Quantcast
Channel: The Better India – Hindi
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3559

घर-घर से पुराने कपड़े इकट्ठा कर, धोकर-प्रेस करके गरीबों में बांटती है भोपाल की यह गृहणी!

$
0
0

किसी गरीब और ज़रूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए लाव-लश्कर की ज़रूरत नहीं होती। यदि आप चाहें तो अकेले भी यह काम कर सकते हैं। भोपाल की मनीषा पवार विवेक इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। मनीषा पिछले कई सालों से ऐसे लोगों का सहारा बनी हुईं हैं, जो विकास की दौड़ में काफी पीछे छूट गए हैं। ये ‘सहारा’ भले ही आर्थिक न हो, लेकिन वक़्त के थपेड़े सहते-सहते थक चुके लोगों को पल भर के लिए कुछ खुशी ज़रूर दे जाता है। 

 

मनीषा अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और दोस्तों से पुराने कपड़े इकठ्ठा करती हैं और फिर उन्हें ज़रूरतमंदों में बांट देती हैं। यहाँ खास बात यह है कि वे गरीबों को कपड़े देने से पहले उन्हें धोना और प्रेस करना नहीं भूलतीं।

ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करतीं मनीषा।

 

इसके पीछे मनीषा की सोच है कि गरीबों को उनकी गरीबी का एहसास क्यों दिलाया जाए, उन्हें यह सोचने पर मजबूर क्यों किया जाए कि वे सिर्फ फटे-पुराने गंदे कपड़ों के हक़दार हैं। 

समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा मनीषा में बचपन से था। उस दौर में भी उनसे जितना हो पाता, वे दूसरों के लिए किया करती थीं।

मनीषा कहती हैं, “मेरा शुरू से यह मानना रहा है कि हमें समाज में खुशियाँ बांटनी चाहिए, खासकर ऐसे लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का एक अलग ही सुख मिलता है, जिनके लिए खुशियाँ भी सोने जितनी महंगी हैं। मेरी कोशिश होती है कि जितना बन सके करूँ। मैं पहले भी अकेले यह काम करती थी और आज भी अकेली हूँ। हाँ, इतना ज़रूर है कि अब लोग मेरे इस अभियान में सहयोग देने के लिए आगे आ रहे हैं।“

वैसे तो मनीषा कई सालों से गरीबों की मदद करती आ रहीं हैं, लेकिन असल मायने में उनके अभियान की शुरुआत कुछ वक़्त पहले तब हुई, जब वह कोटरा स्थित एक संस्था में पहुँचीं।

इस बारे में वह बताती हैं, “मैं काफी कपड़े लेकर वहाँ गई थी और अपने हाथों से बच्चों के बीच उन्हें बांटना चाहती थी, लेकिन संस्था के कर्मचारियों ने ऐसा नहीं करने दिया। उन्होंने कहा कि आप यहीं रख दीजिए, हम बच्चों को दे देंगे। उस संस्था को सरकारी अनुदान मिलता था, इसके बावजूद बच्चों की स्थिति अच्छी नहीं थी। तब मुझे लगा कि ऐसी संस्था को कुछ देने से अच्छा है सड़कों पर घूमने वाले उन लोगों की मदद की जाए, जिन्हें वास्तव में इसकी ज़रूरत है। इसके बाद मैंने अपनी एक दोस्त के साथ सर्दियों के मौसम में अलसुबह और देर रात सड़कों पर घूम-घूमकर ज़रूरतमंदों को गर्म कपड़े बांटे। तब से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है।“ 

 

मनीषा गरीबों में केवल कपड़े ही नहीं बांटतीं, बल्कि झुग्गी बस्तियों में जाकर छोटे बच्चों से उनके जन्मदिन पर केक भी कटवाती हैं। इस वजह से बच्चे उन्हें ‘केक वाली दीदी’ कहकर पुकारते हैं।

झुग्गी बस्ती में बच्चों का जन्मदिन मनातीं मनीषा पवा

झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों के लिए केक लेकर जाने के पीछे भी एक कहानी है।

