कहते हैं कि अगर सपने देखने के साथ ही उनको पूरा करने के लिए हौसला भी दिखाया जाए तो सफलता कदम चूमती है। इस कहावत को सच कर दिखाया है रूद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लॉक स्थित एक छोटे से गाँव कविल्ठा की रहने वाली रोशनी ने। रोशनी ने मशरूम उत्पादन के जरिए पहाड़ की महिलाओं व् युवाओं को स्वरोजगार की नई राह दिखाई है।
शून्य से अपना काम शुरू करके रोशनी चौहान आज 2.5 लाख रुपए सालाना कमा रही हैं। जिस जगह से महज 4000-5000 रुपए की नौकरी के लिए लोग पलायन कर रहे हों, वहां रोशनी की इस कवायद का महत्व समझा जा सकता है।

केदारनाथ की आपदा ने दिखाई राह
रोशनी बताती हैं, “यह सब करना बहुत आसान नहीं था। हमारे गाँव के लिए पलायन कभी बड़ी समस्या नहीं रही थी, लेकिन 2013 में केदारनाथ में आई आपदा ने सब कुछ बदल दिया। अब कोई गाँव में नहीं रहना चाहता था। बहुत लोग थे, जिन्होंने बेहद मामूली नौकरी के लिए भी गाँव से निकलना बेहतर समझा। अफरा तफरी सी मची थी। ऐसे में लगा कि कुछ ग़लत हो रहा है। पहाड़ वाले ही पहाड़ को छोड़ चले जाएंगे तो यहां का खैर-ख्वाह कौन रहेगा?”
इसके बाद रोशनी ने सोच लिया था कि उन्हें गाँव में रहकर ही कुछ करना है। इसी बीच कुछ गैर सरकारी संस्था के लोग गाँव पहुंचे, जिन्होंने मशरूम उत्पादन के बारे में बताया। रोशनी ने उनसे ट्रेनिंग भी ली, लेकिन सवाल यह खड़ा हुआ कि आगे इस काम के लिए पैसे कौन देगा?
“शुरुआती खर्च 30 हजार रुपये का था। मेरे पास कुछ बचत थी। कुछ उधार लिया। इसके बावजूद बीज और दवा के लिए पैसे कम पड़ गए। आखिर माँ जी से लड़ झगड़ कर 3000 रूपये लिए। उन्होंने पैसे तो दिए, लेकिन उन्हें पैसे के डूबने की चिंता भी कम नहीं थी,” रोशनी ने हँसते हुए बताया।
इन पैसो से मशरूम के बीज लाकर रोशनी ने घर के ही एक कमरे में 10 बैगों में मशरूम बो दिया। पर जब 25 दिन तक कुछ नहीं हुआ तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। कोई हंस रहा था तो कोई ताने मार रहा था। ऐसे में मन बड़ा व्यथित था। 3000/- खराब हो जाने का दुःख सो अलग। लेकिन महीना बीतते-बीतते हालात बदल गए।
एक सुबह कमरे में झांका तो मशरूम खिले हुए थे। अब तो खुशी का ठिकाना न था। कल तक जो ताने दे रहे थे, वही आज आशीष दे रहे थे। उस रोज दो किलो मशरूम पैदा हुए थे।

लेकिन अब समस्या मार्केटिंग की आ खड़ी हुई। स्थानीय मार्केट में कोई रोशनी के मशरूम उठाने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में उन्होंने रूद्रप्रयाग जाकर खुद स्टॉल लगाए।
रोशनी बताती हैं, “इस प्रक्रिया में काफी मशरूम खराब भी हुए। हिम्मत भी टूटी। लेकिन लोगों का रिस्पांस आया तो बात बढ़ी। लोगों ने मशरूम पैकिंग मंगानी शुरू कर दी। आज यह सिलसिला सीजन में 90 किलो मशरूम तक जा पहुंचा है।”
रोशनी ने अपना प्लांट घर के तीन कमरों में लगाया है। एक कमरे में 150 बैग रखे जा सकते हैं। अभी ढींगरी, गुलाबी, सफेद मशरूम ही रोशनी उगा पा रही हैं। क्योंकि इनके लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होना चाहिए। मिल्की मशरूम का उत्पादन अभी वह नहीं कर पा रही हैं। रोशनी का उगाया मशरूम कालीमठ घाटी, रूद्रप्रयाग ही नहीं, आस पास के शहरों में भी पसंद किया जा रहा है। अब रोशनी प्लांट को विस्तार देने की तैयारी में हैं।
