तीस के दशक की शुरुआत में एयरलाइन्स ने वैश्विक स्तर पर अपना मार्केट फैलाना शुरू किया। वैसे, उस जमाने में एयरक्राफ्ट काफी छोटे और कम दूरी तय करने वाले होते थे। धीरे-धीरे एयरलाइन बनाने वाली कंपनियों और पायलटों ने एविएशन सेक्टर में नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए। पूरी दुनिया में ये पायलट लंबी दूरी तय कर रहे थे, नए-नए स्पीड रिकॉर्ड्स बना रहे थे और नयी-नयी एयरलाइन कंपनियां बाज़ार में आ रही थीं।
उस समय, 1930 में एक भारतीय, पुरुषोत्तम मेघजी काबाली ने भी इस सेक्टर में कदम रखा। काबाली को पहला भारतीय पायलट माना जाता है, हालांकि उनसे एक साल पहले जेआरडी टाटा ने लाइसेंस प्राप्त किया था।
टाटा, पेरिस में जन्मे थे और वह फ़्रांसीसी मूल के भारतीय नागरिक थे। वह 1929 में भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त करने वाले पायलट बने।
जबकि, काबाली भारतीय मूल के पहले पायलट थे जिन्हें लाइसेंस मिला।

साल 1930 में, काबाली ने इंग्लैंड में एक VT-AAT एयरक्राफ्ट खरीदा। उनकी योजना इसे इंग्लैंड के क्रॉयडन से पेरिस, रोम और ईरान होते हुए कराची लाने की थी।
कराची उस समय भारत का हिस्सा हुआ करता था और काबाली, इतने लम्बे रास्ते को तय कर एक रिकॉर्ड बनाना चाहते थे।
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नीचे दिया गया मैप (मराठी में) उस रास्ते को दर्शाता है, जहां से काबाली गुजरना चाहते थे। इतनी लंबी दूरी एक छोटे से एयरक्राफ्ट में तय करना बहुत ही हिम्मतवाला प्रयास था।

उन्होंने अपने एयरक्राफ्ट का नाम, ‘फेदर ऑफ़ द डॉन’ रखा और अपनी यात्रा शुरू करने से पहले क्रॉयडन में पूजा भी की। मशहूर कवियत्री, स्वतंत्रता सेनानी और पहली महिला गवर्नर, सरोजिनी नायडू इस पूजा का हिस्सा बनीं। संयोग की बात है कि नायडू की भी एक कविता-संकलन का नाम ‘फेदर ऑफ़ द डॉन’ है।
टेक-ऑफ के बाद, एयरक्राफ्ट ने बहुत ही अच्छे से काम किया और काबाली को पेरिस, मार्सैय, पीसा, रोम और टुनिस पार करते हुए कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन, लीबिया के त्रिपोली में उन्हें अपने सफ़र को रोकना पड़ा।

लीबिया में काबाली, टोब्रुक और त्रिपोली के बीच तूफ़ान में फंस गए और उनका एयरक्राफ्ट क्रैश हो गया। किस्मत से, उन्हें कोई गंभीर चोट नहीं आई।
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उनके क्रैश हुए एयरक्राफ्ट को ट्रक में भरकर लाया गया। लीबिया से इसे टुकड़ों में बॉम्बे फ्लाइंग क्लब पहुँचाया गया। इस प्लेन को सड़क-मार्ग या फिर समुद्री-मार्ग से लाया गया, इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। यहाँ, काबाली ने अपने प्लेन को मिस्टर बी. एम. दमानिया (Engineer and Aviator) की देख-रेख में सही कराने का निर्णय लिया।

काबाली का सपना भले ही सफल नहीं हो पाया, लेकिन उन्होंने कभी भी एयरक्राफ्ट उड़ाने के अपने शौक को नहीं छोड़ा।
अपना एयरक्राफ्ट ठीक होने के बाद उन्होंने इसे एक बार फिर उड़ाया। आने वाले वर्षों में, उन्होंने मुंबई के जुहू में एक प्राइवेट एयरलाइन, ‘एयर सर्विसेज ऑफ़ इंडिया लिमिटेड’ में बतौर पायलट नौकरी की। 1953 में यह कंपनी इंडियन एयरलाइन कॉरपोरेशन में शामिल हो गयी।
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तो यह थी पहले भारतीय पायलट की छोटी-सी कहानी। उनके बारे में सीमित जानकारी ही उपलब्ध है, पर इतिहास में उनका स्थान कोई नहीं ले सकता। हालाँकि, लेखक गजानन शंकर खोले ने काबाली का साक्षात्कार कर ,उनके जीवन पर आधारित एक छोटी मराठी किताब, ‘वैमानिक काबाली’ प्रकाशित की थी, जिसमें हम भारत के इस सपूत के बारे में पढ़ सकते हैं।
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