मिज़ोरम का सइहा जिला, मिर्च की ‘बर्ड्स आई’ किस्म के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। मिर्च की इस प्रजाति के लिए जिले को जीआई टैग (Geographical Indication) भी मिल चुका है। जीआई टैग या भौगोलिक संकेत किसी भी उत्पाद के लिए एक प्रतीक चिन्ह के समान होता है।
यह उत्पाद की विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति, विशेष गुणवत्ता और पहचान के आधार पर दिया जाता है। इस खास मिर्च का उपयोग औषधीय प्रक्रियाओं के लिए भी होता है। लेकिन इन सब खूबियों के बावजूद सइहा जिला के किसानों को इस मिर्च के उत्पादन से कोई लाभ नहीं मिल रहा था।
गौरतलब है कि सइहा जिला देश के काफी दूर-दराज और दुर्गम जिला में से एक है। ज़्यादातर जनसंख्या गांवों में रहती है और कृषि या फिर मजदूरी पर आधारित है। यहां के किसानों की सबसे बड़ी समस्या बाजार से दूरी है जिस वजह से वे अपनी फसल बिचौलियों के हाथों कम मूल्य में बेच देते हैं।
जीआई टैग वाली मिर्च की इस किस्म के लिए उन्हें 50 रुपये से लेकर 150 रुपये प्रति किलोग्राम का ही भाव मिल पाता था। इस वजह से किसान साल में सिर्फ एक ही बार इसका उत्पादन करते और बाकी समय मजदूरी करते थे।
लेकिन पिछले एक साल में यह तस्वीर बिल्कुल बदल गयी है। आज सइहा के किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फायदा मिल रहा है और साथ ही, एक अलग पहचान भी।

जिला में लगाई गई प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट की वजह से यह संभव हुआ है। फरवरी 2019 से जिला में मिर्च की प्रोसेसिंग करके उसे पाउडर के रूप में बाजार तक पहुंचाने का अभियान शुरू हुआ और इस पहल का श्रेय जाता है सइहा जिला प्रशासन को।
सइहा के जिलाधिकारी भूपेश चौधरी ने द बेटर इंडिया को बताया, “किसानों की परेशानियां यहां किसी से छुपी नहीं है और हम इसी पर विचार कर रहे थे कि आखिर कैसे उन्हें आजीविका के साधन दिए जाएं। काफी विचार-विमर्श करने के बाद हमने किसानों को फसल के उत्पादन के साथ-साथ इसकी प्रोसेसिंग से जोड़ने का निर्णय लिया। सबसे अच्छी बात यह है कि हमें इस अभियान में सरकारी योजनाओं के तहत काफी मदद मिली और यह सफल रहा।”
पिछले साल ही आईएएस भूपेश चौधरी का सइया जिला तबादला हुआ था। उत्तर-भारत से पूर्वोत्तर के राज्य में तबादला किसी चुनौती से कम नहीं था। कम ही दिनों में भाषा और संस्कृति की बाधाओं को पार करके भूपेश यहां के लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। वह कहते हैं कि शुरू में आप कहीं भी जाएं, थोड़ी मुश्किल तो होती ही है लेकिन आपकी भाषा और अन्य बातों से ज्यादा ज़रूरी है आपका उद्देश्य। अगर समुदाय के लोगों को आपके उद्देश्य पर भरोसा है तो वे आपका पूरा सहयोग करते हैं। सइहा में भी यही हुआ।

