छत पर अपने घर की जरूरत के लिए साग-सब्जियां उगाना आम बात है। आजकल बहुत से लोग टेरेस गार्डनिंग में दिलचस्पी ले रहे हैं। अपने घर की छत या बालकनी में उपलब्ध थोड़ी-बहुत जगह को भी लोग छोटे-बड़े पौधे उगाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण है शुद्ध और स्वस्थ खाने के प्रति बढ़ती जागरूकता। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलवा रहे हैं जो पिछले 24 सालों से अपने घर की छत पर गार्डनिंग नहीं बल्कि टेरेस फार्मिंग कर रही हैं और इससे उनकी कमाई भी हो रही है।
केरल में एर्नाकुलम जिले के एडावनक्कड (Edavanakkad) गाँव की रहने वाली 46 वर्षीया सुलफत मोइद्दीन को छत पर खेती के लिए जाना जाता है। बहुत से लोगों ने उनसे प्रेरणा लेकर अपने घर की छत पर साग-सब्जियां उगाना शुरू किया है। आम नागरिकों के अलावा, केरल के कृषि विभाग से भी उन्हें काफी सराहना मिली है। उन्हें साल 2020 में केरल के ‘सर्वश्रेष्ठ टेरेस किसान’ केटेगरी में अवॉर्ड भी मिला है।
मात्र 12वीं कक्षा तक पढ़ी सुलफत आज एक सफल जैविक किसान हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने लगभग 24 साल पहले छत पर जैविक खेती शुरू की। हमारे पास एक एकड़ जमीन भी है लेकिन इसके साथ, मैंने अपनी 2000 वर्ग फ़ीट की छत को भी उपयोग किया। जिनके पास खेती के लिए जमीन नहीं है या कम जमीन है, उनके लिए छत पर खेती करने का विकल्प सबसे अच्छा है। हालांकि, उनकी छत कितनी बड़ी है और क्या यह भार झेल सकती है या नहीं, इन बातों का भी ध्यान रखना होगा। ”
जैविक तरीकों से उगाती हैं 150 तरह के फल-सब्जियां:
उन्होंने बताया कि वह छत पर साग-सब्जियां सिर्फ अपने घर के इस्तेमाल के नहीं उगाती हैं, बल्कि उनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेकर बाजार तक पहुँचाना है, क्योंकि उनके लिए खेती आजीविका का साधन है। सुलफत कहती हैं कि आज उनकी छत पर 1000 ग्रो बैग और गमले हैं, जिनमें वह फल, मौसमी सब्जियां, सलाद, मसाले आदि की फसल लेती हैं। हर एक मौसम में वह अलग-अलग सब्जियां लगाती हैं जिनमें प्याज, अदरक, हल्दी, पुदीना, धनिया, मक्का, प्याज, सौंफ आदि शामिल हैं।
फल-सब्जियों के अलावा, वह हरे चारे के रूप में इस्तेमाल होने वाले ‘अजोला’ की खेती भी करती हैं। उन्होंने कहा, “छत पर अगर सही तरीके से खेती की जाए तो काफी ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है। साथ ही, आप बिना किसी हानिकारक रसायन का इस्तेमाल किए खेती कर सकते हैं। क्योंकि आप खुद मिट्टी तैयार करते हैं तो आप पहले से ही सभी आवश्यक पोषक तत्व मिट्टी में मिला सकते हैं।”
सुलफत छत पर खेती के लिए कोकोपीट, हरी खाद, गोबर, केंचुआ खाद और सरसों खली का इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा, कम मात्रा में पत्थर का चूरा या बोन मील पाउडर भी मिलाती हैं ताकि पौधों में कैल्शियम की कमी न हो। फल-सब्जियों को कीटों से बचाने के लिए वह ट्राइकोडर्मा, नीम का तेल और वर्टिसिलियम जैसी चीजें उपयोग में लेती हैं। पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए वह ड्रिप इरीगेशन सिस्टम और ‘विक सिस्टम’ का इस्तेमाल करती हैं।
‘विक सिस्टम’ में आप ग्रो बैग या गमले के पास पानी से भरा हुआ बर्तन रखते हैं और कोई रस्सी या कपड़े की डोरी लेकर, इसका एक सिरा गमले या ग्रो बैग में पौधों के पास लगाते हैं और दूसरा सिरा पानी के बर्तन में डालते हैं। इससे पौधों को लम्बे समय तक नमी मिलती है और सिंचाई में पानी भी कम खर्च होता है।
