Quantcast
Channel: The Better India – Hindi
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3559

मिहिर सेन: वह भारतीय जिसने सात महासागरों को जीता!

$
0
0

हते हैं कि अगर ठान लिया जाये तो कुछ भी असंभव नहीं और ऐसे ही अटूट हौसलें और विश्वास का प्रतीक थे, भारतीय तैराक- मिहिर सेन। मिहिर सेन, एक कैलेंडर वर्ष में पांच अलग-अलग महाद्वीपों के पांच अलग-अलग समुद्रों में तैरने वाले पहले भारतीय थे।

मिहिर सेन को प्रसिद्धि मिली जब उन्होंने साल 1958 में द इंग्लिश चैनल को तैरकर पार किया। 27 सितंबर, 1958 को 14 घंटे और 45 मिनट में इंग्लिश चैनल को पार करने वाले वे पहले भारतीय और पहले एशियाई भी बने। साल 1966 में वे तैराकी से हर महाद्वीप में जल निकायों को पार करने वाले पहले व्यक्ति बन गए।

16 नवंबर 1930 को पश्चिम बंगाल, ब्रिटिश भारत के पुरुलिया में एक ब्राह्मण परिवार में मिहिर सेन का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम डॉ. रमेश सेनगुप्ता तथा माता का नाम लीलावती था। पिता एक फिजीशियन थे। उन्होंने अपना शुरुआती जीवन गरीबी में बिताया। बहुत मुश्किलों से उन्होंने अपनी स्नातक तक पढ़ाई पूरी की।

फोटो: पंडित नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित के साथ मिहिर सेन/ बी ऍन इंस्पायरर

वे हमेशा से इंग्लैंड में वकालत पढ़ना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत भी की। इंग्लैंड में वकालत के दौरान उन्होंने एक महिला तैराक के बारे में पढ़ा जिसने इंग्लिश चैनल तैरकर पार किया था। उसके बारे में पढ़कर सेन इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने भी ऐसा ही कुछ करने की ठान ली।

वहां से उनकी प्रसिद्ध, सफ़ल और जाहिर तौर पर सर्वश्रेष्ठ तैराक बनने की यात्रा शुरू हुई। मिहिर सेन ने अपने रास्ते में आने वाली हर समस्या पर विजय प्राप्त की और एक कैलेंडर वर्ष में सभी पांच महाद्वीपों में तैरने वाले पहले व्यक्ति बन गए। सात समुद्रों को तैरने के लिए उनका उद्देश्य मुख्य रूप से राजनीतिक था। असाधारण दृढ़ विचारों और अपरंपरागत महत्वाकांक्षा के राष्ट्रवादी युवा होने के नाते, वे युवाओं के लिए साहस का एक उदाहरण स्थापित करना चाहते थे और दुनिया को दिखाना चाहते थे कि भारतीय क्या कुछ कर सकते हैं।

द टेलेग्राफ के लिए एक लेख में, मिहिर सेन की बेटी सुप्रिया सेन लिखती हैं कि चैनल पर विजय प्राप्त करने पर, मेरे पिता ने कहा था, “जब मुझे अपने पैरों के नीचे ठोस चट्टान महसूस हुई, तो वह अहसास बहुत अलग था। मेरा गला रुंध गया था और खुशी के आँसू मेरी थकी हुई आंखों में उमड़ पड़े थे। केवल मुझे पता था कि मैं अपने पैरों के नीचे धरती को महसूस करने के लिए किस पीड़ा से गुजरा था। मां पृथ्वी कभी इतनी सुरक्षित, इतनी मोहक महसूस नहीं हुई। यह एक यात्रा का अंत था- एक लंबी और अकेली तीर्थयात्रा।”

अपनी पत्नी बैला के साथ मिहिर सेन/टेलेग्राफ इंडिया

इस सफलता के बाद साल 1958 में वे भारत लौटे। यहां आकर भी उन्होंने मीडिया की मदद से कई अभियान चलाये, जिससे सभी भारतीयों को तैराकी क्लबों का हिस्सा बनने का मौका मिले। वे पूरी दुनिया को और खासकर यूरोप को दिखा देना चाहते थे कि भारतीय कितने सक्षम हैं। ऐसा करने के लिए वे बस तैरना चाहते थे और जीतना चाहते थे।

