अगर आप अपना पूरा फोकस अपने लक्ष्य को हासिल करने में लगा देते हैं तो फिर आपको कोई हरा नहीं सकता। मेरठ के दामोदर कालोनी निवासी अमित त्यागी इसके मिसाल हैं। उन्होंने अपनी पत्नी मोनिका त्यागी की सलाह पर केवल एक किलोग्राम केंचुए के साथ वर्मीकम्पोस्ट बनाने का कार्य शुरू किया था। आज उनके कारोबार का सालाना टर्न ओवर दो करोड़ रूपये से भी अधिक है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उड़ीसा, असम सहित कुल 14 राज्यों में करीब आठ हजार यूनिट स्थापित हैं। इनमें 80 के करीब यूनिट्स अकेले मेरठ जिले में हैं। वह किसानों को केंचुए की खाद बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें यूनिट स्थापित करने में भी सहायता प्रदान करते हैं।

मल्टीनेशनल की शानदार नौकरी को कहा अलविदा
गाजियाबाद से एमबीए करने वाले 49 वर्षीय कारोबारी अमित के मुताबिक यह 1996 के आसपास की बात है। उनकी पत्नी ने जब वर्मीकम्पोस्ट बनाने पर जोर दिया। उस वक्त वे मल्टीनेशनल फार्मा कंपनी में सालाना लाखों का सेलरी पैकेज पा रहे थे और कंपनी के लिए करोड़ों का टारगेट हासिल करने का काम कर रहे थे। अमित के मन में ख्याल आया कि क्यों न वह अपने मार्केटिंग नेटवर्क का इस्तेमाल अपने काम को आगे ले जाने में करें। बस यह विचार मन में आते ही उन्होंने पत्नी से इस संबंध में सलाह ली और अंततः नौकरी को अलविदा कह दिया। बड़े शहर की जगमगाती ज़िन्दगी को त्याग कर अपनी गांव की भूमि को अपना कार्यस्थल बना लिया।
पहला सैंपल नर्सरी वाले को दिया

अमित त्यागी बताते हैं कि उनकी पत्नी, जो कि खुद एमबीए, पीएचडी थीं, शांति कुंज में डा. राधा का लेक्चर सुन वर्मीकम्पोस्ट बनाने की ओर आकृष्ट हुई थीं। अमित बताते हैं कि उन्होंने अपना पहला सैंपल एक नर्सरी वाले को बेचा। करीब सप्ताह भर ही गुजरा था कि वह नर्सरी वाला और खाद के लिए घर के चक्कर काटने लगा। खाद तैयार नहीं थी, ऐसे में हमने उसे टालने के उद्देश्य से कहा कि यह खाद 10 रूपये प्रति किलोग्राम है, जो खाद उस वक्त केवल 50 पैसे प्रति किलोग्राम थी। हैरत थी कि नर्सरी वाला तैयार हो गया।
उन्होंने बताया, “इससे हमें यह साफ हो गया कि आने वाला समय आर्गेनिक उत्पादों का ही है।“
तीन एकड़ में 350 वर्मी बेड, हर माह सौ टन उत्पादन

मेरठ जिले में स्थित किनानगर में अमित त्यागी ने 350 वर्मी बेड लगाए हैं। हर माह सौ टन उत्पादन होता है। वह आस्ट्रेलियाई आइसोनिया फेटिडा का इस्तेमाल खाद बनाने के लिए करते हैं। खाद की छनाई के बाद उसकी पैकिंग कर दी जाती है। अमित ने बताया कि वह जिन किसानों की यूनिट लगवाते हैं, उसके लिए बाय-बैक का विकल्प भी रखते हैं। इससे किसान बगैर ज्यादा औपचारिकता में पड़े भी आय अर्जित कर लेता है। उनके मुताबिक खाद की लागत 3 रुपये प्रति किलोग्राम आती है। वह थोक में छह रुपए से लेकर बीस रुपए प्रति किलोग्राम तक खाद बेचते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1,5,10,20,40 जबकि शहरी क्षेत्र के लिए 1,2,5 और 10 किलो की पैकिंग उपलब्ध हैं।
आसान नहीं था यह सफर

अमित बताते हैं उनका सफर आसान नहीं रहा। जिस वक्त उन्होंने केंचुए की खाद बनाने के बारे में सोचा और ऑर्गेनिक खाद की बात शुरू की बहुत ज्यादा लोगों ने उत्साह नहीं दिखाया। उसकी एक वजह यह थी कि ज्यादा उत्पादन के लिए गैर आर्गेनिक, केमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल जोरों पर था। ऐसे में रणनीति बनाई। तय किया कि एक-एक दिन एक-एक गांव में जाकर 50-50 लोगों से बात की जाए। उन्हें नतीजा बताया जाए और केंचुए खाद के प्रयोग के बारे में बताया जाए। कुछ को बात समझ नहीं आती तो कुछ घर ले जाते, बिठाकर बात करते। उनसे मैं कहता कि फिलहाल ट्रायल लें। गमलों में डालकर देखें। अच्छा लगे तो खरीदें। और अपनी धरती को बचाएं। इसकी एक वजह यह भी थी कि उनके पास कोई प्लान बी नहीं था। उन्हें अपने प्लान ए पर ही काम करना होगा। धीरे धीरे मेहनत रंग लाई और काम चल निकला। इस वक्त उनके साथ 40 से ज्यादा लोग जुड़े हैं। अमित उन्हें ओनर पुकारते हैं।
अब केंचुआ खाद की देश भर में कर रहे सप्लाई

केंचुआ खाद को काला सोना भी कहा जाता है। अब अमित केंचुआ खाद की देश भर में सजग इंटरनेशनल ब्रांड के नाम से आपूर्ति करते हैं। नर्सरी, घरेलू बागवानी, खेत और पाली हाउस में इनकी खाद की सप्लाई होती है। अमित बताते हैं कि केंचुआ खाद में गोबर की अपेक्षा तीन गुना अधिक पोषक तत्व होते हैं।
(अमित त्यागी से मोबाइल नंबर 9837257775 पर संपर्क किया जा सकता है)
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