Quantcast
Channel: The Better India – Hindi
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3559

108 साल पुराना यह सरकारी स्कूल अपनी बंजर ज़मीन में खेती कर, हर साल कमा रहा है 4 लाख रूपये!

$
0
0

मैंगलुरु के मितूर में 108 साल पुराने एक कन्नड़-माध्यमिक सरकारी स्कूल, उच्च प्राथमिक विद्यालय को देखेंगें तो लगेगा कि कोई निजी स्कूल है। इसका कारण हैं, इस स्कूल की सुविधाएँ और वातावरण!

दरअसल, स्कूल की 4.5 एकड़ भूमि, जो कभी बंजर हुआ करती थी, उसे एक खेत के रूप में तब्दील कर स्कूल के विकास के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। और इसी खेत से लगभग 3-4 लाख रूपये सालाना कमाई की जाती है। इस पहल का श्रेय जाता है स्कूल प्रशासन, शिक्षकों और छात्रों को।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल परिसर की इस भूमि पर, पिछले साल लगभग 650 अरेका पौधे लगाए गए थे। यहां लगे लगभग 50 नारियल के पेड़ भी अच्छी पैदावार देते हैं। इसमें औषधीय पौधे भी हैं और विभिन्न प्रकार की सब्जियां भीं।

“हम अपने बगीचे में विभिन्न प्रकार की सब्जियां और फल पैदा करते हैं। हम इसे स्कूल के ‘मिड दे मील’ के लिए इस्तेमाल करते हैं और बचे हुए फल सब्जियों को बेच दिया जाता है,” हेडमास्टर मोहन पी. एम ने कहा। सब्जियों में बैंगन, करेला, पालक, धनिया, ककड़ी, व केला और पपीता जैसे फल शामिल हैं।

फोटो: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

स्कूल में वर्तमान में 112 छात्र और आठ कर्मचारी सदस्य हैं। प्रत्येक छात्र स्वच्छता के लिए जिम्मेदार है। हर दिन, परिसर को साफ रखने के लिए एक कक्षा को आवंटित किया जाता है। वे सब्जी के बागों में भी काम करते हुए उनकी देख-रेख करते हैं।

स्कूल हेडमास्टर के मुताबिक इस पहल में मुख्य भूमिका निभाई है स्कूल डेवलपमेंट एंड मोनिटरिंग कमिटी (एसडीएमसी) के अध्यक्ष एडम मितूर ने। उन्होंने स्वयं स्कूल को वित्तीय सहयता प्रदान की। इसके अलावा स्थानीय लोगों के अलावा, भारतीय रेलवे ने भी स्कूल के विकास में मदद की है। उन्होंने लड़कियों के लिए शौचालय, वर्षा जल संचयन आदि के निर्माण हेतु सहायता की।

स्कूल के शिक्षक प्रोजेक्टर तकनीक के जरिये बच्चों को पढ़ाते हैं और साथ ही स्कूल में दोपहर समाचार भी प्रसारित होते हैं। इसके अलावा स्कूल में छात्रों के लिए रीडिंग कार्नर व पुस्तकालय भी है।

विद्यालय सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाता है, जिनमें मुफ्त किताबें, जूते, वर्दी, छात्रवृत्ति, क्षीरा भाग्य के तहत दूध, दोपहर के भोजन की योजना, स्वास्थ्य जांच, आदि शामिल है। स्कूल प्रशासन ने एंडॉवमेंट फंड (बचत कोष) भी शुरू किया है और इससे आने वाले ब्याज का उपयोग लड़कियों को छात्रवृत्ति देने के लिए किया जाता है।

स्कूल में नामांकन बढ़ाने के लिए, स्कूल के अधिकारियों और एसडीएमसी ने गांवों में एक अभियान चलाया और सभी माता-पिता से अंग्रेजी-माध्यम के विद्यालयों के बजाय अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने के लिए आग्रह किया।

स्कूल के शिक्षक भी स्कूल में देख-रेख के लिए रखे गए अतिरिक्त कर्मचारियों का खर्च ख़ुशी-ख़ुशी उठाते हैं। “एसडीएमसी और दानकर्ताओं के दिए दान के अलावा, स्थायी कर्मचारी भी अपने वेतन से कुछ पैसे का योगदान करते हैं। हम इस स्कूल को बचाना चाहते हैं,” ये कहना है स्कूल के ही एक शिक्षक का। इस स्कूल ने कई सरकारी पुरस्कार भी जीते हैं।

( संपादन – मानबी कटोच )


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

The post 108 साल पुराना यह सरकारी स्कूल अपनी बंजर ज़मीन में खेती कर, हर साल कमा रहा है 4 लाख रूपये! appeared first on The Better India - Hindi.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3559

Trending Articles