फ्रैंक ने हिमाचल की कांगड़ा घाटी के एक छोटे से गुमनाम गाँव ‘गुनेहड़’ को आज कला के मानचित्र पर ला खड़ा किया है। अभी कुछ साल पहले तक इस गाँव की गुमनामी का आलम यह था कि गूगल भी फेल हो जाया करता, मगर अब तो जैसे गाँव की पूरी फिज़ा ही बदल चुकी है। पैराग्लाइडिंग के लिए मशहूर बीड़-बिलिंग के पड़ोस में बसा होने के बावजूद गुनेहड़ सालों तक गुमशुदगी में रहा था। अब जबसे कला और कलाकारों ने इसका रुख किया है तो गूगल से लेकर तमाम आर्टिस्ट और पर्यटक इस तरफ खिंचे चले आते हैं।
जर्मन मूल के फ्रैंक ने 2008 में गुनेहड़ आकर बसने का फैसला किया और एक नन्हा-सा बुटिक रेस्तरां कम आर्ट गैलरी 4टेबल्स कैफे एंड गैलरी (4tables Cafe & Gallery) खोला। यहां अपने हाथ से पित्ज़ा, पास्ता बनाकर सैलानियों को खिलाने का शगल जीते-जीते उन्होंने गाँव में एक आर्ट रेज़ीडेंसी शुरू की, वो भी अपने खर्च पर। इसके तहत्, देशभर से हर साल करीब 12-13 कलाकार यहां आते हैं, रहते हैं, जीते हैं और सिर्फ और सिर्फ कलाकर्म में हर दिन गुजारते है। शर्त बस इतनी होती है कि उन्हें रेज़ीडेंसी के लिए तयशुदा थीम पर अपना आर्ट कन्सेप्ट तैयार करना होता है और चुने जाने पर यहीं गाँव में, गाँव वालों के बीच, जो मुख्य रूप से गद्दी हैं, रहकर अपने कन्सेप्ट को ठोस आकार देना होता है।
यानी कला सृजन किसी स्टूडियो या घर के कमरे में बंद रहकर, गुपचुप तरीके से नहीं होता, बल्कि गुनेहड़ के किसी आंगन में, पगडंडी पर, सड़क किनारे किसी पुरानी दुकान को अस्थायी स्टूडियो का रूप देकर, किसी घर की छत पर तो कभी खुले में, धौलाधार की निगहबानी में उसकी रचना होती है।
फिल्ममेकर के एम लो का टुक टुक सिनेमा, शॉप आर्ट/आर्ट शॉप, 2019
इस साल आर्ट रेज़ीडेंसी – मई-जून 2019 तक चली और सामूहिक कलाकर्म को 8-15 जून, 2019 के दौरान आर्ट फेस्टिवल में पेश किया गया। हर बार की तरह इस बार का कला उत्सव भी सिर्फ कैनवस या ग्राफिति सजाने तक सीमित नहीं था, कहीं कहानी की दुकान सज गई तो कहीं मधुर लोक धुनों के साथ लोरियों की जुगलबंदी ने एक दिलचस्प म्यूजि़क एलबम को साकार किया।

जैसे अब इस कच्चे ग्रामीण घर को ही देखो, इस कमरे को बाकायदा म्यूजि़क स्टूडियो में बदल डाला था गुनेहड़ आर्ट रेज़ीडेंसी से जुड़ने चले आए गीतकार और गायक यश सहाय ने।
गीतकार/गायक यश सहायक की म्युजि़क एलबम कांगड़ा ब्लूज़ इसी कमरे में तैयार हुई थी। एलबम में बंद संगीत सुनने के लिए क्लिक करें
उनकी एलबम में पश्चिम का संगीत बड़ी सहजता से पहाड़ी धुनों, हिमाचली संवेदनाओं और स्थानीय किस्सों में रम गया है। उस संगीत में गाँव गूंजता है और प्रकृति चहकती है। जल्द ही इस एलबम के वर्ल्ड वाइड रिलीज़ की तैयारी भी हो चुकी है।
गुनेहड़ का यह आर्ट मेला दरअसल, फ्रैंक की गुनेहड़ और कला के प्रति मुहब्बत का ऐलान है।

