तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के साथ यह जरूरी है कि हम घरों का निर्माण कराते समय काफी सचेत रहें जो न सिर्फ देखने में सुंदर हो बल्कि उनमें कार्बन फुटप्रिंट भी कम से कम हो। इसलिए हमें पर्यावरण के अनुकूल उपाय खोजने की जरूरत है। खास बात यह है कि आर्किटेक्ट, इंजीनियर और फर्म इसमें हमारी मदद कर सकते हैं।
ऐसी ही एक कंपनी है ‘पुट योर हैंड्स टुगेदर’ (पीवाईएचटी), यह मुंबई स्थित बायो-आर्किटेक्चर फर्म है जो स्थानीय और प्राकृतिक भवन निर्माण सामग्री का उपयोग करती है, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को ध्यान में रखकर जलवायु के अनुकूल अपना प्रोजेक्ट डिजाइन करती है और आसपास के लोगों को इसमें शामिल करती है।
इस स्टार्टअप की स्थापना जून 2011 में आर्किटेक्चर स्कूल के पांच लोगों के एक समूह ने मिलकर की थी। वर्तमान में पांच सह-संस्थापकों में से दो सक्रिय रुप से पीवाईएचटी का संचालन करते हैं।
बायो-आर्किटेक्चर फर्म शुरू करने की प्रेरणा कैसे मिली?

सह-संस्थापक और आर्किटेक्ट शाहवीर ईरानी कहते हैं , ‘मुझे लगता है कि हम क्वालिटी वाला काम करते हैं जो लंबे समय तक टिकाऊ होता है। इसी वजह से हमने इसकी शुरूआत की। अगर मैं अपनी बात करुं तो मैं हमेशा इसी कोशिश में रहता हूँ कि कचरे का सही प्रबंधन और उपभोग कैसे किया जाए। इसके अलावा स्टार्टअप के सभी सदस्य आर्किटेक्चर के छात्र हैं और डिजाइन पर उनकी अच्छी पकड़ है। हमें लगा कि हमें अपने काम को और तराशना चाहिए इसलिए हमने इस कंपनी की शुरुआत की।’
अब तक वे लगभग आठ प्रोजेक्ट पूरा कर चुके हैं और वर्तमान में तीन पर काम कर रहे हैं। उनके काम की खास बात यह है कि हर प्रोजेक्ट में इस्तेमाल की जाने वाली लगभग 65 से 95 प्रतिशत निर्माण सामग्री बायोडिग्रेडेबल है। इनमें बांस, लकड़ी, चूना, मिट्टी और पत्थर जैसी सामग्रियां शामिल हैं। इसके अलावा वे स्वदेशी तकनीक से जलवायु के अनुकूल घरों का निर्माण करते हैं जिसमें कंप्रेस्ड मड ब्रिक्स का उपयोग किया जाता है जो घरों को 7 डिग्री तक ठंडा कर सकता है!
छात्र से लेकर बायो आर्किटेक्ट बनने का सफ़र

संस्थापक आरिन अटारी और शाहवीर ईरानी मुंबई में रिजवी कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर में पढ़ाई के दौरान मिले थे। 2010 में डिग्री खत्म करने के बाद उन्होंने अपने अन्य बैचमेट्स के साथ पीवाईएचटी शुरु करने का फैसला किया। लेकिन उन्हें अपना स्टार्टअप सही तरीके से चलाने के लिए अनुभव और दक्ष होने की जरुरत थी। इसलिए उन्होंने रिसर्च करना शुरु किया।
शाहवीर बताते हैं कि, “हम वर्कशॉप में भाग लेने लगे और ऐसे लोगों से मिलना शुरू किया जो पहले से ही क्वालिटी वर्क कर रहे थे। हमने अपने मित्रों और परिवार के फार्महाउस पर बहुत छोटे प्रोजेक्ट शुरू किये। मुझे याद है कि हमने बांस जैसी टिकाऊ सामग्री का उपयोग करके एक छोटा गेट और पानी की टंकी के लिए छोटा कवर बनाया था।’
हमारी रिसर्च लगभग आठ महीने तक चली और इसके बाद हमने अपनी कंपनी शुरु की। फर्म को कॉलेज से अपने इंटीरियर डिज़ाइनर प्रोफेसर की मदद से अपना पहला प्रोजेक्ट मिला।

