कोविड-19 लॉकडाउन से पहले ही, फलों की खेती करने वाले रोहित चव्हाण के लिए बाजार के दरवाजे बंद हो गए थे। रोहित, पुणे जिला स्थित इंदापुर में अपने 72 एकड़ की जमीन पर अंगूर की खेती करते हैं। रोहित ने एमएससी (हॉर्टिकल्चर) की पढ़ाई की है और वह हमेशा खेती में अपने पिता की मदद करना चाहते थे।
आम तौर पर, किसान काले अंगूरों को यूरोप निर्यात करते हैं, जिससे उन्हें सामान्यतः 110-115 रुपये प्रति किलो कमाई होती है, लेकिन, कोरोना महामारी के कारण निर्यात मार्गों के बंद होने के बाद, उन्हें घरेलू बाजार की ओर रुख करना पड़ा। यहां भी, उनके उत्पादों की मांग ना के बराबर थी और उन्हें अधिकतम 20 रुपए प्रति किलो दाम मिल रहे थे।
रोहित काफी दुविधा की स्थिति में थे कि यदि वह अंगूर को 20 रुपए प्रति किलो बेचते हैं, तो इसका मतलब है कि श्रम शुल्क और अन्य लागत राशि भी वापस नहीं आ पाएगी। दूसरी ओर, अंगूर को खेतों में ही छोड़ देने का अर्थ है – साल भर की मेहनत को बर्बाद कर देना।
इसी क्रम में, उन्हें नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्रेप्स (एनआरसीजी) पुणे द्वारा 2017-18 में जारी एक रिपोर्ट की मदद मिली, जिसमें यह बताया गया है कि अंगूर को किशमिश में कैसे बदला जाता है।
रोहित ने द बेटर इंडिया को बताया, “एक अनुकूल मौसम में, अंगूर को किशमिश में बदलने के लिए तकरीबन 12-15 दिन लगते हैं। मैंने 2 अप्रैल को इस प्रक्रिया पर काम करना शुरू किया और हाल ही में 10 टन किशमिश बेची है। वह भी 250 रुपये प्रति किलो की दर से।“
ड्राई-ऑन-वाइन विधि से महाराष्ट्र के अंगूर किसानों को मिल रही है मदद
ड्राई-ऑन-वाइन विधि न केवल रोहित बल्कि पुणे, नासिक और सांगली कई के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। एनआरसीजी, किसानों को इस तकनीक को अपनाने में मदद कर रहा है, क्योंकि बारिश और लॉकडाउन के कारण किसानों को भारी क्षति हुई है। हालांकि, ये किसान हमेशा ताजे अंगूरों की खेती पर ध्यान देते हैं, लेकिन ऐसी मुश्किल घड़ी में वे इसे हरे और काले किशमिश में बदल कर अपनी पूरी उपज को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसी स्थिति में, अब सवाल उठता है कि ड्राई-ऑन-वाइन प्रक्रिया कार्य कैसे करती है? द बेटर इंडिया ने इसका जवाब जानने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के बागवानी विज्ञान के उप महानिदेशक डॉ. आनंद कुमार सिंह से बातचीत की।
आनंद कुमार सिंह ने इस तकनीक के बारे में बताया-
1. अंगूर से किशमिश बनाने के लिए, प्रति एक लीटर पानी में 15 मिली. इथाइल ओलियट और 25 ग्राम पोटेशियम कार्बोनेट मिला दें और इसे अंगूर के गुच्छों पर स्प्र करें। एक एकड़ खेत के लिए 150 लीटर पानी के साथ 2.25 लीटर इथाइल ओलियट और 3.75 किलो पोटेशियम कार्बोनेट का घोल बनाएं।
2. तीन दिनों के बाद दूसरी बार छिड़काव करें, लेकिन इस बार इसकी सांद्रता कम होनी चाहिए, जैसे – 150 लीटर पानी के साथ 1.65 लीटर इथाइल ओलियट और 2.70 किलो पोटेशियम कार्बोनेट मिलाएं।
3. यदि जरूरी हो, तो फल विकास चरण के दौरान इस्तेमाल किए गए गिबेरेलिक एसिड के आधार पर, चौथे दिन आधी मात्रा में एक और बार स्प्रे करें। आधे डोज के साथ छठे दिन भी छिड़काव किया जा सकता है।