”अपने कैफे में आर्ट गैलरी चलाते हुए मुझे ख्याल आया था कि क्यों न शहरों की आपाधापी से दूर इस हिस्से में समकालीन कला प्रदर्शित की जाये और जब मैंने इस सिलसिले में समकालीन भारतीय कलाकारों को तलाशने के लिए गूगल पर उंगलियां चलायीं तो मैं देखकर हैरान रह गया कि वहां किसी आधुनिक आर्टिस्ट का नाम उभरकर ही नहीं आता था। वही रज़ा, हुसैन, सूज़ा जैसे नाम गूगल मेरी तरफ उछाल देता और हद तो तब हो गई जब अमृता शेरगिल को भी समकालीन आर्टिस्ट बताने की गुस्ताखी गूगल ने कर डाली! मैंने उसी पल यह ठान लिया था कि आधुनिक, उदीयमान, नए, नवोदित कलाकारों के साथ मिलकर समकालीन भारतीय कला को आगे बढ़ाना है। और आज शॉप आर्ट/आर्ट शॉप के तीन एडिशन पूरे होने के बाद मुझे तसल्ली है कि पूरी तरह न भी सही तो कुछ हद तक स्थितियां बदल रही हैं।”
गुनेहड़ कभी बदल जाता है ‘ब्रॉडवे’ में और पहाड़ी पगडंडियों से होते हुए गुजरती है जो राह वो कुछ इस तरह के मुकाम पर पहुंचाती है। है न, कला को उसके अभिजात्य माहौल से बाहर निकालकर सीधे लोगों तक पहुंचाने की मौलिक कोशिश।
गुनेहड़ की इस बदलती तस्वीर का सबसे आकर्षक पहलू यह है कि समर रेज़ीडेंसी के दौरान एक महीने तो गाँव में खूब चहल-पहल रहती है, आसपास के गांवों से, कस्बों-शहरों से और दूर दराज से पर्यटक अपनी तरह के इस अद्भुत कला आयोजन को देखने चले आते हैं। लेकिन उत्सव सिमटते ही न सिर्फ बाहरी लोग लौट जाते हैं बल्कि गाँव भी अपना पुराना चोला पहन लेता है। मानो कुछ हुआ ही नहीं था। बस यादों के रूप में बाकी रह जाते हैं वो रंग, वो कलाकारी, वो ग्राफिति जो फेस्टिवल के सिलसिले में बनायी गई थीं।

फ्रैंक कहते हैं, ”हमारे मेले के स्वरूप ने ग्रामीण जीवन में रंग तो भरे हैं, मगर उनके मूल रंगों को चुराया नहीं हैं। हमारे आर्टिस्ट उनके घरों में, उनके साथ रहते हैं और 4टेबल्स कैफे में खाते-पीते हैं। लिहाज़ा, यहां न बेढब किस्म के होटल उगे हैं न फालतू का शोर बढ़ा है। आर्ट और सस्टेनेबल टूरिज़्म की इस जुगलबंदी को सहेजना ही हमारा प्रमुख मकसद है।”

