हाल ही में भारत द्वारा पकिस्तान पर किये गए सर्जिकल स्ट्राइक की हर जगह चर्चा है। उरी में हुए शर्मनाक हमले के बाद आतंकवादियों पर इस तरह का हमला करना बेहद ज़रूरी हो चूका था। और विशेषग्य या जानकार ही नहीं बल्कि भारत की आम जनता भी सरकार के इस फैसले का खुल कर समर्थन कर रही है।
सरकार ने इस बात की पुष्टि की है कि इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के लिए इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (ISRO) द्वारा विकसित करीब आधा दर्जन उपग्रहों (सेटेलाइट) की मदद ली गई थी। इन उपग्रहों के ज़रिये पकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बसाए गए आतंकियों के खैमो पर पैनी नज़र रखी गयी।
कारटोसैट टू सी नामक उपग्रह को ISRO द्वारा 22 जून को अहमदाबाद में लांच किया गया था। PTI की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यह उपग्रह करीबन 562 किमी की दूरी से भी किसी भी कार पार्किंग में लगी गाडियों की गिनती आराम से कर सकता है।
Source: ISRO
यह उपग्रह केवल 90 मिनट में पुरे पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है और 0.65 मीटर की रफ़्तार से उच्च स्तरीय तस्वीरे भी खीच लेता है। ऐसी तकनीक न तो पकिस्तान के पास है और न ही चाइना का सबसे बेहतरीन उपग्रह इसकी बराबरी कर सकता है।
PTI से बातचीत में ISRO के चेयरमैन श्री. किरण कुमार ने बताया, “इस कारटोसैट टू सीरीज में 1 मिनट का विडियो लेने की एक अद्भुत क्षमता है। 37 कीमी प्रति सेकेंड की रफ़्तार होने के बावजूद यह उपग्रह पूरे एक मिनट के लिए एक ही बिंदु पर ध्यान केन्द्रित कर उस जगह की तस्वीर या विडिओ ले सकता है।”
सर्जिकल स्ट्राइक, दुश्मन पर किये आम हमलो से बहुत अलग होता है। इस तरह के हमलो में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि केवल लक्ष्य पर ही हमला हो और बाकि जानोमाल को कोई हानि न पहुंचे। इसके लिए सेना को बिलकुल सटीक और उच्च स्तरीय जानकारी की ज़रूरत होती है। और यही काम किया कारटोसैट सीरीज ने।
Picture for representation. Photo: Reuters
सेना को महीन और सटीक जानकारी देने के अलावा ये उपग्रह नगर निर्माण के भी काम आता है। अनाधिकृत खनन को पकड़ने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
ISRO में करीब 17000 कर्मचारी केवल उन उपकरणों को बनाने में रोज़ जुटे हुए होते है जो हमारे देशवासियों तथा हमारे सरहद की रक्षा कर सके।
कारटोसैट के अलावा, भारतीय सेना G-SAT 6 नामक एक 2000 किलो के उपग्रह का भी इस्तेमाल करती है। यह उपग्रह दोनों दिशाओ से विडिओ लेने में सक्षम है। इस उपग्रह को पिछले साल विशेष तौर पर थल सेना की मदद करने के लिए ही बनाया गया था। यदि एक सिपाही अपनी हेलमेट पर एक कैमरा लगा ले तथा GSAT-6 से जुड़े एक उपकरण को अपने हाथ में रखे तो वह युद्ध करते हुए भी इस उपग्रह द्वारा दिए गए तस्वीरो तथा जानकारियों को देख सकता है।
माना जाता है कि ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए रचाए ऑपरेशन जेरेनिमो में भी अमरिका ने इसी तकनीक का इस्तेमाल किया था, जिससे उनके सिपाहिओं को ओसामा के पल पल की गतिविधियों की जानकारी ऐसे ही एक उपग्रह द्वारा दी जा रही थी।
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