शरीर की साफ-सफाई के लिए बाजार से लाये प्लास्टिक के लूफा का ज्यादातर इस्तेमाल शहरी लोग ही करते हैं। लेकिन, हम सब जानते हैं कि प्लास्टिक से बनी हुई हरेक चीज रिसायकल नहीं हो पाती हैं। ऐसी ज्यादातर चीजें कचरे के साथ, लैंडफिल या पानी के स्त्रोतों में पहुँचती हैं और प्रदूषण बढ़ाती हैं। इसलिए, आज हम आपको बता रहे हैं कि आप घर पर ही आसानी से प्राकृतिक लूफा कैसे बना सकते हैं (how to make natural loofah)।
जी हाँ, घर पर प्राकृतिक लूफा बनाना बहुत ही आसान है और जो लोग अपने घर में बागवानी करते हैं, उनके लिए तो यह और भी आसान है। गर्मी में तोरई, कद्दू, पेठा खूब उगता है। यह हम सब जानते हैं कि पेठा और कद्दू को खाने के अलावा, कई तरह की सजावट की चीज़ें बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आप तोरई का इस्तेमाल ‘लूफा’ बनाने के लिए कर सकते हैं? सिर्फ लूफा ही नहीं बल्कि आप इससे बर्तन, सिंक आदि साफ करने के लिए, स्क्रबर भी बना सकते हैं।
अब सवाल आता है कि ऐसा कैसे किया जा सकता है? इसका जवाब दे रही हैं, उत्तर-प्रदेश के कानपुर में रहने वाली अल्पना ठाकुर। 26 वर्षीया अल्पना ने अंग्रेजी विषय में मास्टर्स की डिग्री करने के साथ-साथ, ड्राइंग डिप्लोमा कोर्स भी किया है। अल्पना को बचपन से ही शौक रहा है कि वह अपने घर में इस्तेमाल होने वाली या सजावट की चीजें खुद बनाए। इसलिए, वह ‘बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट’ के भी कई प्रयोग करती रहती हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “प्राकृतिक लूफा बनाने के लिए तोरई सबसे अच्छा विकल्प है। कुछ महीने पहले मेरा अपनी बुआ के घर जाना हुआ। उनके यहां सब्जियों की खेती होती है, जहाँ मैंने कुछ सूखी तोरई देखी और उनमें से कुछ तोरई मैं अपने घर ले आई। बुआ ने कहा भी कि सूखी तोरई से तो कुछ नहीं होता, तो तुम इनका क्या करोगी? लेकिन, बचपन में मैंने अपनी नानी को सूखी तोरई से लूफा बनाकर इस्तेमाल करते हुए देखा था। इसलिए, मैंने सोचा कि क्यों न, मैं भी एक बार ऐसी कोशिश करके देखूं। फिर घर आकर मैंने इन तोरई से कई लूफा बनाये, जिनका उपयोग हम अब भी कर रहे हैं। इसलिए, आप भी अपने गार्डन में तोरई उगायें और प्राकृतिक लूफा जरूर बनाएं।”
कैसे बनाएं प्राकृतिक लूफा:
लूफा का प्रयोग त्वचा के लिये काफी फायदेमंद होता है। यह त्वचा पर एक स्क्रबर के रूप में काम करता है। साथ ही, यह त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाकर, नई कोशिकाओं का विकास करने में सहायक होता है।
अल्पना ने बताया कि प्राकृतिक लूफा बनाना बहुत ही आसान है। इसके लिए, आप अपने घर के गार्डन में उगी तोरई का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- गार्डन में लगी तोरई की बेल से जब आपको तोरई मिलने लगे, तो सीजन के अंत में आप इनमें से कुछ तोरई बेल पर ही सूखने दें।
- जब ये तोरई पूरी तरह से सूख जाएँ, तब इन्हें बेल से तोड़ लें।
- अब तोरई को दोनों सिरों से हल्का सा काटकर, इसके सारे बीज निकाल लें।
- इसके बाद इसे पानी में भिगोएं, थोड़ी नरम होने पर आप आसानी से इसका छिलका उतार पाएंगे।
- सूखी तोरई का छिलका उतारने पर, अंदर आपको तोरई का गुदा नहीं बल्कि फाइबर मिलता है।
- अब इसे आप दो-तीन टुकड़ों में काट लें।
- आपका प्राकृतिक लूफा तैयार है।
कितना अच्छा है न कि आपको एक तोरई से न सिर्फ अगले साल के लिए बीज मिलते हैं, बल्कि मुफ्त में दो-तीन प्राकृतिक लूफा भी मिल रहे हैं। हालांकि, अल्पना कहती हैं कि इस प्राकृतिक लूफा को हर रोज इस्तेमाल करने के बाद, अच्छे से सुखाना बहुत जरूरी है, जिससे इसमें फंगस नहीं लगेगी और यह ज्यादा दिनों तक चलेगा। इस प्राकृतिक लूफा को आप तीन-चार महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं।
