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दुर्गा पूजा : इस अनोखे पंडाल में दृष्टिहीन भी देख पाएंगे दुर्गा माँ को!

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पूरे देश भर में नवरात्री की धूम है। पर पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा की बात ही अलग है। कोलकाता में लगे हर एक पंडाल को अलग-अलग तरीके से सजाया जाता है। दूर-दूर से लोग इन पंडालों की सजावट और ख़ासकर, दुर्गा माँ की प्रतिमा को देखने आते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि जो लोग देख नहीं पाते, उनका भी तो मन करता होगा माँ की इस ममतामयी मूर्ती को देखने का!

ऐसे ही ख़ास लोगों के लिए इस साल, बालीगंज में समाज सेवी संघ ने अनोखी पहल शुरू की है। दृष्टिहीनों के लिए ख़ास तौर पर व्यवस्था की गयी है कि वे इस दुर्गा पूजा में माँ की प्रतिमा से लेकर पंडाल की सजावट तक, सभी कुछ छू कर महसूस कर सकते हैं।

पंडाल में एक कलाकृति

पूजा के प्रवेश द्वार पर ही दुर्गा माँ के चेहरे की एक विशाल प्रतिमा है, जिसमें तीसरी आंख भी है, और इसे 12,000 लोहे की कीलों से बनाया गया है। इस कलाकृति को छूकर कोई भी दृष्टिहीन व्यक्ति मिट्टी से बने पारंपरिक दुर्गा मूर्तियों के चेहरे की कल्पना कर सकता है।

पंडाल की भीतरी दीवारें भी लोहे के कील व नट-बोल्ट से सजाई गयी हैं ताकि इन्हें छूकर महसूस किया जा सके। इस 73 वर्ष पुरानी दुर्गा पूजा के पूर्व अध्यक्ष दिलीप बनर्जी ने बताया, “हमारे कार्यकर्तायों को यह विचार एक स्कूल में दृष्टिहीन बच्चों के साथ समय बिताने पर आया। जैसे ही लोग मूर्तियाँ और पंडाल बनते देखते हैं, तो दुर्गा पूजा के लिए उत्साहित हो जाते हैं। ऐसे ही दृष्टिहीन लोगों को लकड़ी के तख्तों पर हथोड़े और लोहे की कील आदि की आवाज से पता चलता है कि दुर्गा पूजा की तैयारियां हो रही हैं।”

ब्रेल भाषा में एक दुर्गा मन्त्र

पंडाल की दीवारों पर ‘माँ’ और ‘जय माँ दुर्गा’ जैसे शब्द ब्रेल भाषा (वह भाषा जिसे दृष्टिहीन व्यक्ति पढ़ सकते हैं) में लिखे गये हैं। प्रत्येक दृष्टिहीन व्यक्ति को पूजा का विवरण, दुर्गा माँ के मन्त्र आदि की एक शीट भी ब्रेल में दी जाएगी।

इसके अलावा पंडाल के बाहर एक आँखों के अस्पताल से भी कुछ कर्मचारी मौजूद होंगे, जहाँ पर पंडाल घुमने के लिए आने वाले लोग चाहे, तो नेत्रदान करने के लिए भी फॉर्म भर सकते हैं।

पंडाल की दीवारों को कील और धागे से सजाया गया है

इस पंडाल को जितना हो सके उतना इस तरीके से सजाया गया है कि दृष्टिहीन व्यक्ति एकदम घर जैसा महसूस करें और साथ ही अन्य लोगों को इन लोगों के प्रति सम्वेदनशील होने की प्रेरणा मिले और साथ ही अपनी आँखें दान करने का हौंसला भी मिले।

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संपादन – मानबी कटोच


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