Quantcast
Channel: The Better India – Hindi
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3563

हुल्लड़ मुरादाबादी : क्या बताएँ आपसे…मसख़रा मशहूर है, आंसू बहाने के लिए!

$
0
0

तनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरावाला, पाकिस्तान में हुआ था। बंटवारे के दौरान वे परिवार के साथ मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश आ गए थे। इनका वास्तविक नाम सुशील कुमार चड्ढा था।

हुल्लड़ मुरादाबादी ने शुरुआत में तो वीर रस की कविताएं लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही हास्य रचनाओं की ओर उनका रुझान हो गया और हुल्लड़ की हास्य रचनाओं से महफिले ठहाको से भरने लगी। 1962 में उन्होंने ‘सब्र’ उप नाम से हिंदी काव्य मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बाद में वह हुल्लड़ मुरादाबादी के नाम से देश दुनिया में पहचाने गए।

हुल्लड़ मुरादाबादी ने हर छोटी सी बात को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। कविताओं के अलावा उनके दोहे सुनकर श्रोता हंसते-हंसते लोटपोट होने लगते। उन्होंने कविताओं और शेरो-शायरी को पैरोडियों में ऐसा पिरोया कि बड़ों से लेकर बच्चे तक उनकी कविताओं में डूबकर मस्ती में झूमते रहते।

आईये आज पढ़ते हैं उनकी दो बेहतरीन कवितायें –

मसख़रा मशहूर है, आंसू बहाने के लिए…

मसख़रा मशहूर है आंसू बहाने के लिए
बांटता है वो हंसी सारे ज़माने के लिएघाव सबको मत दिखाओ लोग छिड़केंगे नमक
आएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिएदेखकर तेरी तरक्की ख़ुश नहीं होगा कोई
लोग मौक़ा ढूंढते हैं काट खाने के लिए

फलसफ़ा कोई नहीं है और न मकसद कोई
लोग कुछ आते जहां में हिनहिनाने के लिए

मिल रहा था भीख में, सिक्का मुझे सम्मान का
मैं नहीं तैयार झुककर उठाने के लिए

ज़िंदगी में ग़म बहुत हैं हर क़दम पर हादसे रोज़
कुछ समय तो निकालो मुस्कुराने के लिए

क्या बताएँ आपसे

क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए

भूख, महंगाई, गरीबी, इश्क़ मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े

रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है

(हुल्लड़ मुरादाबादी की हास्य कविता)

साभार- कविता कोश


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

The post हुल्लड़ मुरादाबादी : क्या बताएँ आपसे… मसख़रा मशहूर है, आंसू बहाने के लिए! appeared first on The Better India - Hindi.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3563

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>