पिछले साल गुजरात वन विभाग ने इको-फ्रेंडली कदम उठाते हुए अपने यहां नर्सरी में पौधों के सैपलिंग उगाने के लिए प्लास्टिक की जगह नारियल के खोल का इस्तेमाल करना शुरू किया था। उनकी इस पहल की पूरे देश में सराहना हुई और बहुत से आम नागरिकों ने भी उनकी इस पहल का अनुसरण किया।
आप गुजरात वन विभाग की पहल के बारे में यहाँ पर पढ़ सकते हैं।
नारियल के खोल में सैपलिंग उगाने के तरीके से प्रभावित होकर अंडमान द्वीप में एक IFS अफसर ने भी नर्सरी में सैपलिंग लगाने के लिए इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल तरीका ढूंढ़ा।
मई, 2018 से दक्षिणी अंडमान डिवीज़न में उप-संरक्षक के पद पर कार्यरत IFS अफ़सर विपुल पांडे ने अपने डिवीज़न में पर्यावरण के अनुकूल तरीके अपनाने की शुरुआत की है। पिछले कुछ समय से विपुल अपने डिवीज़न के तहत आने वाले एक गाँव, जिर्कातंग की एक नर्सरी में सैपलिंग उगाने के लिए प्लास्टिक की जगह बांस के गमलों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

विपुल ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “हमारे चारों तरह बहुत प्लास्टिक है। यह नर्सरी में हजारों पौधों के साथ शुरू होता है और फिर समुन्द्र तक पहुँच जाता है। जब मैंने इस मुद्दे पर बात की तो मेरा स्टाफ भी मुझसे सहमत था और उन्होंने मुझे बताया कि वे भी प्लास्टिक से निजात पाना चाहते हैं। उन्हें बस यह पता नहीं था कि कैसे?”
गुजरात वन विभाग से प्रेरित होकर विपुल ने पहले नारियल के खोल के साथ एक्सपेरिमेंट किया, लेकिन असफल रहे। क्योंकि जो पौधे उस गाँव में होते हैं, वे नारियल के खोल में अच्छे से नहीं पनप सकते। ऐसे में इस अफ़सर ने कुछ और इस्तेमाल करने की सोची।
उन्होंने अगले सात महीनों में इसको लेकर अलग-अलग एक्सपेरिमेंट किए, ताकि वे यह समझ सके कि यहाँ पर क्या चीज़ ऐसी है जो पौधों को उगाने के लिए बेस्ट है? कैसे इन सैप्लिंग्स को फिर से ज़मीन में लगाया जा सकता है? पर्यावरण पर इसका क्या और कैसा प्रभाव पड़ेगा? ऐसे कई सवालों के हल तलाशने की उन्होंने कोशिश की। आखिकार, उनकी तलाश बांस के गमलों पर आकर खत्म हुई।
विपुल ने सबसे पहले जो गमले बनाए उसके लिए उन्हें ऐसे करीब 500 बांस मिल गए जो तने से काटकर फेंक दिए गए थे। यह उनके लिए अच्छी शुरुआत साबित हुई।

पौधे लगाने से पहले उन्होंने इन बांस के गमलों का अच्छे से परीक्षण किया और फॉरेस्ट गार्ड तनवीर के साथ मिलकर 500 सैपलिंग बांस के गमलों में लगाई । अभी भी उनके पास इतने बांस हैं कि वे सैपलिंग के नंबर को 20 हजार तक ले जा सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें और कुछ महीनों का समय चाहिए। बांस में पौधे लगाने के एक साल के बाद, ये गमले अंदर से खुद ही खुलने लगते हैं ताकि जड़ों को फैलने के लिए जगह मिल सके। इसके बाद ही नर्सरी इन पौधों को बेचना शुरू करती है।
इन सैपलिंग्स को अपने घर या फार्म में लगाते समय आपको गमले के तले पर थाप देनी होगी ताकि पौधे बिना किसी परेशानी के बाहर आ जाए और आप इन्हें ज़मीन में लगा सके। सबसे अच्छी बात यह है कि आप इन बांस के गमलों को फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं। पौधों को निकालते समय इनमें से कोई गमला टूट भी जाए तब भी ये आसानी से डीकम्पोज हो जाते हैं।
विपुल और उनकी टीम बांस के अलावा और भी कई तरह की घास के साथ एक्सपेरिमेंट कर रही है ताकि वे पूर्ण रूप से प्लास्टिक फ्री हो सके।

विपुल न सिर्फ अपने विभाग में बल्कि निजी ज़िन्दगी में भी प्लास्टिक फ्री पहल पर काम कर रहे हैं। ट्विटर के ज़रिए वे नागरिकों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करते रहते हैं। उन्होंने जून में आईएएस जतिन यादव की पहल ‘प्लास्टिक पॉल्यूशन चैलेंज’ लिया था और री-ट्वीट करके अन्य लोगों को भी इस मुहिम में जुड़ने के लिए प्रेरित किया।
I am taking this PLASTIC POLLUTION CHALLENGE for the month of JUNE
Will stop using 4 things:
1. Plastic Bags
2. Plastic Straws
3. Plastic Bottles
4. Plastic CupsRetweet if you want to join me.
Let’s see how much we can push ourselves for the environment.#plasticfreeJune
— Jitin Yadav, IAS (@raojitin) May 26, 2019
नर्सरी में पौधे उगाने के लिए गोबर के गमलों का प्रयोग भी किया जा सकता है। गोबर के गमले न सिर्फ़ प्रकृति के अनुकूल है बल्कि पौधों के लिए जैविक खाद का काम भी करते हैं। गुजरात के एक किसान द्वारा बनाए जा रहे गोबर के गमलों के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें!
यकीनन, भारतीय वन विभाग का यह अफसर काबिल ए तारीफ़ है। हम उम्मीद करते हैं कि सभी सरकारी विभाग इस तरह की पर्यावरण अनुकूल पहलों की शुरुआत करके आम नागरिकों के लिए उदाहरण स्थापित करे।
संपादन: भगवती लाल तेली
मूल लेख: तन्वी पटेल
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