पिछले दिनों, झारखण्ड सरकार एक ऐसी योजना ले कर आयी जो अपने आप में भारत में पहली है। विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह(PVTGs) के 70,000 परिवारों तक पहुँचने का मकसद लिए इस योजना के तहत इस काम के लिए नियुक्त कर्मचारियों के द्वारा इन परिवारों तक खाना पहुंचायागा जाएगा । ऐसी उम्मीद है कि यह कुपोषण और भूखमरी से लड़ने को मददगार साबित होगी।
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झारखण्ड के कुल 32 आदिवासी समूहों में से 8 समूह , जिनके नाम, असुर, बिरहोर, पहरिया(बैगा), सबर, बिराजिया, कोरवा, मल पहरियाऔर सौरिया पहरिया हैं, को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के अंतर्गत शामिल किया गया है। ऐसा पाया गया कि अन्य जातियों के मुकाबले इन आठों के विकास में कमी रही है। सरकार द्वारा इनका चुनाव कठिन इसलिए भी है क्यूंकि ये एक जगह पर टिक कर नहीं रहते।
नयी योजना के तहत, नेशनल फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट(NFSA) के अंतर्गत आने वाले परिवारो में से हर परिवार के बीच 35 किलो चावल वितरित किया जाएगा। पिछले दिनों यह योजना सुन्दर पहारी (गोड्डा), चैनपुर(पलामू) और बरहैत(सहेबगनी) ब्लाक से आरंभ हुई। सार्वजनिक वितरण विभाग( public distribution system) के सेक्रेटरी विनयकुमार दावा करते हैं कि माह के अंत तक राज्य के सभी 24 जिलों को इस योजना में शामिल कर लिया जाएगा।
नेशनल फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट, 2013, भारत के 1.2 अरब लोगों में से दो-तिहाई जनता को कम दर पर राशन देने को बाध्य है पर फिर भी कई PVTGs में यह सफल नहीं हो पा रहा था। इस बिल के अनुसार, भारत के गरीबों में हर माह प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो अनाज मिलना चाहिए। हांलाकि कई PVTGs को यह सुविधा नहीं मिल पा रही थी। घने जंगलों में रहना इसका मुख्य कारण माना गया। इनकी घटती जनसँख्या राज्य और केंद्र सरकार, दोनों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
सरकार ने तय किया है की सखी मंडल ( महिला स्व सहायता समूह ) से 35 किलो प्लास्टिक ख़रीदी जाएगी। उम्मीद है कि इससे महिला सशक्तिकरण में भी मदद मिलेगी और गाँव की औरतों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी।
मूल लेख लूसी प्लमर द्वारा रचित
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