“कैंसर कॉमा है, फुलस्टॉप नहीं,”
यह कहना है 65 वर्षीया गृहिणी अंजू गुप्ता का। दिल्ली के द्वारका में रहने वाली अंजू को साल 2015 में ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ। पर उन्होंने इस बात को बहुत ही सकारात्मक तरीके से स्वीकार किया और खुद को हमेशा हौसला देती रहीं कि यह सिर्फ़ एक पड़ाव है, पूरी ज़िंदगी खत्म नहीं हुई है।
दो बेटियों की माँ, अंजू हमेशा से दिल्ली में ही रहीं और पली-बढीं। उन्होंने डाटा एनालिस्ट के तौर पर लगभग 10 साल कॉर्पोरेट सेक्टर में भी काम किया। पर फिर जब उनकी बेटियाँ बड़ी होने लगीं तो उनके साथ ज़्यादा समय व्यतीत करने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी।
आज उनकी बेटियाँ अच्छी जगहों पर काम कर रही हैं। “मेरी बड़ी बेटी सुप्रीम कोर्ट में वकील है और छोटी बेटी ऊबर कंपनी में काम कर रही है। फिर जब मुझे ब्रेस्ट कैंसर का पता चला तो मेरे पति और बेटियों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। बड़ी बेटी ने तो लगभग 9-10 महीने के लिए जॉब भी छोड़ दी थी ताकि मुझे थोड़ा संभाल सके। पर अब सब ठीक है, सब अच्छा चल रहा है,” अंजू ने हंसते हुए कहा।

उन्होंने कहा, “मुझे जब कैंसर का पता चला तो मैंने पहले दिन से ही इसे बहुत पॉजिटिवली लिया क्योंकि मैंने अपने घर में इससे भी पहले कैंसर के केस देखे थे। मेरी मम्मी को कैंसर हुआ था, मेरे चाचाजी को भी था; इसलिए मैं एकदम चौंकी नहीं कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है। मैंने बस ठान लिया था कि मुझे इस बारे में कुछ भी नेगेटिव नहीं सोचना है।”
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अंजू आगे क्कह्ती हैं, “जब मेरी मम्मी को कैंसर हुआ था तब शायद इतनी जागरूकता नहीं थी इस बीमारी को लेकर। और फिर मैंने देखा भी कि उन्होंने एकदम जीने की चाह ही छोड़ दी थी। उनकी उम्र तब 72 साल की थी और वे कहती थीं कि मैंने ज़िंदगी में सभी काम पूरे कर लिए, अब जीने से भी क्या फायदा? पर मैं वो रवैया नहीं अपनाना चाहती थी क्योंकि यह सिर्फ़ आपके लिए ही नहीं, आपके अपनों के लिए भी बहुत मुश्किल वक़्त होता है।”
अंजू ने जब अपना इलाज शुरू करवाया तो उस दौरान उन्हें जो भी डॉक्टर्स ने सलाह दी, उन्होंने उस पर अमल किया। हमेशा से ही बागवानी की शौक़ीन रहीं अंजू ने अपने इस शौक को अपने सुकून का ज़रिया भी बनाया।

बहुत बार लोग बीमारी में निराशा में ही पड़े रहते हैं या फिर उन्हें लगता है कि अब वे कुछ नहीं कर सकते। पर अंजू ने इस समय में भी अपने रूटीन को नहीं बिगड़ने दिया। घर में भी वे जिस भी काम में हाथ बंटा पाती, ज़रूरत बंटाती थीं। उन्होंने खुद को पूरी तरह से कभी भी किसी और पर निर्भर नहीं होने दिया ।
घर में सुबह सबसे पहले उठकर वह कुछ देर अपने पौधों के साथ बितातीं और फिर कुछ देर सैर पर निकल जातीं। योगा को भी उन्होंने अपनी दिनचर्या में शामिल किया। इसके अलावा, उन्होंने घर पर ही हरी सब्ज़ियाँ उगाना शुरू कर दिया क्योंकि डॉक्टर्स ने उन्हें हेल्दी डाइट चार्ट प्लान दिया था।
“इस पूरे सफर में घरवालों के साथ-साथ मेरे दोस्त और डॉक्टर्स भी बहुत सपोर्टिव रहे। उन्होंने तो शुरुआत से ही मुझे हमेशा खुश रहने की सलाह दी। साथ ही, वे हमेशा मुझे मोटीवेट करते कि मैं हमेशा अच्छे से तैयार होकर, अच्छे कपड़े पहनकर उनके पास थेरपी के लिए आया करूँ। डॉक्टर्स के ज़रिए ही मुझे अलग-अलग सपोर्ट ग्रुप्स के बारे में पता चला, जो लोग कैंसर से जूझ रहे लोगों के लिए कुछ ख़ास प्रोग्राम्स करते हैं,” उन्होंने आगे कहा।
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धीरे-धीरे अंजू ने इन ग्रुप्स के इवेंट्स में भी जाना शुरू किया। चाहे हास्य कवि सम्मेलन हो या फिर अर्ली मोर्निंग वॉक, अंजू कहीं भी जाने से नहीं चूकतीं। यहीं से उन्हें पिंकैथोन के बारे में पता चला और उन्होंने तुरंत इसके लिए रजिस्टर कर लिया। इसके बाद उन्होंने मैराथन में भाग लेना शुरू किया और यह सिलसिला अब तक जारी है।

अंजू बताती हैं कि उन्होंने एक्सरसाइज को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया। साल 2015 से वह लगातार मैराथन में भाग ले रही हैं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी हर सुबह 5 बजे उठकर अपना दिन शुरू कर देती हैं। अपनी निजी ज़िंदगी के अलावा, वह सामाजिक तौर पर भी अब काफ़ी एक्टिव हैं। वे कहती हैं,
“मुझे लगता है कि कैंसर के बाद मेरी ज़िंदगी ज़्यादा कलरफुल हो गयी है। हमें अपनी ज़िंदगी पूरी तरह जीनी चाहिए। इसलिए मैं घर के सभी काम तो देखती ही हूँ, पर इवेंट्स में भी भाग लेती हूँ। साथ ही, बहुत बार डॉक्टर्स भी मुझे बुलाते हैं ताकि मैं वहां कैंसर के मरीजों की हौसल-अफजाई कर पाऊं। मैं खुद जाकर उनसे बात करती हूँ, उन्हें ज़िंदगी के लिए आशावादी रहने की प्रेरणा देती हूँ और उन्हें कहती हूँ कि अगर उन्हें कभी भी थेरेपी के समय भी मेरी ज़रूरत हो तो बेहिचक मुझे बुला लें।”
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संपादन – मानबी कटोच
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