खाद भी ज्यादातर वह खुद ही बनाने की कोशिश करती हैं। उनके पास बायोगैस प्लांट और वर्मीकंपोस्टिंग यूनिट भी है। वह बताती हैं कि बायोगैस प्लांट रसोई और खेती से निकलने वाले जैविक कचरे से चलता है। इससे उन्हें प्रतिदिन लगभग डेढ़ घंटे की गैस मिलती है और इसमें से जो ‘स्लरी’ निकलती है, उसका उपयोग वह खेती के लिए करती हैं। इसके अलावा, अपनी एक एकड़ जमीन पर सामान्य खेती के साथ-साथ, वह मछली पालन और मुर्गी पालन भी करती हैं।
छत से करती हैं अच्छी कमाई:
उन्होंने आगे बताया कि छत से मिलने वाली सभी उपज को वह स्थानीय दुकानों में और कृषि भवन में स्टॉल लगाकर बेचती हैं। उनके आसपास रहने वाले लोग उनके घर से आकर भी फल-सब्जियां खरीदकर ले जाते हैं। हर महीने सिर्फ अपनी छत से ही वह 20 हजार रुपए की कमाई कर लेती हैं। कई बार उनकी कमाई इससे ज्यादा भी हो जाती है। सुलफत कहती हैं, “छत पर खेती से पैसे कमाने के साथ-साथ मैं न सिर्फ अपने परिवार को बल्कि दूसरे लोगों को भी जैविक और शुद्ध खाना खिलाने में सक्षम हूँ। इसलिए मैं हमेशा लोगों को अपनी छत का सही उपयोग करने की सलाह देती हूँ।”
सुलफत कहती हैं कि खेती करना उनका शौक है। वह चाहती हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग खेती से जुड़ें। इसके लिए, उन्होंने अपना एक यूट्यूब चैनल ‘सुलफतस ग्रीन डायरी‘ (Sulfath’s Green Diary) भी शुरू किया ताकि जितना हो सके लोगों की मदद कर सकें। इस यूट्यूब चैनल पर वह अलग-अलग साग-सब्जियों के बारे में बताती हैं। साथ ही, लोगों को फ्री ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दे रही हैं। यह ट्रेनिंग वह कृषि विज्ञान केंद्र, एर्नाकुलम और एर्नाकुलम सोशल सर्विस सोसाइटी के साथ मिलकर दे रही हैं। बहुत से लोग उनके घर टेरेस फार्मिंग देखने भी आते हैं। उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि लोगों को कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए। अपने बच्चों को खेती से जोड़ना चाहिए। खेती करने से हम अपनी और अपने परिवार की सेहत को अच्छा रख सकते हैं।”
उनका पूरा परिवार भी उनके इस काम में सहयोग करता है। उनके बेटे, मज़हर कहते हैं, “हमारे घर में कभी बाजार से फल-सब्जियां नहीं आते हैं। सभी कुछ घर में ही उग जाता है। साथ ही, इससे एक कमाई भी हो रही है। जैविक खेती शारीरिक और मानसिक, दोनों रूप से आपको स्वस्थ रखती है।”
वह कहती हैं कि उन्हें अपने जैविक किसान होने पर गर्व है। सुलफत को कृषि क्षेत्र में उनके सफल काम के लिए समय-समय पर सम्मानित भी किया जाता रहा है। उन्हें अपने इस काम के लिए ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर लगभग 42 अवॉर्ड मिल चुके हैं। लेकिन अवॉर्ड मिलने से ज्यादा ख़ुशी उन्हें तब होती है जब लोग उनसे जुड़कर अपने घरों की छतों पर खेती शुरू करते हैं।
यकीनन, सुलफत की कहानी हम सबके लिए प्रेरणा है। खासकर कि गृहिणियों के लिए जो घर में रहकर टेरेस फार्मिंग से अच्छी कमाई कर सकती हैं। अगर आप कमाई न भी करना चाहें तो अपने परिवार और आस-पड़ोस के लोगों को शुद्ध खाना खिलाने के लिए भी यह कर सकते हैं। अगर आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें sulfathmoideenvlog@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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