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एक एथलीट और स्पोर्ट्स टीचर; पर अगर आप अमोल के पैरों को देखंगे तो चौंक जायेंगे!

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गभग एक दशक पहले, महाराष्ट्र के रंगोली गाँव में जब अमोल ने क्रिकेट मैच जीता था, तो हर कोई उनकी वाहवाही कर रहा था। लेकिन जब उन्होंने मैच के बाद अपने जूते उतारे तो सभी लोग उनके पैर देखकर हैरान रह गए।

27 वर्षीय अमोल संखन्ना के लिए लोगों की यह हैरानी अब कोई नई बात नहीं है। दरअसल, बचपन में हुई एक सड़क दुर्घटना में अमोल के दाहिने पैर की पाँचों उंगलियाँ चली गयी और अब वे लगभग 40% विकलांग हैं।

अमोल एक एथलीट, क्रिकेटर और एक स्पोर्ट्स टीचर हैं। आज वे महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के रंगोली गाँव के लिए आशा की किरण बन गए हैं। अमोल के लिए 2 साल की उम्र में ही उनकी दुनिया बदल गयी थी।

अमोल ने बताया, “हमारा घर, गाँव की मुख्य सड़क पर था। एक दिन खेलते-खेलते मैं कब रोड पर पहुँच गया, पता ही नहीं चला। तभी एक बस मेरे पैर के ऊपर से चढ़कर निकल गयी और इस दुर्घटना में मैंने अपने दाएं पैर की पाँचों उंगलियाँ खो दी।”

लेकिन यह बात कभी भी उनको रोक नहीं पाई और वे हमेशा अपने गाँव की क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे।

“सातवीं कक्षा तक मैं कभी भी खेलने के लिए अपने गाँव से बाहर नहीं गया था,” उन्होंने कहा।

एक बार कुम्भोज गाँव के उनके एक दिव्यांग दोस्त ने उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए मुंबई चलने को कहा और अमोल तुरंत इसके लिए तैयार हो गये। इस अनुभव ने उन्हें खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

अमोल संखन्ना

उन्होंने फिजिकल एजुकेशन में ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन किया और अपने गाँव रंगोली से 30 किमी दूर मिनचे गाँव में एक माध्यमिक विद्यालय और जूनियर कॉलेज में स्पोर्ट्स टीचर के तौर पर नौकरी शुरू की। एथलेटिक्स में भाग लेने के बारे में अमोल ने कभी भी नहीं सोचा था।

“एक बार, मेरे क्रिकेट कोच अतुल धनवड़े ने मुझे एथलेटिक्स में कोशिश करने के लिए कहा। शुरू में, यह मुश्किल लगा, लेकिन मुझे दौड़ना बहुत पसंद था,” अमोल ने हँसते हुए कहा।

अपने लगभग एक दशक के करियर में अमोल ने राष्ट्रीय स्तर पर 100 मीटर, 200 मीटर, 4*100 मीटर दौड़ और 4*400 मीटर रिले में पांच पदक जीते हैं।

राज्य स्तर पर, अमोल ने 20 से भी ज्यादा मेडल जीते हैं, जिनमें से 10 स्वर्ण पदक एथलेटिक्स और लॉन्ग जम्प में हैं। साल 2013 में, उनकी टीम ने मुंबई में आयोजित राज्य स्तरीय क्रिकेट चैम्पियनशिप जीती।

अमोल के जीते हुए कुछ मेडल और सर्टिफिकेट

हालांकि, अमोल का यहाँ तक का सफ़र मुश्किलों से भरा हुआ रहा।

वे बताते हैं, “गांवों में खेलों को बहुत महत्व नहीं दिया जाता है, और पैरा-स्पोर्ट्स के बारे में तो कोई बात भी नहीं करता है। कहीं से भी हमें प्रतियोगिता-स्थल तक जाने के लिए किराये की भी मदद नहीं मिलती है। अगले महीने, मुझे हरियाणा और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए जाना है, लेकिन आने-जाने का किराया मुझे अपनी बचत के पैसे से ही निकालना होगा।”

यहाँ एक और बहुत बड़ी कमी है और वह है मार्गदर्शन की।

“अधिकांश ग्रामीण एथलीटों को सही मार्गदर्शन नहीं मिलता है, यही कारण है कि वे अपने गांवों तक ही सीमित हैं। सभी को जानकारी मिलनी चाहिए क्योंकि जागरूकता की कमी हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। 12वीं कक्षा में मुझे पैरा-ओलंपिक्स के बारे में पता चला, वह भी तब, जब मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया,” अमोल ने कहा।

अमोल हर रोज़ 80 से भी ज्यादा छात्रों को पढ़ाते हैं। इसके साथ ही एथलेटिक्स और बैडमिंटन, दोनों खेलों का प्रशिक्षण देते हैं। उनका प्रशिक्षण सुबह 4 बजे शुरू होता है; वे दो घंटे की प्रैक्टिस करवाते हैं और फिर शाम में 5 बजे से प्रैक्टिस शुरू होती है। स्कूल और जूनियर कॉलेज में उनके शिक्षण के तीन वर्षों से भी कम समय में, उनके छात्रों ने सात राष्ट्रीय पदक और 10 राज्य-स्तरीय पदक जीते हैं।

हर हफ्ते, अमोल कोल्हापुर जाकर 30 दिव्यांग बच्चों को भी क्रिकेट का प्रशिक्षण देते हैं।

फ़िलहाल, अमोल के पास एथलेटिक्स के लिए कोई स्पेशल कोच नहीं है और वे अपने सभी नए गुर इन्टरनेट से सीखते हैं। वे गर्व से बताते हैं कि चेन्नई में साल 2014 में आयोजित एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उन्होंने 100 मीटर की दौड़ को 11.75 सेकंड में पूरा किया था और यह अब तक का उनका सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड है।

उनके पिता अप्पासो, एक किसान थे और उन्होंने हमेशा अमोल को खेलने के लिए प्रेरित किया। उचित आहार और सुविधाएँ न होने के बावजूद भी अमोल ने कभी हार नहीं मानी।

उनका सपना पैरा-ओलंपिक में पदक जीतने का है और वे कहते हैं, “हर किसी को कड़ी प्रैक्टिस करनी चाहिए और फिर कुछ भी नामुमकिन नहीं है।”


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