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सिर्फ ५० रुपये में गले के कैंसर से पीड़ित लोगो को ठीक कर रहे है बंगलूरू के डॉ. राव !

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बंगलूरू स्थित डॉ. विशाल राव ने एक ऐसे चिकित्सा यंत्र की खोज की है जिससे गले के कैंसर से पीड़ित लोग सर्जरी के बाद भी ठीक से बोल सकते है। और इस यंत्र की क़ीमत सिर्फ ५० रूपये है।

गले के कैंसर से पीड़ित, कोलकता का एक मरीज, पिछले २ महीने से कुछ खा नहीं पा रहा था। वो निराश था, कुछ बोलता नहीं था और उसे नाक में लगे एक पाइप से खाना पड़ रहा था। गरीब होने की वजह से वो अच्छी मेडीकल ट्रीटमेंट नहीं ले सकता था। उसके डॉक्टर ने उसे बंगलुरु के एक सर्जन के बारे में बताया। वो बंगलुरु गया, डॉक्टर से मिला और ट्रीटमेंट शुरू की। सिर्फ ५ मिनट के ट्रीटमेंट के बाद वो बोल पा रहा था, खाना खा रहा था और उसके बाद वो अपने घर जाने के लिये तैयार था। ये सब मुमकिन हुआ डॉ. विशाल राव की वजह से!

३७ वर्षीय डॉक्टर राव  ने बताया –

“उस दिन ३ घंटे के ऑपरेशन के बाद जब मैं ऑपरेशन थियटर से बाहर आया, तब मैंने देखा कि कोलकता का वो मरीज मेरी राह देख रहा था। जैसे ही उसने मुझे देखा, वह दौड़ता हुआ आया और मुझसे लिपट गया और अपनी आवाज वापस पाने की ख़ुशी में मुझे धन्यवाद देने लगा।”

डॉ. राव एक ओंकोलोजिस्ट है और बंगलूरू में हेल्थ केयर ग्लोबल (HCG) कैंसर सेंटर में सर और गले की बीमारियों के सर्जन है।

आम तौर पर मिलने वाले गले के प्रोस्थेसीस की किमत १५००० रुपये से लेकर ३०००० रुपये होती है और उन्हें हर ६ महीने के बाद बदलना पड़ता है। लेकीन डॉ. राव के प्रोस्थेसीस की किमत सिर्फ ५० रुपये है।

throat cancer patients

डॉ. विशाल राव

 

वोइस प्रोस्थेसीस (Voice prosthesis ) उपकरण सिलिकॉन से बना है। जब मरीज का पूरा वोइस बॉक्स या कंठनली (larynx) निकाला जाता है तब ये यंत्र उन्हें बोलने में मदत करता है। सर्जरी के दौरान या उसके बाद विंड-पाइप और फ़ूड- पाइप को अलग करके थोड़ी जगह बनायी जाती है। ये यंत्र तब वहा बिठाया जाता है। डॉ. राव ने समझाया कि फेफड़ो से आनेवाली हवा से वौइस् बॉक्स में तरंगे उत्सर्जित होती है। प्रोस्थेसीस की मदत से फ़ूड पाइप में कंपन (वाइब्रेशन) पैदा होती है जिससे बोलने में मदद मिलती है।

डॉ. राव कहते है-

“अगर आप फ़ूड-पाइप की मदत से फेफड़ो में हवा (ऑक्सीजन) भर दे, तो वहां कंपन और आवाज पैदा करके, दिमाग उसे संदेश में परिवर्तित करता है। यंत्र एक साइड से बंद होता है जिससे अन्न या पानी फेफडे में नहीं फैलता। यह यंत्र २.५ सेमी लम्बा है और इसका वजन २५ ग्राम है।”

२ साल पहले AUM वोइस प्रोस्थेसीस फाउंडेशन का निर्माण तब किया गया जब कर्नाटक से एक मरीज डॉ. राव से मिलने आया।

throat cancer patients

प्रोस्थेसीस का फ्रंट व्यूह

डॉ. राव याद करते है –

“उस आदमी ने एक महीने से कुछ खाया नहीं था और वो ठीक तरह से बोल भी नहीं पा रहा था। सर्जरी के बाद उसके गले से वोइस बॉक्स निकाल दिया गया था। और उसके लिए प्रोस्थेसीस का खर्चा उठाना मुश्किल था। वो जब मुझसे मिलने आया तब परेशान था और जिंदगी से हार चूका था।”

डॉ. राव ने उसे मदद करने का वादा किया।

पहले जब भी डॉ. राव के पास ऐसे मरीज आते थे, वो दवाईयो की दूकान में जाकर डिस्काउंट मांगते थे, पैसे इकठ्ठा करते थे और फिर मरीजों को दान कर देते थे। पर इस कर्नाटक के मरीज के एक दोस्त, शशांक महेस ने डॉ. राव से कहा कि पैसो का इंतज़ाम वो खुद कर लेंगे और साथ में उनसे एक गंभीर सवाल पूछा –