मिहिर सेन का अगला साहसिक कारनामा श्रीलंका के तलाईमन्नार से भारत के धनुष्कोटी तक तैराकी का था, जो उन्होंने 6 अप्रैल, 1966 को आरम्भ कर 25 घंटे 44 मिनट में पूरा किया। इसके पश्चात्‌ मिहिर सेन ने 24 अगस्त, 1966 को 8 घंटे 1 मिनट में जिब्राल्टर डार-ई-डेनियल को पार किया, जो स्पेन और मोरक्को के बीच है।

फोटो: विकिमीडिया

जिब्राल्टर को तैर कर पार करने वाले मिहिर सेन प्रथम एशियाई थे। लगता था कि उन्होंने सभी सात समुद्रों को तैर कर पार करने की जिद ठान ली है और वास्तव में उन्होंने अनेक समुद्र पार करके साल 1966 में 5 नए कीर्तिमान स्थापित किए।

12 सितंबर, 1966 को उन्होंने डारडेनेल्स को तैरकर पार किया। डारडेनेल्स को पार करने वाले वे विश्व के प्रथम व्यक्ति थे। उसके केवल नौ दिन पश्चात् यानी 21 सितंबर को वास्फोरस को तैरकर पार किया। 29 अक्टूबर, 1966 को उन्होंने पनामा कैनाल को लम्बाई में तैरकर पार करना शुरू किया। इस पनामा कैनाल को पार करने के लिए उन्होंने 34 घंटे 15 मिनट तक तैराकी की।

मिहिर सेन ने कुल मिलाकर 600 किलोमीटर की समुद्री तैराकी की। उन्होंने एक ही कैलेंडर वर्ष में 6 मील लम्बी दूरी की तैराकी करके नया कीर्तिमान स्थापित किया। पाँच महाद्वीपों के सातों समुद्रों को तैरकर पार करने वाले मिहिर सेन विश्व के प्रथम व्यक्ति थे।

मिहिर सेन की साहसिक और बेजोड़ उपलब्धियों के कारण भारत सरकार की ओर से साल 1959 में उन्हें ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया और साल 1967 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से नवाज़ा गया। इसके अलावा वे ‘एक्सप्लोरर्स क्लब ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष भी थे। उनके नाम पर गिनीज़ बुक में कई वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं।
स्त्रोत

उन्होंने साल 1972 में, एक्सप्लोरर्स क्लब के माध्यम से भारत में बांग्लादेशी शरणार्थियों को फिर से व्यवस्थित करने में मदद की। भारत सरकार से वित्तीय सहायता के बिना, उन्होंने लगभग 300 परिवारों की देखभाल की। मिहिर सेन ने कई व्यवसाय भी शुरू किये पर साल 1972 में राजनैतिक बदलाव के चलते वे असफल रहे।

मिहिर सेन का आखिरी वक़्त बहुत ही कष्टपूर्ण बीता। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में अपनी याददश्त खो दी थी। 11 जून, 1997 को मिहिर सेन का कोलकाता में 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पर दुःख की बात यह है कि इतने महान तैराक के बारे में हमारे देश के किसी भी स्कूल-कॉलेज में नहीं पढ़ाया जाता।

मिहिर सेन, एक महान भारतीय और बंगाल का महान पुत्र! एक आदमी जिसने बड़े सपने देखने की हिम्मत की, चुनौतियों को गले लगा लिया और असंभव काम किया! मिहिर सेन ने जो हासिल किया, वह हासिल करना यक़ीनन नामुमकिन है। इसलिए आज कम से कम हम उन्हें याद कर एक शिक्षक और नायक के तौर पर उन्हें पहचान दे सकते हैं।

( संपादन – मानबी कटोच )


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

The post मिहिर सेन: वह भारतीय जिसने सात महासागरों को जीता! appeared first on The Better India - Hindi.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3559

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>