आधी रात को, नॉर्वे से आर्कटिक सर्कल में सूरज को देखना। ड्रेक पैसेज, जहां तीन महासागरों का पानी आपस में मिलता है, वहां खुद को बचाए रखना और नॉदर्न लाइट्स (पोलर लाइट्स) की सुंदरता को पास से देखना। ऐसी और कई बातें लिखी हैं, 82 वर्षीय अरुण नारायण सबनीस की डायरी में।
भारत के हर एक कोने, और 90 देशों की यात्रा करने के बाद, मुंबई के अरुण नारायण सबनीस अब उन जगहों की लिस्ट बना रहे हैं, जहां वह अभी तक नहीं गए हैं। वह कहते हैं, “अभी मुझे साइबेरिया, मंगोलिया, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान के साथ युगांडा घूमना है। जहां, गोरिल्ला उसके प्राकृतिक आवास में देखने को मिलते हैं। साथ ही, वन्यजीव सफारी के लिए तंजानिया, यूक्रेन – तत्कालीन रूसी क्षेत्र, कोलंबिया, इक्वाडोर और गैलापागोस द्वीप समूह भी जाना बाकी है।”
यात्रा के शौक़ीन लोगों को, वह स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया जाने का सुझाव देते हैं। ये दोनों ही उनकी पसंदीदा जगहों में से हैं। साथ ही, वह आइसलैंड के लिए अपने प्यार और इसके पोलर ऑपोज़िट एंबिएंस के बारे में बात करते हैं। वह बताते हैं, “यह असामान्य जगह, दुनिया का सबसे युवा देश है- जहां लगभग 700 साल पहले अटलांटिक महासागर में ज्वालामुखी फटने के कारण एक द्वीप बना था। यह पूरा देश लावा से बना है, जिसके छोटे-छोटे द्वीपों में कई ज्वालामुखी फूट रहे हैं। उनके पास ग्लेशियर्स हैं और तैरते हुए हिमखंडों (Icebergs) से भरी झीलें भी हैं। इसकी मिट्टी इतनी गर्म है कि वहां किसी चीज की खेती नहीं होती है। वहां, आप सिर्फ वह घास उगा सकते हैं, जिसे वहां भेड़ें चरती हैं। इसलिए यह एक ऐसा देश हैं, जो सिर्फ भेड़ के मांस खाकर जीवित है।”
ऐसी बातें एक शाकाहारी से सुनना काफी अजीब लगता है। उन्होंने, 70 की उम्र में बचे हुए ब्रेड और कुछ फलों के सहारे साउथ पोल की यात्रा पूरी की थी।
अरुण से बात करना, किसी भूगोल की क्लास करने जैसा लगता है। वह खुद भी अपने शिक्षक को दिल से याद करते हैं और कहते हैं, “मैंने बेलगाम (कर्नाटक) के एक स्कूल में पढ़ाई की। मेरे भूगोल के शिक्षक, अक्सर फटे कपड़ों या धोती और काली टोपी में स्कूल आते थे। वह शायद हमारे गांव से बाहर भी कभी नहीं गए होंगे। लेकिन वह हमें ऐसे भूगोल पढ़ाते थे, जैसे कि वह पूरी दुनिया घूम चुके हों। 40 के दशक में, ट्रेन से यात्रा करना भी मुश्किल था, तो विमानों और जहाजों की बात तो छोड़ ही दें। लेकिन वास्को डी गामा, पुर्तगाल से Cape of Good Hope के रास्ते गोवा कैसे आये, जैसी कहानियों को वह कुछ इस तरह से पढ़ाते थे कि जब मैं Cape of Good Hope गया, तो मुझे लगा कि मेरे भूगोल के शिक्षक मेरे साथ ही हैं। वह भी मेरे साथ, वास्को डी गामा के जहाज को भारत की ओर मुड़ते हुए देख सकते हैं।” इन बातों को सुनते हुए, आप 82 साल के इस शख्स के जज्बातों को महसूस कर सकते हैं।
आखिर उन्हें यात्रा में इतनी दिलचस्पी क्यों थी? अरुण कहते हैं कि मुझे खुशी है कि आपने पूछा।
अरुण के जन्मदिन के मौके पर, उनकी पोती और वेब सीरीज ‘गॉन गेम’ की अभिनेत्री, श्रिया पिलगांवकर ने सोशल मीडिया पर ‘अराउंड द वर्ल्ड विद अजोबा’ नाम से एक वीडियो डाला। दस मिनट के इस वीडियो में अरुण की यात्रा से जुड़े कई हसीन पल शामिल हैं।
श्रिया कहती हैं, ”वह मेरे नाना हैं और पिछले पांच सालों में, मैं समझ गई थी कि अजोबा (नाना) ने अपने एक-एक लक्ष्य को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प लिया है। जब उन्होंने यात्रा करना शुरू किया, तब किसी नंबर या लक्ष्य के बारे में नहीं सोचा था। उन्हें कुछ साल पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था, और तभी उन्होंने मुझे बताया कि मेरे परनाना का सपना था पोम्पेई (इटली) जाना।”