अल्पना आगे कहती हैं कि नहाते समय, आप इसे अपने हाथ-पैर और एड़ियां साफ़ करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। लूफा के अलावा, आप इसे बर्तन धोने के स्क्रबर के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि आप अपने घर में आसानी से तोरई उगा भी सकते हैं। अगर आप दो बेल भी लगाते हैं, तो आपको न सिर्फ शुद्ध-पौष्टिक सब्जियां मिलेंगी बल्कि मुफ्त में घर के लिए लूफा और स्क्रबर भी मिल जाएंगे।
तोरई उगाने के लिए आप 15 इंच का गमला ले सकते हैं। इसमें आप बगीचे की मिट्टी में गोबर खाद मिलाकर भर दें। फिर इसमें बाजार से खरीदे गए तोरई के बीजों को लगा दें। तोरई के बीज खरीदते समय कोशिश करें कि आप देसी किस्म के बीज लें। बीज लगाने के बाद गमले में पानी दें। गमले को लगभग एक हफ्ते तक ऐसी जगह रखें, जहाँ सीधी धूप न आती हो। एक हफ्ते में बीज अंकुरित होने लगते हैं और फिर आप गमले को धूप में रख सकते हैं। नियमित रूप से पानी देने और देखभाल करने से दो-ढाई महीनों में बेल पर तोरई आने लगती है। अच्छी उपज के लिए तोरई की बेल को सहारा देना जरूरी है। इसके लिए, आप किसी रस्सी या लकड़ी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
बनाती हैं और भी इको फ्रेंडली चीजें:
अल्पना कहती हैं कि पिछले दो सालों से वह अपनी जीवनशैली को प्रकृति के अनुकूल ढालने में जुटी हुई है। उन्होंने कहा, “यह सच है कि आप एक दिन में इको फ्रेंडली जीवनशैली नहीं अपना सकते हैं। यह सालों-साल चलने वाली प्रक्रिया है, जो एक बार में नहीं बल्कि धीरे-धीरे ही अपनाई जाती है। पिछले दो सालों में मैंने अपनी निजी इस्तेमाल की चीजें जैसे- फेसपैक, स्क्रब, तेल आदि को खुद बनाना शुरू किया है। ये सब मैं अपने घर में उगी चीजें जैसे- एलोवेरा, गुलाब, करी पत्ता आदि से ही बनाती हूँ। अब मैं प्राकृतिक शैम्पू बनाने पर भी काम कर रही हूँ।”
उनका यह सफर इतना आसान नहीं है, क्योंकि कई बार उनके आसपास के लोग भी उनकी बात नहीं समझते हैं। लेकिन, अल्पना कभी ऐसी परिस्थितियों से हार नहीं मानती हैं। वह हमेशा सबको यही समझाती हैं कि इको फ्रेंडली चीजें इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है। अपने घर में गार्डनिंग करने के साथ-साथ, उन्होंने कचरा-प्रबंधन भी शुरू किया है। वह प्लास्टिक, मेटल और कांच आदि के कचरे को नगर निगम की कचरा गाड़ी को देती हैं। साथ ही, रसोई से निकलने वाला कचरा जैसे- फल-सब्जियों के छिलकों को गाय को खिला देती हैं।
उन्होंने बताया, “मैं गार्डन से निकलने वाला कचरा जैसे- पुराने फूल-पत्तियां, मिट्टी आदि, खाद बनाने तथा गार्डनिंग से जुड़े अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल कर लेती हूँ। मैं फूलों की पत्तियों को दूसरे कार्यों के लिए भी इस्तेमाल कर रही हूँ। जैसे- मैं गुलाब की पत्तियों से फेसपैक और होली के लिए प्राकृतिक रंग भी बना लेती हूँ।”
अल्पना ने अपना सोशल मीडिया पेज भी बनाया है। जिस पर वह पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवनशैली के बारे में कई पोस्ट साझा करती रहती हैं। ताकि, वह दूसरों को भी इको-फ्रेंडली जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें।
अगर आप उनसे इको-फ्रेंडली लाइफस्टाइल के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनका पेज देख सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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