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इन महिलाओं ने मिलकर 100 गाँवों के पंडालों से एकत्रित किये फूलों से बनाई अगरबत्तियां!

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फूलों की खुशबू पूरे वातावरण को सुगंधित कर देती है, चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद, या फिर गुरूद्वारा लेकिन कभी आपने सोचा है कि भगवान को चढ़ाने के बाद इन फूलों का क्या होता है?

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में गणेश चतुर्थी पर एक अनूठी मुहीम की शुरुआत की गई है। इस मुहीम से अब न सिर्फ नदियों और तालाबों का पानी गंदा होने से बचेगा बल्कि कुछ महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है। राजनांदगांव से ‘माँ बम्लेश्वरी महिला स्वयं सहायता समूह’ की महिलाओं द्वारा अब मंदिर और पूजा पंडाल में चढ़ाए जा रहे फूलों का इस्तेमाल अगरबत्ती बनाने के लिए किया जा रहा है और साथ में यह महिलाएं लाखो रुपये का व्यवसाय भी कर रही है।

 

कुछ ऐसे हुई शुरुआत 

 

इस पहल की शुरुआत गणेश चतुर्थी में हुई, संस्था की महिलाओं ने सोचा कि क्यों न आस्था के इन फूलों का कोई सकारात्मक उपयोग किया जाए। वैसे तो इन आस्था के फूलों को बेकार समझ कर कचरे में फेंक दिया जाता था लेकिन अब इनका उपयोग अगरबत्ती बनाकर महिलाओं को स्वरोजगार प्रदान करने के लिए किया जा रहा है। गणेश चतुर्थी में समूह की महिलाएं पंडाल पर जाती और पूजा के उपरांत उन फूलों को थैलों में लेकर आती। इसके बाद सभी जगह के फूलों को एक स्थान पर एकत्रित किया गया और उन्हें सुखाया गया। सूखने के बाद इन फूलों से मसाला बनाया जाता है जिसे अगरबत्ती बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

 

जल प्रदुषण में आई कमी

फूल माला और पूजन सामग्री का सही से निपटारा न होने से ये शहरों में प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन जाता है।
पानी में फूलों को प्रवाहित करने से नदियां और नाले प्रदूषित होते हैं। इससे नदियों में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और उसमें रहने वाले जीव जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ जाता है। बहुत बार लोग फूल-माला और पूजन सामग्री को पॉलिथीन में डालकर भी तालाबों में फेक देते हैं, जिसके कारण जल प्रदुषण होता है। ये चीजें पानी में सड़कर पानी को प्रदूषित करती हैं। ये पॉलीथीन की थैलियाँ जल एवं जल में पनपने वाले जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं किन्तु इस मुहीम से फूलों को तालाब में न फेककर अब लोगों के घरों को सुगन्धित करने में उपयोग किया जा रहा है।

 

हज़ारो महिलाओं को मिल रहा रोजगार

इस मुहीम से करीब 1500 महिलायें जुड़ी हुई हैं। इन सब ने मिलकर 100 गाँवों में रोज भ्रमण कर गणेश पंडालों और दुर्गा पंडालों से फूल एकत्रित किये और उसकी अगरबत्तियां बनायीं। इन्हीं अगरबत्तियों को आज वे बाज़ार में बेचकर अपना घर भी चला रही हैं। इतना ही नहीं समूह की महिलाएं गाँव की दूसरी महिलाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दे रही हैं ताकि वे भी स्वावलम्बी बन सके। इस मुहीम के माध्यम से अब तक 100 से ज़्यादा महिलाओं को रोजगार मिल चुका है।

 

लागत कम होने से बढ़ गई कमाई

अगरबत्ती पैकेट के साथ महिलाएं

माँ बम्लेश्वरी महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष फूलबासन यादव कहती हैं, “फूलों से अगरबत्ती बनाने से अब लागत भी कम हो गई है, जिसके कारण समूह की महिलाओं को ज़्यादा मुनाफा होने लगा है। इसकी वजह यह है कि अब अगरबत्ती बनाने के लिए कच्चे माल में 10 की जगह सिर्फ 5 हजार रुपए ही खर्च करने पड़ रहे हैं। जबकि आवक 15 से 20 हजार तक हो रही है।”

मुंजालकला गाँव की महिलाओं ने बताया कि गणेशोत्सव के दौरान एकत्रित किए गए फूलों से जिले में अब तक 2 लाख रुपए तक की अगरबत्ती बना चुकी हैं।

 

महिला सशक्तिकरण की इस अनूठी मुहीम को सलाम

इस अनूठी मुहीम से महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी तो बनेंगी ही, वहीं इस पहल से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा।मंदिर एवं मज़ारों से उतारे फूल अब लोगों के पैरों तले नहीं कुचले जाएंगे। उनसे बनी सुगंधित अगरबत्ती लोगों के घरों में ख़ुश्बू फैलाएगी।

इस मुहीम के बारे में अधिक जानकारी के लिए श्री शिव देवांगन (प्रतिनिधि – माँ बम्लेश्वरी महिला स्वयं सहायता समूह) – 93017 45406 को संपर्क कर सकते है।

संपादन – मानबी कटोच 


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