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देश की आज़ादी के लिए अमेरिका की सुकून भरी ज़िंदगी छोड़ आई थी यह स्वतंत्रता सेनानी!

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भी उतनी ही भागीदारी रही, जितनी कि पुरुष सेनानियों की। अरुणा आसफ अली, लक्ष्मी सहगल, सुचेता कृपलानी, तारा रानी श्रीवास्तव, और कनकलता बरुआ आदि अनगिनत नाम हैं, जिनके बलिदान ने हमारे देश की आज़ादी की नींव रखी।

पर दुःख की बात यह है कि आज भी न जाने कितनी ही वीरांगनाओं के नाम हमारे इतिहास के पन्नों से नदारद हैं। द बेटर इंडिया की कोशिश है कि वक़्त की धुंध में ऐसी भूली-बिसरी कहानियों को हम अपने पाठकों तक पहुंचाए। आज हम आपको बता रहे हैं ‘ग़दर दी धी- गुलाब कौर’ यानी कि ‘ग़दर की बेटी- गुलाब कौर’ की कहानी!

गुलाब कौर (साभार: द सिख नेटवर्क/ट्विटर)

पंजाब में संगरूर जिले के बक्षीवाला गाँव में साल 1890 के आस-पास जन्मी गुलाब कौर के बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है। पर कुछ जानकारी के हिसाब से बताया जाता है कि उनकी शादी मानसिंह नामक एक व्यक्ति से हुई थी, जिनके साथ वह फिलीपिंस होते हुए अमेरिका जा रही थीं। यहाँ एक अच्छी और बेहतर ज़िंदगी उनके सामने थी।

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अपनी इस यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात ग़दर पार्टी के कुछ क्रांतिकारियों से हुई। ग़दर पार्टी की स्थापना विदेशों में रह रहे सिखों ने की थी और वे सभी अपने देश की आज़ादी में भाग लेने के लिए हिंदुस्तान लौट रहे थे। अगर कुछ दस्तावेज़ों की माने तो गुलाब कौर और मानसिंह ने भी उनसे प्रभावित होकर अपने वतन वापस लौटने का इरादा कर लिया था।

लेकिन फिर मानसिंह का मन बदल गया और उन्होंने अमेरिका के लिए अपनी यात्रा जारी रखी। पर गुलाब के मन पर क्रांतिकारी रंग चढ़ चूका था, उनके दिल में ब्रिटिश साम्राज्य को अपने देश से उखाड़ फेंकने की चिंगारी इस कदर जली कि उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगी की भी परवाह नहीं की।

गुलाब ने न सिर्फ़ अपने पति बल्कि सभी तरह की सुविधाओं से भरपूर अपनी आगे की ज़िंदगी को भी छोड़ दिया और देश के लिए आज़ादी की लड़ाई का हिस्सा बन गयीं।

 

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अन्य और 50 ग़दर क्रांतिकारियों के साथ गुलाब कौर भारत वापस लौट आयीं। भारत पहुँचने पर वह कपूरथला, होशियारपुर और जालंधर जैसे इलाकों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ संभालने लगीं। उन्होंने यहाँ पर भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध हथियार उठाने के लिए जागरूक किया।

गुलाब कौर पर पंजाबी भाषा में लिखी गयी किताब

साथ ही, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सभी साहित्य और प्रकाशनों को घर-घर बांटने की ज़िम्मेदारी भी ली। पत्रकार की भूमिका निभाते हुए उन्होंने ग़दर पार्टी के क्रांतिकारियों के लिए गुप्त संदेश पहुंचाने और हथियार पहुंचाने का जोखिम भरा काम भी किया।

पर बदकिस्मती से ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और दो साल के लिए उन्हें लाहौर के शाही किले में कारावास में रखा गया। यहाँ गुलाब को बहुत सी यातनाएं झेलनी पड़ी और साल 1931 में भारत की इस बेटी ने अपनी आख़िरी साँस ली।

 

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गुलाब कौर के बारे में ज़्यादा कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है पर एस. केसर सिंह द्वारा पंजाबी में लिखी गयी एक किताब, ‘ग़दर दी धी- गुलाब कौर’ आपको ज़रूर मिल जाएगी।

द बेटर इंडिया, गुलाब कौर के बलिदान और साहस को सलाम करता है!

संपादन – मानबी कटोच 


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