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घर बैठे ही गृहिणियों का करियर संवार रहीं हैं यह होममेकर; खुद का टर्नओवर है 44 लाख रुपये!

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दिल्ली की रहने वाली 38 वर्षीय सविता गर्ग ने साल 2015 में एक ऑनलाइन टीचिंग प्लेटफ़ॉर्म, ‘ईक्लासोपीडिया’ की शुरुआत की। अपना यह ऑनलाइन ट्यूशन स्टार्टअप शुरू करने के पीछे सविता का उद्देश्य बहुत ही साफ़ था- एक तो बच्चों को अपने स्तर, अपनी सुविधा के अनुसार अनुकूल वातावरण में पढ़ने को मिले और दूसरा, ऐसी महिलाओं के करियर को एक मौका देना, जिन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों के चलते अपने काम या फिर किसी नौकरी को छोड़ना पड़ा।

राजस्थान के एक छोटे से शहर में पली-बढ़ी सविता बताती हैं,

“सवाई माधोपुर जैसे छोटे शहर में रहते हुए बहुत ही कम विकल्प हुआ करते थे, जहां किसी एक्स्ट्रा ट्यूशन क्लास या फिर कोई कोचिंग आदि के लिए जा सके। मैं पढ़ाई में बहुत अच्छी थी, बस यही कमी खलती थी कि अगर मेरे शहर में थोड़ी सुविधाएं और होतीं तो शायद मैं और भी बहुत कुछ कर पाती। फिर भी मैंने ग्रेजुएशन, मास्टर्स और बीएड तक की पढ़ाई की।”

साल 2005 में सविता की शादी हो गयी और वह अपने पति के साथ दिल्ली आ गयीं। उन्हें टीचिंग का काफ़ी शौक था, लेकिन ससुराल की ज़िम्मेदारियों में वह ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रही थीं। शादी के एक-दो साल बाद जब उन्होंने कहीं जॉब करने की सोची तो 2007 में उनके पति का तबादला लोनावला में हो गया।

Savita Garg, Founder of Eclassopedia

सविता बताती हैं कि उसी साल उन्होंने यूजीसी-नेट की परीक्षा भी पास की थी। लेकिन वहां कोई मौका न मिलने के कारण उनके शिक्षक बनने का सपना जैसे अधुरा ही रह गया था।

“घर में ऐसे तो कोई कमी नहीं थी लेकिन मेरे मन में नौकरी करने की, अपना कोई काम करने की भावना हमेशा रही। पर फिर वक़्त के साथ दो बच्चों की ज़िम्मेदारी आ गयी और उसमें मैं कोई कमी नहीं कर सकती थी।”

साल 2014 में उनका परिवार फिर से दिल्ली शिफ्ट हुआ। यहाँ पर उन्होंने थोड़े समय के बाद, एक स्कूल में नौकरी कर ली। सविता खुश तो बहुत थीं, लेकिन फिर उनके लिए अपनी नौकरी और बेटियों की ज़िम्मेदारी, दोनों को साथ में सम्भालना बहुत मुश्किल हो गया। उन्होंने बहुत कोशिश की, कि वह अपनी नौकरी और बच्चे, साथ में सम्भालें, लेकिन यह नहीं हो पाया और उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी।

कैसे मिली प्रेरणा?

सविता ने ‘वर्क फ्रॉम होम’ के विकल्प तलाशना शुरू किया। उन्होंने एक दो जगह ऑनलाइन ट्यूशन देने के लिए भी अप्लाई किया। शुरू में, एक-दो जगह उन्होंने स्काइप क्लास दीं, लेकिन इसमें उन्हें बहुत सी टेक्निकल समस्याएं आ रही थीं। ऐसे में, सविता ने निश्चय किया कि अब वह अपना कुछ शुरू करेंगी और ऑनलाइन क्लासेज को बच्चों और टीचर्स, दोनों के लिए आसान बनाएंगी।

अपने पति के सपोर्ट से, सविता ने अपना टीचिंग स्टार्टअप शुरू करने का फ़ैसला किया। सविता कहती हैं कि जब वह खुद पढ़ रहीं थीं, तब से ही उनके मन में एक ऐसा इंस्टिट्यूट बनाने का सपना था, जहाँ बच्चे और शिक्षक, एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर हों। बच्चे खुद अपने शिक्षक चुनें और अपने पसंदीदा विषय पढ़ने का मौका उन्हें मिले।

Savita with her husband and kids

जब उनकी जॉब छूटी, तो उनके दिल में अपने इस सपने को साकार करने के बीज पनपने लगे। लेकिन इस बार उनके उद्देश्य में सिर्फ़ अपने लिए कुछ करना नहीं, बल्कि अपने जैसी और भी महिलाओं के लिए कुछ करने का ख्याल भी था। उन्होंने कहा,