गाँव की महिलाओं को भी दिलाया रोज़गार
तमाम हालात का मुकाबला करते हुए रोशनी न केवल अपने बेहतर भविष्य की राह प्रशस्त कर रही हैं, बल्कि उन्होंने अपने गाँव की महिलाओं को भी ट्रेनिंग देकर साथ जोड़ा है। इस वक्त 20 से ज्यादा महिलाएं उनके साथ जुड़ी हैं। प्लांट में मशरूम का बीज डालने से लेकर उसकी देखभाल, निगरानी में भी रोशनी उनकी मदद ले रही हैं। बदले में उन्हें 200 रुपए रोज चुका रही हैं। इनमें से आधी महिलाएं रोशनी से इस काम के बीच मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग ले चुकी हैं और अब अपना प्लांट खोलने की तैयारी में हैं। बाकियों की ट्रेनिंग अभी चल रही है।
इस उपलब्धि के बाद भी रोशनी हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठी। उन्होंने इसके बाद मसूरी से ट्रैकिंग लीडर के रूप में ट्रेनिंग ली और अब तक उत्तराखंड के साथ ही दिल्ली, एनसीआर के कई ग्रुप्स को ट्रेकिंग करा चुकी हैं। इसमें तुंगनाथ, केदारनाथ और मद्महेश्वर के साथ ही कालीघाटी का ट्रैक शामिल हैं। उनके ट्रैकिंग ग्रुप में पांच लोग शामिल हैं और इन सभी ने बाकायदा ट्रैकिंग की ट्रेनिंग ली है।
रोशनी के मुताबिक पहाड़ में ज्यादातर लोग अपने निजी प्रयासों के बूते आगे बढ़ रहे हैं। वह पहाड़ों के युवाओं के लिए ट्रैकिंग को भी एक बेहतर रोजगार का जरिया मानती हैं। क्योंकि उत्तराखंड का प्राकृतिक खूबसूरती के मामले में कोई जोड़ नहीं। यहां की आब-ओ-हवा भी बेहतरीन है। इसमें महिलाओं के कामयाब रहने की संभावना वह सौ फीसदी से भी ज्यादा मानती हैं। ट्रैकिंग कराने का भी वह आगाज कर चुकी हैं। तुंगनाथ, मद्महेश्वर, केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद हो जाने के बाद अब उनकी तैयारी स्नो फॉल के सीजन में पहुंचने वाले ट्रैकर्स के लिए है।
होम स्टे के ज़रिये भी शुरू किये रोज़गार के विकल्प
रूद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ स्थित किरमाना गाँव में हिमालयन माउंटेन होम स्टे के जरिए कई लोगों को रोजी का जरिया मुहैया कराया जा रहा है। रोशनी के मुताबिक अन्य होम स्टे के आवेदन भी किए हैं, जिनको जल्द ही मंजूरी की संभावना है। बकौल रोशनी उनका लक्ष्य बड़े पैमाने पर समन्वय से महिलाओं को जोड़ कर गांवों की महिलाओं को आर्थिक रूप से और सशक्त बनाना है।
महज 23 साल की उम्र में रोशनी ने नौकरी के पीछे गाँव घर छोड़ कर चल देने वालों को तो राह दिखाई ही है, महिलाओं को अपने साथ जोड़कर उन्हें भी अपने पैरों पर खड़ा कर बदलाव की वाहक बनी हैं। शिक्षा के महत्व को समझते हुए प्रदीप सिंह चौहान और सुशीला देवी की यह तीन संतानों में सबसे बड़ी संतान रोशनी, इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी यानी इग्नू से ग्रेजुएशन कर रही है। अब आसपास के गाँववाले अपनी बच्चियों को रोशनी जैसा बनने की नसीहत देते हैं। रोशनी इसे अपना हासिल करार देती हैं।
संपादन – मानबी कटोच
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