वह जब भी जातीं हैं तो कम से कम 20 पके हुए टमाटर उनका इंतजार कर रहे होते हैं। इतने सारे टमाटर एक बार में उनके यहाँ इस्तेमाल नहीं होंगे इसलिए वह अपने अन्य सात परिवारों को भी सब्ज़ियां खिलाती हैं। इनमें दो चाचा-चाची, दादा-दादी और उनके भाई शामिल हैं। 

एलिजाबेथ सभी पत्तेदार सब्ज़ियां उगाती हैं, जिसमें पुदीना और धनिया भी शामिल है। उसके बगीचे की कुछ अन्य सब्जियाँ टैपिओका, बैंगन, लौकी, मिर्च, बीन्स और भिंडी आदि भी हैं। “एक केरलवासी के लिए, डोसा और सांबर परिवार का मुख्य नाश्ता होता है। दोपहर के भोजन में हम कम से कम दो सब्जियां और करी खाते हैं, जबकि रात के खाने के लिए हम चिकन या दालों का सेवन करते हैं। मेरे बगीचे की बदौलत हमें सब्जियों की कोई कमी नहीं होती है,” उन्होंने आगे बताया।

कैसे बनें अर्बन गार्डनर:

सब्ज़ियां उगाने के अपने अनुभव के बारे में, वह बतातीं हैं, “मैं सभी पौधों को व्यवस्थित रूप से उगाना चाहती थी, और मैंने उसी के अनुसार बीजों को लगाया। मैंने आवश्यकतानुसार 6 घंटे या कभी रात भर के लिए चावल के पानी में बीजों को भिगो दिया। इसके बाद, मैंने चावल की भूसी, खाद और मिट्टी को मिलाकर पॉटिंग मिक्स तैयार की। मैंने मिट्टी को सही पोषक तत्व प्रदान करने के लिए पानी में गोबर, पीट केक और वर्मीकम्पोस्ट जैसे अन्य कार्बनिक पदार्थ मिलाए।”

Kerala Architect
Enough Veggies she is growing

एलिजाबेथ का कहना है कि प्रचुर मात्रा में सब्जी का उत्पादन मिट्टी को उपलब्ध जैविक पोषक तत्वों के कारण होता है। “मैंने पौधों पर कीटों को रोकने के लिए हर हफ्ते नीम के तेल का छिड़काव किया। जैसे ही पौधे और सब्जियां रासायनिक मुक्त होती हैं, पेस्ट इन पर आने लगते हैं और साथ ही, पक्षी भी। बगीचे में अगर 10 फल हैं तो हमें केवल दो खाने के लिए मिलते हैं। कभी-कभी तो बीन्स के सिर्फ छिलके मिलते हैं क्योंकि पक्षी उन्हें खा चुके हैं,” वह हँसते हुए बताती हैं। 

“मैं कई सालों से यहाँ रह रही हूँ और कौए के अलावा किसी पक्षी को नहीं देखा था। लेकिन अब बगीचे के कारण तोते और अन्य स्थानीय पक्षी यहाँ आने लगे हैं। मुझे खुशी है कि मैं पर्यावरण और पक्षियों के लिए कुछ कर पा रही हूँ,” उन्होंने आगे कहा। 

इस अर्बन गार्डनर का कहना है कि वह अपने बगीचे में अदरक और आलू उगाने की कोशिश कर रही है। “यकीन है कि मुझे सफलता मिलेगी और उम्मीद है कि आत्मनिर्भर होने के लिए मैं भविष्य में और अधिक सब्ज़ियां लगा पाऊं,” उन्होंने अंत में कहा!

अगर आपको भी है बागवानी का शौक और आपने भी अपने घर की बालकनी, किचन या फिर छत को बना रखा है पेड़-पौधों का ठिकाना, तो हमारे साथ साझा करें अपनी #गार्डनगिरी की कहानी। तस्वीरों और सम्पर्क सूत्र के साथ हमें लिख भेजिए अपनी कहानी hindi@thebetterindia.com पर!

मूल लेख: हिमांशु निंतावरे

संपादन – जी. एन झा

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