इस बारे में मनीषा ने कहा, “बच्चों के पुराने कपड़े मिलना थोड़ा मुश्किल रहता है, ऐसे में जिन बच्चों को कुछ नहीं मिल पाता था, वे उदास हो जाते थे और उनकी यह उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए मैंने बच्चों के लिए केक और टॉफियाँ आदि लेकर जाना शुरू कर दिया। मैं जब भी जाती हूँ, एक केक ले जाती हूँ और किसी बच्चे से उसे कटवा देती हूँ। इस तरह उनका जन्मदिन भी मन जाता है। केक देखकर बच्चों के चेहरे पर जो ख़ुशी झलकती है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।“

मनीषा की समाज सेवा यहीं ख़त्म नहीं होती, वो झुग्गीवासियों को साफ़-सफ़ाई का महत्व समझाने के साथ-साथ महिलाओं को मुफ़्त सेनेटरी नेपकिन भी उपलब्ध कराती हैं। हालांकि, मनीषा अपने प्रयासों को समाज सेवा का नाम नहीं देतीं। वह कहती हैं कि सामाजिक संतुलन बनाये रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। यदि हमारे पास कुछ अतिरिक्त है, तो उसे दूसरों में बांटने में क्या हर्ज है? यही वजह है कि कई सालों से गरीबों-ज़रूरतमंदों का सहारा बनने के बावजूद उन्होंने कभी एनजीओ शुरू करने के बारे में नहीं सोचा। मनीषा के मुताबिक, कई लोगों ने उनसे कहा कि अब उन्हें अपना एनजीओ शुरू कर लेना चाहिए, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। उन्हें लगता है कि किसी की मदद करने या किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए संस्था का अस्तित्व में आना ज़रूरी नहीं। 

 

एक महिला और माँ होने के नाते मनीषा सेनेटरी नैपकिन का महत्व समझती हैं और इसलिए गरीब महिलाओं में उन्हें मुफ़्त बांटती हैं। बकौल मनीषा, एक गरीब महिला या युवती के लिए सेनेटरी नैपकिन के लिए 25-30 रुपए खर्च करना आसान नहीं होता। नतीजतन, वह स्वच्छता से समझौता करती हैं और गंभीर बीमारियों का शिकार बन जाती हैं। यही वजह है कि मुझसे जितना संभव होता है, मैं मुफ़्त सेनेटरी नैपकिन वितरित करती हूँ। 

भोपाल में गरीब बच्ची के साथ रैंप वॉक करतीं मनीषा, बच्ची को ड्रेस मनीषा की तरफ से ही उपलब्ध कराई गई थी।

 

क्या कभी उन्हें परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं कि नहीं, लेकिन इतना ज़रूर मानती हैं कि शुरुआत में जान-पहचान के कई लोगों ने उनके काम पर उंगलियाँ उठाईं। मगर इतने सालों के प्रयास के बाद अब स्थिति यह है कि लोग खुद आगे बढ़कर उन्हें पुराने कपड़े दे जाते हैं।

‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से मनीषा पवार लोगों से समाज के गरीब और वंचित तबके की मदद के लिए आगे आने की अपील करती हैं। वह कहती हैं, “अक्सर पुराने कपड़े घर के किसी कोने में पड़े-पड़े सड़ जाते हैं या फिर हम उन्हें देकर कोई बर्तन खरीद लेते हैं, लेकिन यही पुराने कपड़े किसी की मुस्कान की वजह भी बन सकते हैं और ऐसा करना हम सभी के लिए संभव है।“

यदि आप मनीषा के इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं, तो वॉलन्टियर के रूप में उनका साथ दे सकते हैं या फिर किसी दूसरे माध्यम से उनकी सहायता कर सकते हैं। 

मनीषा के अभियान से जुड़ने के लिए आप उन्हें 9111891918 पर संपर्क कर सकते हैं!

 

संपादन – मनोज झा

 

The post घर-घर से पुराने कपड़े इकट्ठा कर, धोकर-प्रेस करके गरीबों में बांटती है भोपाल की यह गृहणी! appeared first on The Better India - Hindi.


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3559

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>