4. गुच्छे पर इथाइल ओलियट और पोटेशियम कार्बोनेट का छिड़काव करने के कारण यह 12 से 14 दिनों में अंगूर को 16 प्रतिशत नमी के साथ किशमिश में बदल देता है।
नतीजे के बारे में किसान क्या कहते हैं:
रोहित ने लगभग 12-15 दिनों में अपने किशमिश की फसल को काट लिया। उन्हें इस प्रक्रिया पर इतना भरोसा था कि उन्होंने विक्रेताओं को पहले से ही अपेक्षित फसल के बारे में बता दिया था और उन्होंने जल्द ही इसकी बिक्री भी कर दी।
रोहित कहते हैं, “एनआरसीजी ने उन्हें 100-200 लताओं पर यह प्रयोग करने की सलाह दी थी। लेकिन, मैंने इसे अपनी 10 एकड़ की जमीन पर किया और जो नतीजा आया है, उससे मैं काफी खुश हूं। इसलिए, मैंने फैसला किया है कि मैं अगले वर्ष से 15 एकड़ जमीन पर ड्राई-ऑन-वाइन विधि से किशमिश की खेती करूंगा। इस तकनीक के बारे में मैंने अपने चार दोस्तों को भी बताया है।”
अरुण मोरे, जो नासिक के एक अन्य अंगूर किसान हैं, वह इस चीज को लेकर इतने आश्वस्त नहीं थे। हालांकि, उन्होंने अपने खेत में किशमिश की फसल उगाई है और वे उसकी प्रोसेसिंग और पैकेजिंग कर रहे हैं।
उन्हें उम्मीद है कि प्रोसेसिंग होने तक बाजार फिर से खुल जाएंगे और वह विक्रेताओं के साथ फिर से जुड़ सकते हैं। वे आगे कहते हैं कि ड्राई-ऑन-वाइन विधि से पारंपरिक तकनीक की तुलना में कम निवेश की आवश्यकता होती है – यह शायद इसी तकनीक की ही कमी थी, जिससे उन्हें अतीत में किशमिश बनाने का विचार नहीं आया।
भारत में अंगूर के कुल उत्पादन में महाराष्ट्र की 81 प्रतिशत भागीदारी है, लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन के कारण काले और हरे अंगूर उगाने वाले हजारों किसानों को भारी क्षति हुई है।
इस विषय में डॉ. सिंह कहते हैं, “इस वर्ष, महाराष्ट्र में अंगूर की भरपूर फसल थी और राज्य के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों जैसे नासिक, पुणे और सतारा से 6 अप्रैल तक लगभग 85,000 टन अंगूर निर्यात किए गए थे। तब जब बाजार पूरी तरह से गिरा हुआ था। जब अंगूर खरीदने के लिए कोई नहीं था। ऐसे में, हजारों टन अंगूर लताओं में ही होने कारण किसान काफी परेशान थे।”
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के कारण बढ़ते नुकसान को देखते हुए, रोहित और मोरे जैसे किसानों ने एनआरसीजी से मदद की अपील की। इस बारे में किसानों का कहना है कि जिस दिन लॉकडाउन लागू हुआ, हमने एनआरसीजी से सम्पर्क किया और अगले दो दिनों अंदर, उन्होंने ड्राई-ऑन-वाइन तकनीक को लेकर जरूरी वीडियो, परामर्श और निर्देश के संकलित किए। इसके जरिए हमें जानकारी दी गई कि कौन-से रसायनों का उपयोग कब, कैसे और कितनी मात्रा में करना है।इससे व्यवस्था में हमारा विश्वास बढ़ा।
डॉ. सिंह ने पहले ही यह गिना दिया है कि इस तकनीक से कितने किसानों को फायदा हुआ है। रोहित की तरह, कई अन्य किसानों ने भी अपने करीबियों के साथ इस तकनीक को साझा किया, जिससे पूरे महाराष्ट्र के अंगूर किसानों को फायदा हो रहा है।
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बेशक, इस विधि से किसानों को पहले की तुलना में थोड़ा कम फायदा हो रहा है, लेकिन कम-से-कम, अंगूर अब इतने खट्टे तो नहीं हैं।
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