मैंने उनसे वादा किया कि ठीक होने के बाद, उन्हें पोम्पेई ले जाऊंगी। श्रिया और उनके अजोबा ने 2015 में आइसलैंड की यात्रा की। जिसके बाद वह उन्हें भूमध्यसागरीय (Mediterranean) क्रूज पर भी ले गईं। साथ ही, उन्होंने अजोबा की लिस्ट की सभी जगहों पर घूमने का फैसला किया। उन्होंने इटली में नेपल्स और पोम्पेई, बार्सिलोना में शुरुआत की और 2016 में स्पेन और फिर माल्टा भी गए।
लेकिन अरुण का पोम्पेई की यात्रा करने का सपना, अपने ‘सख्त, अनुशासनात्मक और सत्तावादी’ पिता की याद के साथ शुरू हुआ। अरुण कहते हैं, “मुझे याद नहीं है कि मेरे पिता ने मुझसे कभी, कुछ पूछताछ करने के अलावा, कोई और बात की हो। मुझे हमेशा सिखाया गया था कि कभी भी उनसे सवाल मत करना।”
वह आगे कहते हैं, “जब मैं M.A. की पढ़ाई पूरी करने के बाद नासिक से लौटकर घर आया। तब एक दिन मैंने अपने पिता के आदेशों के खिलाफ उनकी अलमारी चेक की। वहां मुझे हैदराबाद और कोलकाता के बहुत पुराने यात्रा के पर्चे और पोस्टकार्ड मिले। आलमारी में पोम्पेई की एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर वाली पोस्टकार्ड बुक भी थी। तभी मेरे पिता ऑफिस से लौटे और मुझसे पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं? लेकिन मुझपर चिल्लाने की बजाए, उन्हेंने मुझे अपने यात्रा के सपनों के बारे में बताया, जो वह पूरा नहीं कर सके। यह पहली बार था, जब उन्होंने मुझसे पूछताछ नहीं की थी।”
वे कहते हैं, “23 साल की उम्र में, मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने पिता को कितना गलत समझता था।” उन्होंने बताया कि आखिरकार, जब अरुण इटली पहुंचे, तो वहां के दर्शनीय स्थलों और “इटली के शाकाहारी व्यंजनों” का कितना आनंद लिया। वह कहते हैं, “हम रोम में एक होमस्टे में रहे और इटेलियन पिज्जा और स्पेगेटी का स्वाद भी चखा।”
लेकिन उनकी यात्रा रिटायरमेंट के बाद, 80 के दशक में शुरू हुई। उन्होंने सबसे पहले कैलाश मानसरोवर की यात्रा की और 60 की उम्र में ओम पर्वत पर ट्रेकिंग की।
वे कहते हैं, “80 के दशक में, जैसे ही नया साल आता था, मैं पूरे साल के लिए कैलेंडर पर छोटी और लंबी यात्राओं की तैयारी करने लगता था।”
वह कहते हैं, “मेरे करियर के पहले 10-12 वर्षों तक, मैं इंटर स्कूल और ग्रेजुएशन के छात्रों को मनोविज्ञान और लॉजिक स्टडीज़ पढ़ाता था। बाद में, मेरा चयन UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) में हुआ और मुझे गोवा के एक सरकारी कॉलेज में पढ़ाने के लिए चुना गया और कुछ समय बाद, मैं एक कॉलेज का प्रिंसिपल बन गया।”
अरुण बाद में, CIDCO (सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ़ महाराष्ट्र) में शामिल हो गए। यह महाराष्ट्र सरकार का एक उपक्रम है। जिसका काम था, बंदरगाह के पार नवी मुंबई को स्थापित करना।
वह कहते हैं, “मैं शिक्षक से एक एस्टेट मैनेजर, एक मार्केटिंग मैनेजर और एक पर्सनल मैनेजर बन गया। मैं 25 साल से CIDCO के साथ था। जिसके बाद मैं 1995 में 55 साल की उम्र में रिटायर हुआ।” रिटायरमेंट के बाद भी, वह अगले पांच सालों तक सलाहकार के रूप में वहीं काम करते रहे।
उनका कहना है कि कंसल्टेंसी फीस, म्यूचुअल फंड से मिले डिविडेंट और SIPs में निवेश से ही, उनकी यात्रा का खर्च निकलता है। वह कहते हैं, “रियल एस्टेट बाजार में होने के कारण, मैंने कई फ्लैट खरीदे और बेचे और वहां से भी पैसा कमाया।”
