चलिए जानते हैं घुमक्कड़ी के नए अंदाज़ के बारे में। कैसे होता है लीक से हटकर ट्रैवल? कहां जाया जा सकता है? क्या देखा जा सकता है? किन बातों का ख्याल रखना जरूरी है ताकि स्थानीय संस्कृति, लोकाचार का भरपूर सम्मान हो। और साथ ही हम भी अपने आसपास के बारे में कुछ वो जानें-समझें और देखें जिसके बारे में अक्सर गाइड बुक्स से लेकर ट्रैवल साइट तक चुप्पी ताने रहती हैं।
विलेज टूरिज़्म
शहरी आपाधापी से विश्राम लीजिए और उतर आइये ग्रामीण भारत के दिलों में जहां शांति-सुकून के पल हैं, खेत हैं, खुश्बुएं हैं और सबसे बड़ी बात तो यह कि आज भी कुछ पुराने संस्कार, पुरानी रीतियां, गुजरी बातें बची रह गई हैं। अपने देश-दुनिया के असल सौंदर्य को देखने-समझने, उसकी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और सीधी-सरल जीवनचर्या से मिलने के लिए गाँव-देहात आज भी सबसे आदर्श मंजिल हैं। और शहर से गांव तक के इस सफर में क्या पता कब-कहाँ आपका अपना अतीत मिल जाए! कौन जाने, किस मोड़ पर कोई ठहरा-सा पल दिख जाए।
पूर्वोत्तर में ट्राइबल समाज से मिलन
रटी-रटायी लीक से कुछ अलग हटकर राह तलाशने की मेरी जिद मुझे अनदेखे-अनजाने अनुभवों को हासिल करने के लिए प्रेरित करती आयी है। पूर्वोत्तर का अरुणाचल ऐसे ही अजब-गजब अनुभवों को साकार करने वाली टूरिस्टी मंजिल है। यहां के जन-जीवन को नज़दीक से जानने के लिए उनके त्योहारों का हिस्सा बन जाइये। साल का वो समय चुन लीजिए जब उनका कोई पर्व हो और चले आइये अपने ही देश के उस हिस्से से करीब से मिलने जिसे जानते हुए भी आमतौर पर कितने अनजान होते हैं हम।

यह हैं एक आदिवासी ग्राम प्रधान जो अपने पारंपरिक पहनावे में दिखे तो हम भी उनसे पीछे क्यों रहते। फिर तो उनके घर की औरतों ने हमें कुछ यों सजा दिया। यह पूर्वोत्तर की सत्कार परंपरा का अनूठा उदाहरण था।
छत्तीसगढ़ में हाट बाज़ार की सैर
जब घर से निकलती हूँ सफर पर, कभी तैयारियों के साथ तो कभी यों ही, बैठे-ठाले झटपट प्रोग्राम बनाकर बिन तैयारी, तो खुद को एक अजब किस्म का चैलेंज देती हूँ। और वो चैलेंज होता है एक नए को अनुभव को हासिल करने का। जिस शहर, कस्बे, देश-देहात को जाती हूँ उसके उस पहलू से मिलने को आतुर रहती हूँ जो आमतौर पर गाइडबुक्स में, ट्रैवल साइटों पर, यायावरी की किताबों में और यहां तक कि दूसरे ट्रैवलर्स के ब्लॉग पर नहीं दिखता।

स्थानीय परंपराओं को समझने का ज़रिया होते हैं हाट बाज़ार। स्थानीय जीवन की सबसे सादगी भरी झलक के लिए यहं चले आइये।
लेकिन उनकी भावनाओं का ख्याल रखिए। तस्वीरें उतारने से पहले पूछ लीजिए। उन्हें इंकार हो तो चोरी-छिपे या ज़बरदस्ती फोटो मत खींचिए।
याद रखिए, आपके लिए जो ‘एग्ज़ॉटिक’ है वह दरअसल, किसी की निजता पर हमला हो सकता है।
छत्तीसगढ़ के ट्राइबल समाज में गोदना गुदवाना उनके सौंदर्य शास्त्र का हिस्सा है और आपके लिए आकर्षण का सबब, तो भी किसी को अपने कैमरे का ‘सब्जेक्ट’ बनाने से पहले उनसे इसकी मंजूरी जरूर ले लें।
लग्ज़री होटल को गुडबाय बोलें, चुनें ईको-टूरिज़्म
मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक लेने के लिए गाँव-देहात में डेरा डाल लेना होता है, फिर चूल्हे की गरमाइश और हंडिया के स्वाद से हौले-हौले तैयार होता है ‘विलेज चार्म’। हो सके तो गाँव में अच्छा नगाड़ा बजाने वाले, अच्छा लोकगीत गाने वाले, अच्छी शहनाई बजाने वाले या किसी और पारंपरिक हुनर में पारंगत ग्रामीण से मिलवाने जरूर जाएं। ज्यादा कुछ नहीं भी कर पाएं तो आसपास के किसी स्थानीय परिवार में एक वक़्त का भोजन तो जरूर करें। ऐसा करने से आपको होंगे स्थानीय संस्कृति के दर्शन और स्थानीय समुदाय को अपने ही घर-ज़मीन पर बैठे हुए आमदनी का ज़रिया मिलेगा।
यही तो टूरिज़्म का सस्टेनेबल मॉडल है। शहरी टूरिस्ट को ‘अनुभवात्मक’ ट्रिप पर ले जाने का मंत्र भी यही है।

होटलों, रेसोर्टों, बुटिक प्रॉपर्टी, जंगल सफारी, स्पा, बीच टूरिज़्म के मुहावरों से कोसों दूर होते हैं आप, मगर अपने आप से मिलन होता है। गुजरात के मेहसाणा जिले में डेयरी टूर हो या अंजार-भुज के गांवों में सूती कपड़े पर रंगीन धागों से जादूगरी पैदा करने वाली हुनरमंद औरतों के सहारे चलने वाली टैक्सटाइल इकाइयों अथवा पाटण के पटोला कारीगरों से मिलवाने वाले टूर ऑपरेटर, वे सभी सैलानियों की जेब से ग्रामीण सेवा प्रदाताओं के लिए राजस्व का स्थायी और मजबूत ज़रिया तैयार कर रहे हैं। टैक्स्टाइल ट्रेल, पॉटरी ट्रेल, फूड वॉक, हेरिटेज टूर जब गाँव-देहातों की पगडंडियों से गुजरते हैं तो स्थानीय अर्थव्यवस्था को सींचते-दुलारते हैं। इनके साथ ही, गांवों के लोक-कलाकारों की प्रस्तुतियों से स्थानीय इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक तथा कितनी ही मौखिक-वाचिक परंपराओं को सींचने का मौका मिलता है।
तो कहां जा रहे हैं आप अगली बार ?
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