भूपेश बताते हैं, “सबसे पहले हमने किसानों को आपस में जोड़कर, उनके स्वयं सहायता समूह और फिर समूहों की सहकारिताएं बनाई। हमने ज्याहनो गाँव से अभियान की शुरूआत की। यहां के किसानों को साथ में मिलकर इस खास प्रजाति के मिर्च का उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ-साथ हमें प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट के लिए मशीन की आवश्यकता थी, जिसके लिए हमें भारत पेट्रोलियम कंपनी से सीएसआर के तहत मदद मिली।”
जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-रफ़्तार के तहत इस पूरे प्रोजेक्ट को किया। सहकारिताएं बनवाने के बाद किसानों को ट्रेनिंग दी गई। साथ ही, फसल को रखने के लिए स्टोर हाउस बनवाया गया। स्टोर हाउस के बाद कलेक्शन सेंटर और पानी की व्यवस्था की गई, जहां पर मिर्च को अच्छे से धोया जा सके। इसके बाद, मिर्च को सुखाने के लिए सोलर टनल बनाई गयी। सोलर टनल के बाद, मिर्च की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के लिए मशीन लगी। इस पूरे प्रोजेक्ट का खर्च राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मनरेगा योजना और भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड के सीएसआर के ज़रिए पूरा हुआ।
अक्टूबर 2019 में मिर्च की प्रोसेसिंग शुरू हुई और इनका पाउडर बनाकर, ‘प्रोडक्ट ऑफ़ मारालैंड’ ब्रांड नाम से बाज़ार में उतारा गया। मिर्च पाउडर की मार्केटिंग के लिए प्रशासन ने स्थानीय सामाजिक संगठनों की मदद ली।
डिस्ट्रिक्ट रूरल डेवलपमेंट एजेंसी की प्रोग्राम अफसर, गलीली नाना के मुताबिक, “पहले किसानों को उनकी ताजा मिर्च का 50 रुपये प्रति किलो तो सूखी मिर्च का 150 रुपये प्रति किलो दाम मिलता था। लेकिन इसी मिर्च के पाउडर का दाम उन्हें 700 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहा है। मात्र 100 ग्राम मिर्च पाउडर का मूल्य 35 रुपये है।”

ज्याहनो गाँव में इस प्रोजेक्ट की सफलता के बाद आज जिला के अन्य पांच गाँव भी इससे जुड़ गए हैं। 300 से ज्यादा किसानों को प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट से मदद मिल रहा है। इस इलाके की यह खास मिर्च अब राज्य के बाहर भी पहुंचने लगी है।
गाँव के एक किसान, वीटी ल्यसा कहते हैं कि पहले वह अपनी फसल बहुत कम दामों में बेचने पर मजबूर थे। लेकिन अब उन्हें उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल रहा है। जिस वजह से उनके घर की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हुई है। वहीं, एक महिला किसान, पी. न्गोज़ी कहतीं हैं कि अब वह पूरे साल इसी काम से जुडी रह सकती हैं। पहले उनके पास मिर्च स्टोर करने के लिए साधन नहीं थे लेकिन अब स्टोर हाउस और सोलर टनल होने से, वह साल में दो बार मिर्च का उत्पादन कर सकती हैं।

मिर्च की प्रोसेसिंग में सफलता के बाद, जिला में हल्दी की प्रोसेसिंग पर भी काम हो रहा है। सइहा जिला का यह प्रोजेक्ट पूरे राज्य के लिए एक उदाहरण बन गया है, क्योंकि इससे किसानों की आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पहले जो छोटे किसान साल में एक ही फसल का उत्पादन कर पाते थे, अब वे दोनों मौसम की फसल ले सकते हैं। सबसे अच्छी बात है कि यहां पर किसानों को जैविक खेती से जोड़ा गया है। आईएएस चौधरी का विश्वास है कि प्रोसेसिंग के ज़रिए जल्द ही इलाके के किसानों की पूरे देश में अपनी होगी।
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बेशक, सइहा जिला प्रशासन का यह कदम प्रशंसनीय है। साथ ही, प्रोसेसिंग का यह अभियान लॉकडाउन की स्थिति में भी काफी कारगर साबित हुआ है। यहां के किसानों को इसका लाभ मिल रहा है। किसानों को प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग देकर, उनका खुद का उद्यम शुरू करवाना ही आज की ज़रूरत है। अगर किसान सीधे ग्राहकों से जुड़ेंगे तभी उन्हें उनकी मेहनत का सही दाम मिलेगा।
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