खेलों की सबसे अच्छी बात यह है कि आवश्यकता पड़ने पर लोग किसी भी जाति, पंथ, धर्म और स्थिति के बावजूद एकजुट हो मदद के लिए तैयार होते हैं।
इस सप्ताह की शुरुआत में, क्रिकेटर हरभजन सिंह ने पूर्व एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता हाकम भट्टल की सहायता की। दरअसल भट्टल वर्तमान में लिवर और किडनी की बीमारियों के चलते पंजाब के संगरूर के एक निजी अस्पताल में अपने जीवन के लिए जूझ रहे हैं।
उनकी पत्नी ने जब आर्थिक मदद के लिए सरकार से अनुरोध किया तब भट्टल की हालत के बारे में लोगों को पता चला। उनकी पत्नी ने कहा कि उन्होंने भट्टल के इलाज़ में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी और अब पैसे न होने के कारण अस्पताल प्रशासन उन्हें बाहर जाने के लिए कह रहा है।
इसके बाद, पहले खिलाड़ी रह चुके केन्द्रीय खेल मंत्री, राज्यवर्धन सिंह राठौर ने सोमवार को उनके इलाज के लिए परिवार को 10 लाख रुपये दिए।
I have ordered an immediate release of ₹10 lakhs for the medical treatment of Havildar Hakam Bhattal. Officers of @IndiaSports @Media_SAI have visited him, and we are keeping track of the situation. I wish him a quick recovery.
We are proud to stand by our heroes. https://t.co/9jQdURF8W0
— Rajyavardhan Rathore (@Ra_THORe) 31 July 2018
इस खबर को पढ़ने के बाद हरभजन सिंह ने ट्विटर पर भट्टल से सम्पर्क करने के लिए उनका फ़ोन नंबर और पता माँगा। इसके बाद वे भट्टल के परिवार से मिलने गए और कहा कि उनके अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद वे उनकी हर सम्भव मदद करेंगें।
Can u send me his contact no plz https://t.co/QvRmxg7dBX
— Harbhajan Turbanator (@harbhajan_singh) 30 July 2018
द टेलीग्राफ से बात करते हुए हरभजन ने बताया, “भट्टल न केवल एक gold मैडल विजेता है बल्कि ध्यानचंद अवार्ड विजेता भी हैं। मुझे यह पढ़कर बहुत दुःख हुआ कि भट्टल की पत्नी को यह कहना पड़ा कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और सरकार को देश के लिए सम्मान जीतने वालों की मदद करनी चाहिए।”
साथ ही टीम इंडिया के पूर्व स्पिनर ने यह साफ़ किया कि वे यह सब किसी पब्लिसिटी के लिए नहीं बल्कि इंसानियत के नाते कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “कृप्या इसे ऐसे मत लिखना कि लोगों को लगे कि मैं कोई पब्लिसिटी कर रहा हूँ। वास्तव में, मैं सिर्फ इंसानियत के लिए कुछ करना चाहता हूँ…..इंसानियत के नाते कुछ फ़र्ज़ बनता है।”
“हालांकि मैं एक हद तक ही कुछ कर सकता हूँ। लेकिन जब भी कोई घटना मेरे दिल को छू जाती है तो मैं व्यक्ति के धर्म या जाति को देखे बिना मदद के लिए हाथ अवश्य बढ़ाता हूँ। आख़िरकार हम सब पहले इंसान हैं,” उन्होंने बताया।
साल 1972 में भट्टल भारतीय सेना में शामिल हुए थे और 6 सिख रेजीमेंट में सेवारत थे। साल 1978 में उन्होंने बैंकॉक एशियाई खेलों में 20 किलोमीटर पुरुषों की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था। साल 2008 में उन्हें पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने ध्यानचंद अवार्ड से सम्मानित किया था।
खेल मंत्रालय की मदद से पहले भट्टल की पत्नी ने शिकायत की, कि कैसे देश के लिए सम्मान लाने वाले खिलाडियों को सरकार भूल जाती है।
“जब तक खिलाड़ी खेलते हैं और स्वर्ण पदक जीतते हैं तब तक ही उनका ख्याल रखा जाता है। उसके बाद कोई उन्हें पूछता भी नहीं है। इनका केस इसका उदाहरण है। इस परिस्थिति में उन्हें हमारी मदद करनी चाहिए थी,” उनकी पत्नी ने कहा। इसके बाद खेल मंत्रालय ने भट्टल के इलाज़ की जिम्मेदारी ली।
( संपादन – मानबी कटोच )
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