“मैंने महसूस किया कि हमारे यहाँ बहुत सी लडकियां अपनी शादी के बाद या फिर बच्चे होने के बाद इस परेशानी से गुजरती हैं। और बहुत बार, अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में अपनी आत्मनिर्भरता और फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होने की ख्वाहिश को दबा देती हैं। इसलिए, शुरू से ही दिमाग में था कि मेरे स्टार्टअप में उन महिलाओं को प्राथमिकता मिलेगी, जिनमें स्किल और टैलेंट की कोई कमी नहीं, बस किसी कारणवश वे बाहर जाकर जॉब नहीं कर सकतीं।”

क्या है ईक्लासोपीडिया?

लगभग एक साल तक थोड़ा जानने-समझने के बाद सविता ने अपने पति के सपोर्ट से साल 2015 में ‘ईक्लासोपीडिया’ लॉन्च किया। यह एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ पर छात्रों को ऑनलाइन क्लास दी जाती हैं। सबसे पहले कोई भी छात्र-छात्रा, कहीं भी रहते हुए इस प्लेटफ़ॉर्म पर रजिस्टर कर सकते हैं।

इसके बाद, वे अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपना टीचर चुन कर उनसे एक डेमो क्लास लेने के लिए अप्लाई करते हैं। डेमो क्लास होने के बाद छात्र तय करते हैं कि वे उस टीचर से पढ़ना चाहते हैं या नहीं। यदि हाँ तो वे फीस देकर अपनी क्लास शुरू कर सकते हैं।

Eclassopedia

इसी तरह, यदि आप टीचर हैं तो आप भी इस प्लेटफ़ॉर्म पर रजिस्टर कर सकते हैं। इसके बाद उनकी एक स्क्रीनिंग होती है, मतलब कि उनकी प्रोफाइल चेक की जाती है और सब कुछ ठीक होने पर उन्हें डेमो क्लास लेने के लिए कहा जाता है। यदि बच्चे को टीचर का पढ़ाना पसंद आया तो उनकी एक बेसिक ट्रेनिंग करवाकर, उन्हें क्लास शुरू करने के लिए कहा जाता है।

सविता कहती हैं कि यह ऑनलाइन क्लास लेने का प्लेटफ़ॉर्म है तो हम शुरू में, कुछ टेक्निकल चीज़ों के लिए टीचर को एक ट्रेनिंग देते हैं। इसके बाद भी यदि उन्हें कोई परेशानी होती है तो सविता हमेशा ही उनके लिए उपलब्ध रहती हैं।

“फ़िलहाल, हम स्कूल, कॉलेज के सभी विषयों के साथ-साथ कुछ स्पेशल भाषा जैसे फ्रेंच, स्पेनिश आदि मिलाकर 30 से ज़्यादा विषय पढ़ा रहे हैं। 350 से भी ज़्यादा टीचर्स और 650 स्टूडेंट, हमारे पास रजिस्टर्ड हैं,” सविता ने बताया।

हैरत की बात यह है कि उनके ज़्यादातर छात्र विदेशों जैसे कि सिंगापुर, कुवैत, यूके, यूएस जैसे देशों से हैं। अलग-अलग विषय के हिसाब से उनकी एक क्लास की फीस 500 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक है। एक महीने में टीचर्स 8-10 क्लास लेते हैं और एक स्टूडेंट लगभग आठ से दस महीने तक उनके पास पढ़ता है।

teachers on platform

उनके टीचर्स में लगभग 80% गृहिणियां हैं जोकि अपने घरों से काम करती हैं। सविता बताती हैं कि उनके पास ऐसे भी टीचर्स हैं जो कि शुरू से ही उनके साथ हैं और आज उन टीचर्स का अपना स्टूडेंट बेस इतना हो गया है कि उनकी महीने की कमाई किसी कॉर्पोरेट कंपनी से कम नहीं है।

“हमारे ज़्यादातर सभी टीचर्स महीने के कम से कम 20 हज़ार रुपये तक कमाते हैं और अब तक का सबसे ज़्यादा एक टीचर को हमने 65, 000 रुपये प्रति माह दिया है,” सविता ने बताया।

चुनौतियाँ:

सविता कहती हैं कि सबसे बड़ी चुनौती तो घर-परिवार वालों को ही समझाना था। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि ऐसी किसी जगह पैसे क्यों डालना, जहां सफलता का चांस बहुत कम है। इस तरह लोगों के व्यवहार ने उन्हें निराश किया। वे उनसे कहते कि इससे बच्चों की परवरिश में कमी होगी, घर कैसे सम्भलेगा।