शाहवीर कहते हैं, “हमारे प्रोफेसर को पहले से ही कंपनी और हमारी वास्तुकला के बारे में जानकारी थी। वह लोनावला के पास कामशेत में एक ग्राहक के लिए इंटीरियर डिजाइनिंग कर रहे थे। वह क्लाइंट अपने लिए एक वीकेंड होम बनवाना चाहता था। हमारे प्रोफेसर ने उनसे हमारा संपर्क करवाया।”
इस प्रोजेक्ट में, इन युवा आर्किटेक्ट ने मिट्टी का उपयोग करके घर बनाने के लिए अपने प्रोफेसर के मार्गदर्शन में काम किया। उन्होंने स्थानीय श्रमिकों को इकठ्ठा किया, उन्हें प्रशिक्षित किया और निर्माण प्रक्रिया में भागीदार बनाया।
घर की नींव पत्थर और सीमेंट से बनी थी, जबकि दीवारें ईंट और मिट्टी के मोर्टार से बनाई गई थीं, जिसमें ‘कोब तकनीक’ का इस्तेमाल किया गया था, जहां मिट्टी के गोले एक दूसरे के ऊपर बिछाए गए थे। इसके लिए मिट्टी की खुदाई निर्माण स्थल से ही की गई थी।
शाहवीर अपने एक अन्य यादगार प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं कि वह खादावली में बना एक फार्महाउस है। उन्होंने कंप्रेस्ड स्टेबलाइज्ड अर्थ ब्लॉक (सीएसईबी) तकनीक का उपयोग कर घर का निर्माण किया, जो ऑरोविल अर्थ इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित औरम प्रेस नामक मशीन से बनाई गई मिट्टी की ईंटें हैं। यह पहली बार था जब उन्होंने सीएसईबी का इस्तेमाल किया था, और जब घर बनकर तैयार हुआ तब उन्होंने पाया कि अंदर का तापमान बाहर से सात डिग्री कम था।

खडावली में उनका जो फार्महाउस प्रोजेक्ट था उसमें पहली बार उन्होंने कंप्रेस्ड स्टेबलाइज्ड अर्थ ब्लॉक का इस्तेमाल किया।
कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए मिट्टी का उपयोग करना एक शानदार तरीका है। यह न केवल बायोडिग्रेडेबल है, बल्कि यह हर जगह आसानी से उपलब्ध है, इसलिए इसे आसानी से बिल्डिंग तकनीकों में शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा मिट्टी का उपयोग करने से गर्मियों में अंदर का तापमान ठंडा होता है और सर्दियों में गर्म।
इस तरह के प्रोजेक्ट को पूरा करने के बाद न सिर्फ एक बड़ा अनुभव हासिल होता है, बल्कि युवा आर्किटेक्टों को भविष्य में अधिक चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट अपने हाथ में लेने का विश्वास पैदा होता है।
टीम को कोई प्रोजेक्ट मिलने के बाद आगे क्या प्रक्रियाएं होती हैं?
पीवाईएचटी मुंबई से बाहर स्थित है, लेकिन उन्होंने मनाली और नेपाल के निर्मम इलाकों सहित दूर-दूर तक प्रोजेक्ट को पूरा किया है।

शाहवीर बताते हैं , “हम पहले साइट पर जाते हैं और तीन दिन से लेकर एक हफ्ते तक इसका बारीकी से अध्ययन करते हैं। इससे हमें यह मालूम करने में आसानी होती है कि उस जगह पर कैसी निर्माण सामग्री और अन्य स्रोत उपलब्ध हैं। हम निर्माण तकनीकों को भी देखते हैं जो उस क्षेत्र के लिए स्वदेशी हैं और स्थानीय ठेकेदारों और बिल्डरों के साथ मिलते हैं। इस तरह, जब प्रोजेक्ट शुरु हो जाता है तो बाकी प्रक्रियाएं भी अपने आप शुरू हो जाती हैं”।
कभी-कभी आर्किटेक्ट नई तकनीकों के बारे में बताते हैं जिन्हें अधिकांश बिल्डर नहीं जानते हैं। ऐसे में वे श्रमिकों को इन तकनीकों के बारे में सिखाने के लिए कार्यशालाएं भी आयोजित करते हैं।

घर को अनोखा आकार देने के लिए विभिन्न तरीकों से मिट्टी का उपयोग किया जा सकता है। कोब तकनीक में प्रयुक्त मिट्टी और चूने के समान मिश्रण से जिन ईंटों को बनाया जाता है उन्हें ’एडोब’ कहते हैं। ये ईंट धूप में सुखायी जाती हैं जो ईंधन और पर्यावरण को उत्सर्जन से बचाती हैं।
हालांकि किसी भी मिट्टी से ईंट का निर्माण नहीं किया जा सकता है। कई बार टेस्टिंग और ट्रायल के बाद ही सही ईंट का चुनाव हो पाता है। शाहवीर ने कहा कि मिट्टी के मिश्रण में 15 से 20 फीसदी चिकनी मिट्टी, 65 से 70 फीसदी रेत, 5 से 7 फीसदी चूना और बाकी में गाद, बजरी और अन्य कार्बनिक तत्व होने चाहिए।
एक अन्य तकनीक जिसका वे उपयोग करते हैं वह है रैम्ड वॉल तकनीक। जहां मिट्टी के मिश्रण (कम पानी कंटेंट के साथ) को एक सांचे में ढाला जाता है। एक बार जब यह सूख जाता है तो इससे दीवारों का निर्माण किया जा सकता है।