2013 में शॉप आर्ट/आर्ट शॉप के सीज़न 1 में कुल 12 आर्टिस्ट गुनेहड़ पहुंचे थे। फ्रैंक बताते हैं – ‘‘हम स्टूडियो और एग्ज़ीबिशन स्पेस की तलाश में गाँव भर में घूमे और खाली पड़े कमरों, बंद दुकानों, बेकार कोनों को गांव वालों से मांग लिया। किसी ने भी इनके इस्तेमाल के बदले हमसे एक पैसा नहीं मांगा। फिर जब कलाकार अपनी अपनी कला को साधने में जुटे तो गांव वाले भी उनके साथ आ जुड़े। कोई पॉटरी के लिए मिट्टी गूंथता तो कोई वॉल आर्ट के लिए दीवार साफ करवाता, किसी ने अपने घर का आंगन तो किसी ने घर का पिछवाड़ा इस आर्ट रेज़ीडेंसी के नाम कर दिया। इस तरह, यह हम इस फेस्टिवल को शहरी आर्ट गैलरियों की नफासत वाली दुनिया से निकालकर देहात की मिट्टी से जोड़ने में कामयाब हुए।”
एक महीने बाद जब कला और कलाकारों का यह जमावड़ा गुनेहड़ से उठा तो इस गुमनाम गांव को देखकर 6000 सैलानी लौट चुके थे जिनमें आर्टिस्ट, जर्नलिस्ट, लेखक, पेंटर, कथाकार आदि शामिल थे!

2016 में सीज़न 2 में देश-विदेश से 11 आर्टिस्ट आए और 4टेबल्स आर्ट प्रोजेक्ट ने पॉप आर्टिस्ट केतना पटेल तथा इंस्टॉलेशन आर्टिस्ट पुनीत कौशिक जैसे कलाकारों के सहयोग से इसे अंजाम दिया था।
रूस की वेब डिजाइनर सेनियो बोसाक ने गुनेहड़ को वर्चुअल विलेज के रूप में दुनिया के सामने पेश किया ताकि कोई भी, कहीं से भी इसे देख-समझ सके। इसी तरह, किसी ने हर दिन ब्लॉग के जरिए इस महीने भर तक चली समर रेज़ीडेंसी का लेखा-जोखा दुनिया के सामने रखा। और आधुनिक कला तथा कला आयोजनों की दुनिया की तस्वीर देखते ही देखते बदलने लगी।

2013 से इसी तरह आर्ट रेजीडेंसी का सिलसिला मई-जून में चलता है जिसकी परिणति होती है एक हफ्ते तक चलने वाले शॉप आर्ट / आर्ट शॉप फेस्टिवल (SAAS Festival) के रूप में। अगला फेस्टिवल 2022 में मई-जून में आयोजित होगा और इस बीच, गुनेहड़ से सटे जंगलों में, धौलाधार की निगहबानी में ‘इन द वुड्स’ जैसी आर्ट एग्ज़ीबिशंस भी लगेंगी। पेड़ों के तनों पर जन जाएंगी पेंटिंग्स और गाँव की हदों को पीछे छोड़, धौलाधार की छांव में खड़े चीड़ वनों में कला दीर्घाएं सजेंगी। 4टेबल्स आर्ट प्रोजेक्ट ही छोटे पैमाने पर इन प्रदर्शनियों को लगाता है …. ताकि एक आर्ट फेस्टिवल से दूसरे के दरम्यान 3 साल का फासला ज्यादा चुभे नहीं।
सैल्फ फंडिंग और क्राउड फंडिंग पर टिका मेला
किसी ज़माने में राजशाही कला और कलाकारों का थाम लेती थी, मगर आधुनिक दौर में सरकारें या कंपनियां अभी भी आर्ट को लेकर उतनी दिलदार नहीं हुई हैं। गुनेहड़ का आर्ट मेला भी फ्रैंक के जुनून पर कायम है। आर्ट रेज़ीडेंसी के लिए जब कोई फंडिंग, सरकारी या प्राइवेट सहयोग नहीं मिला तो फ्रैंक ने अपने खर्च पर इस पहल को अंजाम देने की ठानी। इस बार क्राउड फंडिंग की कोशिश भी की गई, मगर जरूरी रकम का मामूली हिस्सा ही मिल पाया। तो भी फ्रैंक के इरादों में वही बुलंदी कायम है जो बीते सालों से जारी है और जारी रखे हुए है इस नायाब किस्म की पहल को।
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