अरुण बताते हैं, “रिटायरमेंट की उम्र के पहले ही मैंने अपनी बेटी, अभिनेत्री सुप्रिया पिलगांवकर की शादी के साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा कर लिया था। मेरा बेटा भी पायलट बन गया था और उसकी शादी भी हो गई। इसलिए, मेरे पास यात्रा करने के अलावा और कुछ काम नहीं था।” वह हंसते हुए कहते हैं कि उनके बेटे के पायलट भत्ते से माता-पिता को यात्रा भत्ता भी मिलता है ।
साल 2000 तक, अरुण ने अपनी घरेलू यात्राओं के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में अधिकांश जगहों की यात्रा पूरी कर ली थी।
साउथ पोल में एक शाकाहारी की दुर्दशा
अरुण को एनसाइक्लोपीडिया पढ़ना बेहद पसंद है। वह किसी भी जगह की यात्रा करने से पहले, उस जगह के लोगों और जगह को बेहतर ढंग से समझने के लिए उसेक बारे में जरूर पढ़ते हैं। वह कहते हैं, “आप यात्रा के लिए अपने खुद के नोट्स बनाएं, आपको क्या पसंद है और क्या नहीं, इसका अवलोकन करके घूमने निकलें।”
श्रिया कहती हैं, “अजोबा को उनकी ट्रैवल डायरियों में लिखते हुए देखने के बाद, मैंने भी डायरी लिखने की शुरुआत की। वह सब कुछ विस्तार से लिखते हैं और अब मैं भी वही करती हूँ।” वह कहती हैं कि अपनी यात्रा के दौरान, उनके अजोबा को गाइडों की तुलना में 100% ज़्यादा जानकारी होती है।
उनकी अंटार्कटिका की यात्रा सबसे यादगार थी।
अरुण कहते हैं, “2010-11 के आसपास, मैं आर्कटिक गया था। मैं 72° उत्तर की ओर गया और नॉर्वे में आधी रात के सूरज को देखने का आनंद लिया। वहां 21 जून को सूरज डूबता ही नहीं है, इसलिए लोग वहां आधी रात को आसमान में सूरज को देखने जाते हैं।”
वह आगे कहते हैं, “मैं 21 दिसंबर को नॉर्दन लाइट्स देखने के लिए फिर वहां गया। उस दिन आसमान में नारंगी, पीले, बैंगनी, नीले और हरे रंग की रोशनी की खूबसूरत लकीरें होती हैं। वह रोशनी, एक पहाड़ी के पीछे से एक बहती नदी की तरह दिखाई देती है, जो पूरे आकाश को रौशन करती है।”
अपने आर्कटिक अनुभव के बाद, उन्होंने साउथ पोल घूमने जाने का फैसला किया। उन्होंने बताया, “मैंने एक एजेंट के माध्यम से अपनी यात्रा बुक की थी। लेकिन मुझे एक साथी ढूंढना पड़ा, क्योंकि इसकी कीमत 15 दिनों के लिए आठ से नौ लाख रुपये थी। मेरा एक दोस्त, जो कई बार मेरे साथ यात्रा कर चूका है, वह मुझसे तक़रीबन आठ साल बड़ा है। उस समय, मैं लगभग 74 साल का था। वह मेरे साथ अंटार्कटिका आने के लिए तैयार हो गया। हालांकि वह सेहत से थोड़ा कमजोर था, लेकिन यात्रा का बेहद शौकीन था।”
वह हंसते हुए कहते हैं, “हालांकि, जहाज पर मैं अकेला शाकाहारी था। इसलिए मुझे सिर्फ रोटी, फल, सलाद और सब्जियां खाकर गुजारा करना पड़ता था।
दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी भाग में ड्रेक मार्ग से होते हुए केप हॉर्न की यात्रा बेहद रोमांचकारी थी। जहां अटलांटिक, प्रशांत और अंटार्कटिक के अलग-अलग तापमान को झेलना एक साहसिक काम था।
दक्षिण अमेरिका की यात्रा को याद करते हुए अरुण कहते हैं, “मैं अपने एक ट्रिप के दौरान, ज़्यादा यात्रा नहीं करता। दक्षिण अमेरिका से इस यात्रा में लगभग 60 घंटे लगते हैं, जो नर्क के सामान है। जहाज का लुड़कना और पिचिंग आपको बीमार कर देते हैं। यहां तापमान 45 डिग्री के ऊपर चला जाता है और जैसे ही अगली लहर आती है, तापमान 30 डिग्री नीचे आ जाता है। ऐसा एक मिनट में 10 से 12 बार होता है। आप कुछ भी खा-पी या सो भी नहीं सकते। यह मेरे लिए एक मृत्यु के निकट का अनुभव था।”
अरुण ने बताया, “लेकिन एक बार जब आप वहां पहुंच जाते हैं, तो अंटार्कटिका की सील, व्हेल, पेंगुइन और बर्फ से ढकी जमीन जो संयुक्त राज्य अमेरिका का डेढ़ गुना भाग है, का नज़ारा आपको चौंका देता है।
क्या वह आपकी गर्लफ्रेंड है?
