एक कचरा बिनने वाली से एक कामयाब नर्स बनने का सफ़र बानू शेख सफी के लिए इतना आसान नहीं था। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के रविदास नगर की रहने वाली बानू जब सिर्फ तीन साल की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया। जिस उम्र में बच्चे अपने जीवन का पहला पाठ पढ़ते है, उस उम्र में बानू को जिंदगी को कई सबक एक साथ सिखा दिए। नन्ही सी बानू को अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपनी माँ और डेढ़ साल की छोटी बहन, शमा के साथ कचरा बीनने का काम शुरू करना पड़ा।
पर इन दोनों बहनों ने ज़िन्दगी के इस क्रूर खेल के आगे अपने घुटने नहीं टेके। वे दिन भर कचरा बिनती, उन्हें इकठ्ठा करके चुनती और फिर कबाड़ी वाले को बेचने जाती। पर इस कठोर संघर्ष के बावजूद इन दोनों ने अपनी पढाई कभी नहीं छोड़ी।
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किसी तरह पैसे बचा-बचा कर बानू और शमा ने अपनी बारवी तक की पढाई पुरी की और फिर यवतमाल के सरकारी मेडिकल कॉलेज में औक्सिलरी नर्सिंग एंड मिडवाईफी (ANM) कोर्स में दाखिला ले लिया। सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक दोनों बच्चियों की माँ बहुत ज्यादा बीमार रहने लगी। चूँकि बानू अपनी साल भर की पढाई पहले ही ख़त्म कर चूकी थी इसलिए शमा ने अपनी पढाई कुछ दिनों के लिए रोक के अपनी माँ के पास ही रहने का फैसला किया।
बानू ने अपनी पढाई पूरी की और अब वो सरकारी अस्पताल में नर्स के तौर पर कार्यरत है।
Story source: PTI
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