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पॉकेट मनी से शुरू किया स्कूल, कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ा!

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“शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे आप दुनिया बदलने के लिए उपयोग कर सकते हैं।” – नेल्सन मंडेला

नेल्सन मंडेला के इस कथन के महत्व को समझते हुए भारत सरकार ने 2001-02 में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की और 2009-10 में संसद में “शिक्षा का अधिकार अधिनियम” पारित किया। इस अधिनियम के अन्तर्गत यह कहा गया कि शिक्षा प्रत्येक बच्चे का अधिकार है और सरकारी विद्यालय में 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा सुनिश्चित की गई।

सरकार की इन कोशिशों के बाद भी हर बच्चे तक शिक्षा पहुँचाना एक मुश्किल काम है। देश के अधिकांश क्षेत्रों में आज भी लोगों में पढ़ाई को लेकर कोई खास जागरूकता नहीं है।

 

ऐसे में समाज का एक वर्ग जब ऐसे अशिक्षित लोगों की मूलभूत ज़रूरतों को समझता है तो शुरुआत होती है “आरोहण” जैसी संस्थाओं की।

Arohan foundation
आरोहण संस्था के सदस्य बच्चों को पढ़ाते हुए।

प्रयागराज स्थित इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र सौरभ सिंह परिहार की यह सोच कि समाज के शोषित और गरीब परिवार के बच्चों को भी शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है, आरोहण संस्था की स्थापना की नींव बनी। अपनी इस सोच को उन्होंने अपने भाई गौरव सिंह परिहार और साथियों रुपाली सिंह, सान्या सिंह, आशीष कुमार पाण्डेय व जितेन्द्र पाण्डेय के साथ साझा किया। सभी लोगों ने सहमत होकर गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने अपने मोहल्ले तेलियरगंज की एक गरीब बस्ती को चुना।

 

तेलियरगंज के गरीब बच्चों को देखकर ही ”आरोहण” की सोच का अंकुर फूटा था। सौरभ ने इस बस्ती के बच्चों को पैसों के लिए कूड़ा बीनते, कूड़े वाली गाड़ी पर काम करते देखा था और यहीं से उनके मन में इन बच्चों के लिए कुछ खास करने का ख्याल आया।

Arohan Foundation
बस्ती के ज़रूरतमंद बच्चे।

सौरभ बताते हैं कि, “इस काम को शुरू करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी उस बस्ती में रहने वाले बच्चों व उनके माता-पिता को इसके लिए तैयार करना और शिक्षा के प्रति उनके मन में जागरूकता पैदा करना। क्योंकि यह बच्चे अपने अभिभावकों को आर्थिक सहायता देने के लिए कुछ न कुछ काम करते थे। इनमें कुछ बच्चे कूड़ा बीनकर, तो कुछ कूड़ा उठाने वाली गाड़ी पर काम करके पैसे कमाते थे।”

सौरभ के लिए इन बच्चों को स्कूल से जोड़ना आसान काम नहीं था। ऐसे में सौरभ और टीम के सदस्य इन बच्चों के माता-पिता से मिले और उन्हें शिक्षा का महत्व समझाते हुए बच्चों को पढ़ाई करने देने के लिए तैयार किया।

आरोहण के सदस्यों ने अपने जेब खर्च से पैसे इकट्ठे करके व्हाइट बोर्ड, मार्कर और त्रिपाल खरीदी और कच्ची बस्ती के घरों के बाहर खुले में कक्षा लगाने की व्यवस्था की। इन कक्षाओं में सरकारी स्कूल के सिलेबस के अनुसार कक्षा एक से दसवीं तक के करीब 30 बच्चों को पढ़ाया जाता है। कुछ ऐसे छात्र जिन्हें बिल्कुल भी अक्षर ज्ञान नहीं है, उन्हें तीन अध्यापक प्रतिदिन विशेष रूप से पढ़ाते हैं।

 

इनका कार्य प्राइमरी स्तर पर बच्चों को अक्षर ज्ञान कराना और लिखना सिखाना होता है। यहाँ गर्मियों में शाम 4 से 6 बजे तक और सर्दियों में 3 से 5 बजे तक कक्षाएं लगती हैं।

Arohan foundation
कच्ची बस्ती के बच्चे पढाई करते हुए।

20 अप्रैल, 2018 को आरोहण का ”आरोहण फाउंडेशन” के नाम से रजिस्ट्रेशन करवाया गया। इस नेक काम को करने के लिए आरोहण के सदस्यों को ज्यादा मदद की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने फेसबुक पर आरोहण फाउंडेशन नाम से एक पेज बनाया। इस पेज के माध्यम से लोगों से अपील की, कि अगर कोई इन बच्चों की मदद करना चाहता है तो उनके लिए पुरानी किताबें और स्टेशनरी उपलब्ध करवा सकता है। आरोहण के पेज को देखकर लोग उनकी मदद के लिए आगे आए और आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई।

 

अब आरोहण के पास स्थाई कक्षाएं चलाने के लिए पुरानी इमारत की भी व्यवस्था हो गई है, जिसे रंग-रोगन करवा के कक्षाओं के अनुरूप व्यवस्थित कर दिया गया है। 

Arohan foundation
कक्षा का संचालन आरोहण की महिला सदस्य।

आरोहण की एक शाखा प्रयागराज के ही सोरांव क्षेत्र में स्थित मल्हुआ गाँव में स्थापित की गई है, जहां गाँव की नेहा पाण्डेय और तीन अन्य लड़कियां कक्षाओं का संचालन करती हैं। आरोहण परिवार बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भी कोशिश करता रहता है। इसके लिए समय-समय पर खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी को सांस्कृतिक कार्यक्रम, 5 जून – पर्यावरण दिवस पर पौधारोपण और 21 जून – विश्व योग दिवस पर योग कराया जाता है। इसके अलावा बस्ती में रहने वाली महिलाओं व लड़कियों के शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर आरोहण की महिला सदस्य उन्हें मासिक धर्म के दौरान साफ-सफाई रखने के लिए भी जागरूक करती है और पैड भी उपलब्ध कराती है। बस्ती की महिलाओं को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए यहाँ पार्लर वर्कशॉप भी होती है।

आरोहण परिवार की यह हरसंभव कोशिश है कि समाज का कोई भी इंसान पीछे न रह जाए और इसीलिए इसका नाम भी “आरोहण” रखा गया है। आरोहण का मतलब है, आगे बढ़ना। अपने नाम के मुताबिक आरोहण गरीब बच्चों को आगे बढ़ाने के अपने काम में पूरे मन से लगा हुआ है

अगर आप ”आरोहण” को किसी तरह से मदद करना चाहते हैं तो संस्थापक सौरभ सिंह परिहार से 8687955095 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – भगवती लाल तेली 


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