श्रिया, अपने अजोबा को देखते हुए बड़ी हुई हैं। उनकी वजह से ही आज उन्हें कई अनदेखी-अनसुनी जगहों का पता लगा। यात्रा करने का शौक भी उन्हें, अपने अजोबा के कारण ही हुआ। वह दिल से खुद को ‘ट्रैवल एजेंट’ कहती हैं और इसके लिए आजोबा का शुक्रिया अदा भी करती हैं। उन्होंने बताया, “अजोबा ने एक बार मुझसे कहा था कि बिना प्लानिंग के की गई यात्रा ही सबसे अच्छी और यादगार होती है। हालांकि, वह खुद बड़ी प्लानिंग के साथ यात्रा करते हैं। लेकिन उनकी ऐसी सोच और ऐसी यात्रा करने की इच्छा रखना दिखाता है कि उनके लिए उम्र सिर्फ एक नंबर है।”
32 वर्षीया श्रिया का मानना है, “दादा-दादी, नाना-नानी आपको जो देते हैं, वो Google नहीं दे सकता।” इस नाना-पोती की जोड़ी ने पहली बार साथ में राजस्थान की यात्रा की थी।
श्रिया बिना थके अपने प्यारे नानाजी के बारे में बात करती हैं और कहती हैं, “वह लोगों, स्थानों और संस्कृतियों से प्यार करते हैं, वह बहुत कुछ पढ़ते भी रहते हैं। असल में, वह बहुत जिज्ञासु हैं। वह ऐसे व्यक्ति हैं, जो किसी से भी बातचीत कर सकते हैं।”
अजोबा अरुण कहते हैं, “मुझे श्रिया के साथ यात्रा करना अच्छा लगता है, क्योंकि वह मेरी बहुत देखभाल करती है। वह मुझे दवा लेना याद दिलाती है। मेरे साथ ढेर सारी बातें करती है। साथ ही, अच्छी तस्वीरें लेने में भी मेरी मदद करती है। वह कंप्यूटर और स्मार्टफोन के बारे में बहुत कुछ जानती है, इसलिए मैं उससे इंस्टाग्राम और फेसबुक को हैंडल करने के बारे में बहुत कुछ सीखता रहता हूँ।”
अपनी एक ट्रिप की मजेदार घटना को याद करते हुए अरुण कहते हैं, ”भूमध्यसागर (Mediterranean) की यात्रा के दौरान जहाज पर, ज्यादातर लोगों ने सोचा कि वह मेरी गर्लफ्रेंड है (हंसते हुए)। मुझे लगता है कि उनके लिए, आपकी आधी उम्र से कम उम्र की गर्लफ्रेंड होना आम बात है। लेकिन जब उन्हें पता चला कि मैं अपनी पोती के साथ यात्रा कर रहा हूं, तो उन्हें आश्चर्य हुआ।”
श्रिया आगे कहती हैं, “मैं अपने नाना के बहुत करीब हूं और बहुत सारे लोग हैं जिनके पास यह नहीं है। इसलिए जब भी हम साथ में घूमते हैं, तो लोग हमें ऐसे देखते हैं, जैसे वह कुछ खास देख रहे हैं।”
अपनी बनाई गई फिल्म के बारे में बताते हुए, श्रिया कहती हैं कि वह पिछले पांच से छह वर्षों से अपने अजोबा को फिल्मा रही थीं। दूसरे लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने उनके लिए यह तोहफा बनाने का फैसला किया।
श्रिया फिलहाल, अपनी यात्राओं का ट्रैवल पॉडकास्ट बनाने और अपनी ट्रैवल डायरी को एक किताब के रूप में प्रकाशित करने की कोशिश में लगी हैं। वह कहती हैं, “हालांकि COVID ने आजोबा की यात्रा की योजनाओं पर रोक लगा दी है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि वह 100 देशों का दौरा करने के अपने लक्ष्य को पूरा जरूर करेंगें और मैं निश्चित रूप से उनका साथ देना चाहती हूँ।”
तो हर एक युवा यात्री के लिए उनकी क्या सलाह है?
अंत में वह कहते हैं, “अगर आपको यात्रा करने में मज़ा आता है, तो खुला दिमाग रखें और नई-नई जगहों से नए तजुर्बे लेकर आएं।”
मूल लेख- योशिता राव
संपादन – अर्चना दुबे
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