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कोविड-19 : रोगियों की सेवा के लिए अफ्रीका की आरामदायक ज़िंदगी छोड़ मुंबई लौटीं यह डॉक्टर!

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डॉ. दिव्या बताती हैं, “जब हम छोटे थे तो सैनिकों का अपने देश के लिए बलिदान देने और युद्ध के मैदान में सबसे आगे खड़े रहने की कहानियां सुनते थे। इसलिए जब इस तरह का संकट आया, तो मुझे पता था कि मुझे रोगियों की सेवा करनी है।”

डॉ. दिव्या सिंह ने जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रैजुएट मेडिसिन एंड रिसर्च (JIPMER) से जनरल सर्जरी में एम.एस. किया है और केवल तीन महीने पहले अपने पति के साथ अफ्रीका के जिबूती शहर शिफ्ट हुई थी। डॉ. सिंह के पति भारतीय विदेश सेवा के साथ काम करते हैं।

लेकिन COVID-19 महामारी के प्रसार के बारे में खबर सुनने पर, उन्हें लगा की अपने देश में डॉक्टरों की ज़्यादा ज़रूरत होगी और उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया।

डॉ. सिंह बताती हैं, “मैं मार्च के पहले सप्ताह तक भारत लौट आई थी और तब पॉज़िटिव मामलों की संख्या 400 से कम थी। एक हफ्ते के भीतर, व्हाट्सएप के ज़रिए मुंबई स्थित एक स्वयंसेवक समूह ने मदद के लिए संपर्क किया। उन्हें वर्ली और धारावी स्लम क्षेत्रों में महामारी निगरानी में मदद के लिए मेडिकल पेशेवरों की ज़रूरत थी।”

एक महीने से, डॉ. सिंह इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षणों वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर रही हैं।

डॉ. सिंह बताती हैं, “उस क्षेत्र में काम कर रहे 10 डॉक्टरों का हमारा एक समूह है। सर्वे के दौरान हम लोगों से कुछ प्रश्न पूछने थे, जैसे कि क्या हाल-फिलहाल उन्होंने कहीं यात्रा की है या क्या वे किसी COVID-19 रोगी के संपर्क में रहे हैं और अगर उनमें किसी तरह के लक्षण दिखाई देते हैं तो हम स्वाब एकत्र करते हैं जो परीक्षण के लिए बाहर भेजा जाएगा। प्रत्येक दिन पॉजिटिव मामलों की संख्या में वृद्धि के साथ यह प्रक्रिया आज भी जारी है।”

इसके अलावा, उन्होंने अन्य डॉक्टरों के साथ एक क्राउड फंडराइज़र भी आयोजित किया है। ये डॉक्टर मुंबई सर्जिकल सोसायटी का हिस्सा हैं और पीपीई किट की कमी को हल करने के लिए फंड जुटा रहे हैं।

डॉ. सिंह बताती हैं, “मार्च के अंत तक, भारत में मामले बढ़ने लगे और बीएमसी ने सावधानी बरतते हुए अस्थायी बुखार क्लीनिक स्थापित करना शुरू किया। कुछ ही हफ्तों के भीतर मैंने पॉजिटिव मामलों की प्रतिदिन औसत संख्या 2 से 20 तक बढ़ते हुए देखा है। लेकिन इस सब के दौरान, मैं देख सकती थी कि मेरे आसपास के सभी स्वास्थ्य कर्मचारी महामारी से लड़ने के लिए लगातार काम कर रहे थे।”

इन सबके बीच, डॉ. सिंह ने अपने बालों को काटने का फैसला किया और इसे एक एनजीओ को दान कर दिया, जो कैंसर रोगियों के लिए विग बनाता है।

हालांकि,ऐसी महामारी के समय घर से बाहर निकलने और वॉलन्टियर के रूप में काम करने के फैसले को लेकर डॉ. सिंह के माता-पिता शुरू में डरे हुए थे। लेकिन अब संकट की इस स्थिति के समय अपनी बेटी की समाज की सेवा करने की भावना पर उन्हें गर्व है।

डॉ. सिंह कहती हैं, “बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा है कि ऐसे समय में जब अफ्रीका, जो कोविड-19 के बहुत कम मामलों वाले देशों में से एक है, वहां से वापस आने के लिए इस तरह के कठोर निर्णय लेने के लिए किसने प्रेरित किया है। इस सवाल के लिए मेरा जवाब काफी सरल है: यह मेरा कर्तव्य था। हालांकि, मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद केवल एक साल से प्रैक्टिस कर रही थी लेकिन मेरा मानना है कि एक बार जब आपने समाज की सेवा करने की ओर कदम उठाया है तो जब तक यह पूरा ना हो जाए, पीछे नहीं लौटना चाहिए।

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व्यक्तिगत हितों को अलग रखते हुए अपनी जान जोखिम में डाल कर काम करने वाली डॉ. दिव्या कई स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों में से एक हैं, जो कोविड-19 महामारी की जंग में आगे हो कर काम कर रहे हैं। हम उन सभी को सलाम करते हैं!

मूल लेख: सेरेन सारा ज़कारिया


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