एडोब ब्रिक्स के अलावा वे सीएसईबी का भी उपयोग करते हैं और चूंकि पीवाईएचटी का खुद का ऑरम प्रेस नहीं है, इसलिए वे इन ईंटों को महाराष्ट्र के वाडा में गोवर्धन इकोविलेज के एक ठेकेदार से लेते हैं। शाहवीर वैटल एंड डब तकनीक के बारे में बताते हैं जो एक ऐसी निर्माण विधि है जिसमें बांस की पट्टियों को जाली में रखा जाता है और मिट्टी के मिश्रण से ढक दिया जाता है।
स्वदेशी का स्वदेशी और ग्राहक भी खुश
घर के निर्माण में प्राकृतिक मैटेरियल के इस्तेमाल के अलावा पीवाईएचटी स्थानीय निर्माण सामग्री का भी उपयोग करता है।
मनाली के पास एक गाँव में शाहवीर ने बोल्डर से घर का एक हिस्सा बनवाया। इस प्रोजेक्ट की खास बात यह थी कि इसे उन्होंने मनाली के बुरवा गाँव में पूरा किया था। उन्होंने कहा, “हमारे क्लाइंट स्मारिका राणा और उनके पति थे जो एक शांत जीवन जीने के लिए मुंबई छोड़कर मनाली में बसना चाहते थे। यह दंपति धौलाधार रेंज के एक एकड़ भूमि पर एक घर बनाना चाहता था।“

शेमारू एंटरटेनमेंट की पूर्व प्रबंधक स्मारिका बताती हैं , “हम चाहते थे कि क्षेत्र की पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करते हुए घर को स्वाभाविक रूप से और स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके बनाया गया हो। हम शहरों के जैसा घर नहीं चाहते जो कमाई के उद्देश्य से बनाए जाते हैं। हम अपने होमस्टे का निर्माण काफी अलग करना चाहते थे।”
स्मारिका की उम्मीदों पर आखिरकार पीवाईएचटी खरा उतरा। एक बार उनकी जरुरतों को समझने के बाद आर्किटेक्ट उस जगह पर गए और उन्होंने स्थानीय पत्थरों के स्लैब से घर का निर्माण किया। निर्माणकार्य 2017 के मध्य में शुरु हुआ और एक साल के अंदर पूरा हो गया। छह कमरों वाला यह घर नवंबर 2018 तक बनकर तैयार हो गया।

चुनौतियां और आगे की राह
शाहवीर बताते हैं कि जब भी वे स्थानीय बिल्डरों के साथ काम करते हैं, तो वे अक्सर उन निर्माण तकनीकों को लेकर प्रतिरोध और संदेह व्यक्त करते हैं जो वे अपनाना चाहते हैं। लेकिन स्थानीय बिल्डरों को प्रशिक्षित करके वह उन्हें समझाने में कामयाब हो जाते हैं।
शाहवीर कहते हैं, “चूंकि हम औद्योगिक के बजाय प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करते हैं, इसलिए सभी तत्वों को मानकीकृत करना मुश्किल है। एक दीवार बनाने के लिए यदि हम मिट्टी का उपयोग कर रहे हैं, तो हमें निर्माण शुरु करने से पहले इसका परीक्षण करना होगा और एक नमूना बनाना होगा। इसमें हमें कुछ समय लगता है। बावजूद इसके बायो-आर्किटेक्चर फर्म के पास आगे के लिए बहुत सारी चीजें हैं।”
शाहवीर कहते हैं कि वह अलीबाग में एक बांस फार्महाउस प्रोजेक्ट और नासिक में एक होमस्टे पर काम कर रहे थे। चूंकि अब सभी काम रुक गए हैं लेकिन काम शुरू होते ही वे इन प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहते हैं।

उन्होंने बताया कि भविष्य में बायो-आर्किटेक्चर फर्म, अर्थ-बेस्ड प्लांटर्स और लाइट फिक्चर का निर्माण करके अपने व्यवसाय को बढ़ाने की योजना बना रहा है। बांस के फर्नीचर पर वे काम करना चाहते हैं।
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शाहवीर बताते हैं , “शहरों में प्राकृतिक निर्माण तकनीकों को लागू करने की बहुत गुंजाइश है। प्राकृतिक सामग्रियों का इस्तेमाल करके अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों जैसी इमारतों का निर्माण किया जा सकता है। इससे ऊर्जा की कम खपत और पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचेगा। हमारा मुख्य उद्देश्य अपने काम के माध्यम से लंबे समय तक एक अच्छा प्रभाव डालना है।”
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