यह कहानी कर्नाटक के कूर्ग जिले से संबंध रखनेवाले के ए पोन्नन्ना (K A Ponnanna) की है, जिन्हें जीव-जंतुओं से खास लगाव है, क्योंकि वह पशु-पक्षियों के बीच ही बड़े हुए हैं। उनका कहना है कि एक समय था, जब लोग अपने आस-पास या फिर अपने घरों में जानवरों को रखते थे। उन्होंने पुराने समय को याद करते हुए कहा, “मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच कमाल का संबंध था, क्योंकि हम जंगली जानवरों को पाला करते थे और उनकी देखभाल किया करते थे। हम आजीविका के लिए जानवरों पर ही निर्भर थे।”
द बेटर इंडिया से बात करते हुए, 70 वर्षीय पोन्नन्ना (K A Ponnanna) ने कहा कि जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई, उनकी नौकरी उन्हें नासिक, हैदराबाद, देवलाली, धरंगधारा और जम्मू समेत कई जगहों पर ले गई। उन्होंने भारतीय सेना के एक प्रशिक्षण संस्थान, स्कूल ऑफ़ आर्टिलरी के संचार उपकरण क्षेत्र में एक टेक्निशियन के तौर पर काम किया।
रिटायरमेंट के बाद, फिर किए गए नियुक्त
K A Ponnanna, 1993 में सेवानिवृत्त हुए और उन्हें भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में सुरक्षा गार्ड (Security Guard) के रूप में नियुक्त किया गया। हालांकि, कुछ ही दिनों में उनका जॉब प्रोफाइल पूरी तरह से बदल गया और यहीं से उनके जीवन की एक रोचक यात्रा शुरू हुई।
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि 2018 में रिटायर होने तक पोन्नन्ना (K A Ponnanna) वैसे तो Security Guard के पद पर तैनात थे, लेकिन उनका काम फील्ड असिसटेंट का था। साथ ही, वह मधुमक्खियों के संरक्षक के तौर पर भी काम कर रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपने रोल में बदलाव के बावजूद, Security Guard के अपने पद को नहीं छोड़ा। पोन्नन्ना ने हमेशा गार्ड की प्रोफ़ाइल के लिए ही वेतन लिया। उन्होंने सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस (CES) विभाग में शोध कर रहे छात्रों की खूब सहायता की।
क्या है उनकी कहानी?
Security Guard के रूप में नौकरी के कुछ दिनों बाद, IISc के तत्कालीन एसोसिएट प्रोफेसर, राघवेंद्र गडगकर ने K A Ponnanna से बातचीत की। राघवेंद्र ने बताया, “उन्होंने परिसर में मधुमक्खियों के कुछ छत्तों को रेस्क्यू करने में मदद की थी। मैंने उनके उत्साह और निडर रवैये के बारे में सुना था। मैंने देखा कि उन्हें मधुमक्खियों में काफी दिलचस्पी थी। हमारी बातचीत ने मुझे यह समझने में मदद की, कि कैसे वह अपने गाँव में मधुमक्खियों और ततैयों की देखभाल करते हुए बड़े हुए हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “पोन्नन्ना के अनुभव को देखते हुए, मैंने उनसे रिसर्च में वॉलेंटियर के तौर पर काम करने का अनुरोध किया। इस काम में मधुमक्खियों को ढूंढना और छत्ते को सुरक्षित रूप से संभालना, समय-समय पर सैंपल्स और यहां तक कि मधुमक्खियों को इकट्ठा करना शामिल है। यह कोई आसान काम नहीं था, लेकिन पोन्नन्ना ने बहुत शानदार तरीके से काम किया।”
वह K A Ponnanna के कौशल और मधुमक्खियों के प्रति उनके जुनून से काफी प्रभावित थे। यही वजह थी कि राघवेंद्र ने सुरक्षा विभाग से पोन्नन्ना को लैब में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया। राघवेंद्र बताते हैं, “सरकारी संस्थान में, ऐसे अग्रीमेंट्स थोड़े मुश्किल होते हैं। हालांकि, प्रशासन को K A Ponnanna की वैल्यू पता थी। इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई।”

Credits: KG Haridasan.