“आप इन सब लोगो पर निर्भर क्यूँ है? आप खुद ऐसे मरीजो के लिये कोई इलाज या कोई यंत्र क्यों नहीं बनाते?”

throat cancer patients

डॉ. राव को पता था कि ये उनकी क्षमता के परे है। उन्हें इसके लिये एक यंत्र का निर्माण करना था, जिसकी कल्पना उन्हें थी पर उसे बनाने के लिये तंत्रीय ज्ञान उन्हें नहीं था। पर शशांक एक उद्योगपति था और जो कौशल डॉ. राव के पास नहीं था वह उसमे था।  डॉ. राव ने सारा टेक्निकल प्लान तैयार किया और शशांक ने उसे हकीकत में तब्दील किया। शशांक ने डॉ. राव की मदद करने का आग्रह किया। और दोनों ने अपनी समझ, मेहनत और पैसो की पूंजी लगाके इस यंत्र का आविष्कार किया।

डॉ. राव कहते है –

”गरीबो को फटे-पुराने कपडे दान में देना मुझे कभी पसंद नहीं था, क्यूंकि गरीब होने के बावजूद वे इससे ज्यादा के हकदार है। इसी तरह सिर्फ इसलिए कि मेरे मरीज़ गरीब है, मैं उनके लिए निचले स्तर का कोई यंत्र का निर्माण नहीं करना चाहता था। आखिर वो भी मरीज़ है, उन्हें भी बेहतरीन इलाज करवाने का हक़ है। इसलिए हमने इस यंत्र को बनाने के लिए सबसे बेहतरीन मटेरियल का इस्तेमाल किया ”

डॉ. राव और शशांक ने इस यंत्र को पेटेंट करने के की अर्जी दी है। यह यंत्र बाज़ार में अगले महीने से उपलब्ध हो जायेगा। HCG के साइंटिफिक तथा  एथिकल कमिटी ने भी इसे मरीजो के लिये इस्तेमाल करने के लिये स्वीकृति दे दी है। शुरुआत में जांच के उपलक्ष्य से इस यंत्र को ३० मरीजो को इस्तेमाल करने दिया जायेगा।

वोइस प्रोस्थेसिस महंगा होता है, क्योंकि वो विदेश से ख़रीदा जाता है। इस यंत्र को बनाने के लिये डॉ. राव और शशांक को करीब दो साल लगे। इसकी क़ीमत बहुत ही कम रखी गयी ताकि गरीब मरीज भी इसे इस्तेमाल कर सके।

वे कहते है-

”हमारा मानना है कि अपनी आवाज़ पर हर किसीका अधिकार है। हम किसी मरीज़ से उसकी आवाज़ हमेशा के लिए सिर्फ इसलिए नहीं छींन सकते क्यूंकि वह गरीब है। ”

डॉ. राव ने अब तक ३ मरीजो पर इसका उपयोग किया है। डॉक्टर इस यंत्र को और भी बेहतर बनाना चाहते है ताकि देश भर के कैंसर अस्पताल इसका इस्तेमाल कर सके।

throat cancer patients

प्रोस्थेसीस का साइड व्यूह

 

“सबसे पहले पीनिया के एक चौकीदार पर मैंने इसका प्रयोग किया। २ साल पहले उसके प्रोस्थेसिस के लिये हमने पैसे जमा किये थे। यंत्र का इस्तेमाल सिर्फ ६ महीने तक करना चाहिये पर गरीब होने के कारण उसने २ साल तक उसका उपयोग किया। मैंने उस पर AUM वोइस प्रोस्थेसिस का इस्तेमाल किया। एक दिन नाईट ड्यूटी से उसने मुझे कॉल करके कहा कि यंत्र अच्छी तरह से चल रहा है और वो बहुत खुश है। ये सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। ”

-डॉक्टर ने बड़े ही गर्व से कहा।

उपकरण को AUM क्यों कहा जाता है?

डॉ. राव कहते है –

“पुरातनकाल में ॐ को “अउम” (AUM) नाम से जाना जाता था।  ‘अ’ मतलब निर्माण, ‘उ’ मतलब  जीविका और ‘म’ मतलब  विनाश। इन तीनो के आधार पर ही यह संसार चलता है। वोइस बॉक्स खोने के बाद जब ये उपकरण मरीज को दिया जाता है तब उसका पुनर्जन्म होता है, ठीक उसी तरह से जैसे सृष्टि  की उत्पत्ति ओम से ही हुयी है।”

मूल लेख तान्या सिंग द्वारा लिखित।

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