“लेकिन मैं मन बना चुकी थी और मेरे पति मेरे फ़ैसले में साथ थे। उन्होंने मुझे हर तरह से आगे बढ़ने में मदद की। मानसिक तौर पर तो वह प्रोत्साहित करते ही थे, साथ ही उन्होंने मुझे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, टेक्निकल स्किल्स के बारे में भी काफ़ी कुछ सिखाया है।”

लगभग 5 लाख रुपये की लागत के साथ शुरू हुए इस स्टार्टअप को सफल बनाने के लिए सविता ने बहुत सी समस्याओं का सामना किया है। उन्होंने अपने वेबसाइट के लिए एक वेब डेवलपर हायर किया, लेकिन जिस तरह का प्लेटफ़ॉर्म वे चाहती थीं, वैसा सब उन्हें दो-तीन ट्रायल के बाद मिला।

Learning new techniques, new skills

इसके बाद, बच्चों और शिक्षकों को अपने प्लेटफ़ॉर्म को जोड़ना भी उनके लिए काफ़ी मुश्किल रहा। “मैंने अपना स्टार्टअप लॉन्च करने के बाद, फिर धीरे-धीरे खुद भी बहुत सी चीज़ें और तकनीक सीखीं हैं। मार्केटिंग पहले भी एक समस्या थी और आज भी है। क्योंकि अब तो इतने सारे प्लेटफॉर्म्स हैं, ऐसे में, अपने को सबसे अलग रखते हुए, हमें क्वालिटी को भी ध्यान रखना है।”

इसके अलावा, साल 2017 में उन्होंने महिला उद्यमियों के लिए IIT दिल्ली के ख़ास प्रोग्राम- WEE (वीमेन इंटरप्रेन्योरशिप एंड एमपॉवरमेंट) में हिस्सा लेने का मौका मिला। यहाँ पर उन्होंने जो कुछ भी सीखा, उसे अपने स्टार्टअप में अप्लाई किया।

बिज़नेस के साथ संभाल रही हैं घर भी 

आज उनकी टीम में 10 लोग उनके साथ काम कर रहे हैं, जो कि टीचर होने के साथ-साथ वेबसाइट की अन्य ज़रूरतें भी देखते हैं। सविता खुद हिंदी की ऑनलाइन क्लास लेती हैं और बाकी बिज़नेस को सम्भालते हुए, अपने परिवार को भी अच्छे से चला रही हैं।

उनका दिन सुबह पाँच बजे से शुरू होता है क्योंकि उनके स्टूडेंट बाहर देशों से हैं तो उन्हें सुबह में एकदम जल्दी का टाइम सूट करता है। अपने कुछ बिज़नेस मेल आदि चेक करने के बाद, वे आठ बजे तक अपने बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजती हैं और फिर बाकी के घरेलु काम खत्म करती हैं।

Savita with her kids

“फिर दिन के दो बजे तक मेरे पास काफ़ी समय होता है क्योंकि बच्चे स्कूल में होते हैं और पति भी ऑफिस में। तब तक मैं अपना बिज़नेस का काम करती हूँ। बच्चों के आने के बाद, उनके सभी कामों में लग जाती हूँ। शाम में, एक-दो घंटे फिर से बिज़नेस का काम करके, रात का पूरा वक़्त अपने परिवार के लिए रखती हूँ। बच्चों की पढ़ाई, उनके साथ समय बिताना, सब कुछ अब आसानी से मैनेज हो जाता है,” सविता ने बताया।

आगे आने वाले कुछ सालों में सविता अपने इस स्टार्टअप को बेस्ट ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म बनाना चाहती हैं। उनका पिछले साल का रेवेन्यु 44 लाख रुपये था और अब उनका टारगेट हैं कि वह इसे एक करोड़ रुपये तक लेकर जाएं। दूसरी महिलाओं और उद्यमियों के लिए सविता सिर्फ़ यही कहती हैं,

“अपने सपनों, अपने आईडिया पर भरोसा करो। ज़िंदगी में जो सफलता चाहिए, उसके लिए आज से ही काम करना शुरू करो। एक गृहिणी भी बिज़नेस वुमन बन सकती है और इसके लिए सिर्फ़ तीन चीज़ें करनी हैं- टेक्नोलॉजी को ही नहीं बल्कि खुद को भी अपग्रेड करना, अपनी गलतियों से सीखना और लगातार मेहनत करते रहना। बाकी सिर्फ़ पॉजिटिव बातों और चीज़ों पर फोकस रखो तो पॉजिटिव ही होगा।”

संपादन – मानबी कटोच 


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