एक दोस्त, गुरु और दार्शनिक
K A Ponnanna का कहना है कि वह रोमांचित थे और उन्होंने अपने प्रोफाइल में होने वाले हर बदलाव का पूरा आनंद लिया। वह कहते हैं, “मैंने मधुमक्खियों को हैंडल करने की कभी कोई क्लास या औपचारिक कोचिंग नहीं की थी। मधुमक्खियों को संभालते समय मैंने कभी कपड़े या दस्ताने नहीं लगाए या किसी उपकरण का प्रयोग नहीं किया। इसके अलावा, मुझे विभागों और उनके लोकेशंस के बारे में भी पता नहीं था। मेरे गांव में, सभी मधुमक्खियों और वन्यजीवों को संभालते थे, इसलिए यह मेरे लिए कोई नया काम नहीं था।”
लैब में छात्रों और शोधकर्ताओं की सहायता करते-करते, पोन्नन्ना धीरे-धीरे चीज़ें सीख गए। उन्होंने आगे कहा, “मैं अब मधुमक्खियों की प्रजातियों, जहरीले और गैर विषैले कीड़ों, सांपों और अन्य जंगली जानवरों के बीच फर्क समझ सकता हूं। मैंने अपने ज्ञान का प्रयोग छात्रों को उनके रिसर्च में मदद करने और मधुमक्खियों व ततैया को संभालने के लिए फील्ड विज़िट के दौरान उनका साथ देने में किया।”
K A Ponnanna, छात्रों के लिए हैं पिता व गुरु
छात्र, उनके साथ बैचेस में जाकर अपनी शैक्षणिक ज़रूरतों के लिए सैंपल्स इकट्ठा करने में मदद लेते थे। सेंट जेवियर्स कॉलेज (मुंबई) के जीव विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर, सुजाता देशपांडे, उन पीएचडी छात्रों में से एक थीं, जिन्होंने पोन्नन्ना से मदद ली।
वह कहती हैं, “मैं 1999 व 2005 के बीच पढ़ाई कर रही थी। मेरे लिए पोन्नन्ना, पिता और गुरु की तरह थे। वह समय के बहुत पाबंद थे और जरूरत पड़ने पर देर तक काम करने में कभी झिझकते नहीं थे। एक स्टूडेंट होने के नाते, हमें ततैयों की तलाश में बहुत इधर-उधर घूमना पड़ता था। लेकिन पोन्नन्ना को सबसे सटीक जगह पता रहती थी कि वे कहां मिलेंगे। इस वजह से हमारा काम आसान हो जाता था। पोन्नन्ना मधुमक्खियों को इतनी देखभाल और सुरक्षा के साथ संभालते थे, जैसे वे उनके बच्चे हों।”

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सुजाता कहती हैं कि एक छोटे से कीड़े को भी अगर कोई चोट पहुंचाए, तो उन्हें बहुत दुख होता था। वह आगे कहती हैं, “उनकी देखरेख में मधुमक्खी के बॉक्सेज़ परिसर में सुरक्षित रहते थे। पोन्नन्ना की देखभाल के कारण कीड़ों में संक्रमण और बीमारियों की संभावना भी कम रहती थी।” उन्होंने बताया कि फील्ड असिसटेंट पोन्नन्ना के मधुमक्खियों के बारे में पारंपरिक ज्ञान ने छात्रों को कीड़ों को समझने में मदद की और उनके रिसर्च की वैल्यू को बढ़ाया।
सैकड़ों मधुमक्खियों को बचाया
सुजाता का कहना है कि समय के साथ-साथ पोन्नन्ना की भूमिका, एक संरक्षक के रूप में और बढ़ती ही गई। उन्होंने बताया, “बेंगलुरू के शहरी क्षेत्रों में मधुमक्खियों के हैबिटेट को बहुत नुकसान पहुंचा और पोन्नन्ना के पास अक्सर उन्हें बचाने के लिए फोन आते थे। इससे पहले कि कोई मधुमक्खियों के छत्तों को नष्ट करे, वह तुरंत मौके पर पहुंच जाते।”
एसोसिएट प्रोफेसर, राघवेंद्र कहते हैं, “उन्होंने कीटनाशक जलाने या छिड़काव से नष्ट होने वाली सैकड़ों मधुमक्खियों को बचाया है और उन्हें IISc परिसर के अंदर एक सुरक्षित जगह दी है। बहुत से लोग अपने घरों के आसपास के छत्तों से छुटकारा पाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने सावधानी से उन्हें हटा दिया और बिना किसी मधुमक्खी को नुकसान पहुंचाए उन्हें दूसरी जगह फिर से बसा दिया।“ उनका कहना है कि पोन्नन्ना छात्रों के मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक थे।
‘जानवरों पर दया करो’
राघवेंद्र 2012 में रिटायर हुए और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) में प्रोफेसर के पद पर संस्थान में शामिल हुए। पोन्नाना लगभग उसी समय सेवानिवृत्त हुए और उन्हें एक सलाहकार के रूप में फिर से नियुक्त कर लिया गया और उन्होंने छात्रों की मदद करना जारी रखा। पोन्नन्ना, शोधकर्ताओं की सहायता के अलावा, सांपों, अन्य कीड़ों और जानवरों को बचाने का काम भी करते हैं।
मधुमक्खी संरक्षण पर अपने विचार साझा करते हुए पोन्नन्ना कहते हैं कि मधुमक्खियों के आवास और छत्तों के विनाश के कारण ही शहद में मिलावट बढ़ी है। पोन्नन्ना कहते हैं, “खेतों में कीटनाशकों का प्रयोग, मधुमक्खियों की आबादी को प्रभावित करता है और अक्सर खराब देखभाल के कारण कीड़े इंफेक्टेड हो जाते हैं। इन सभी कारणों से मधुमक्खियों की जनसंख्या और शहद उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसी वजह से कंपनियां शहद में मिलावट करती हैं और केवल इसकी मिठास के कारण इसे बेचती हैं, प्राकृतिक शहद के औषधीय गुणों के लिए नहीं।”
बड़े बदलाव की है जरूरत
पोन्नन्ना कहते हैं कि एक बड़े बदलाव की जरूरत है। ताकि प्रकृति में जानवरों, कीड़ों और अन्य जैव विविधता वाले तत्वों का सही तरह से ध्यान दिया जा सके। उनका कहना है, “छात्रों को रिसर्च को दौरान ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिकल अप्रोच रखना चाहिए। लैब में प्रयोग करने के अलावा, छात्रों को पता होना चाहिए कि वे फील्ड में जो पढ़ रहे हैं उसे कैसे संभालना है। यह केवल जुनून और विषयों के प्रति संवेदनशीलता से ही संभव हो सकता है।”
एक उदाहरण देते हुए वह कहते हैं, “जब इंसान चांद पर उतरने में कामयाब हो गया हो तो हाथी को पकड़ना मुश्किल नहीं है। लेकिन हम जानवर को गले से नहीं पकड़ सकते और न ही उसका गला घोंट सकते हैं। हमें पक्षियों, कीड़ों, जानवरों और अन्य प्रजातियों के प्रति करुणा दिखाने की जरूरत है। हमें उनके गुस्से, व्यवहार और अन्य विशेषताओं को समझना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे।
मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे
संपादन- जी एन झा
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