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सालों की मेहनत से बंजर पड़ी कोयले की खदान में लगाए हरे भरे पेड़,बना बायो डाइवर्सिटी पार्क!

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झारखंड एक ऐसा प्रदेश है जो जल, जंगल, जमीन और अपनी खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए मशहूर झारखंड में देश के कोयले का सबसे बड़ा भंडार पाया जाता है। खनन गतिविधियों से राज्य के कई जिलों में प्रदूषण, जैव विविधता असंतुलन और बंजर जमीनें बढ़ रही हैं। ऐसे समय में ‘पिपरवार ओपन कास्ट माइंस’ की एक पहल ने जैव विविधता एवं पर्यावरण संरक्षण को बहाल कर एक मिसाल कायम कर दी है। 5 हेक्टेयर खदान की बंजर भूमि पर शुरू की गई बायोडायवर्सिटी की इस पहल को आज 30 हेक्टेयर में बढ़ाया जा चुका है। वहीं करीब 50 हेक्टेयर भूमि पर अभी भी काम चालू है।

पिपरवार ओपन कास्ट माइनिंग प्रोजेक्ट के आस-पास की हरियाली आपको यह सोचने पर मजबूर कर देगी कि कहीं आप गलत जगह पर तो नहीं हैं। ऐसी हरियाली और कोयले की खान कभी आस-पास नहीं होते। लेकिन पिपरवार के कायाकल्प वाटिका ने इसको सच साबित किया और एक मिसाल कायम की है। जैव विविधता संरक्षण की पहल का ही नतीजा है कायाकल्प वाटिका, जिसे पिपरवार माइंस के प्रबंधन एवं पर्यावरणविद् की टीम ने अंजाम दिया।

Coal Mine
पिपरवार ओपन कास्ट माइंस(बायो डाइवर्सिटी पार्क बनने से पहले की तस्वीर)

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 55 किमी दूर पिपरवार ओपन कास्ट माइंस है। करीब 540 हेक्टेयर में फैली कोयले की यह खदान कुछ सालों पहले तक कोयले के सर्वाधिक उत्पादन के लिए जानी जाती थी। 1990 के दशक से ओपन कास्ट माइनिंग के जरिए कोयला खनन का काम शुरू हुआ, फिर क्या था पर्यावरण एवं जैव विविधता की स्थिति चिंतनीय होती गई।

साल 2015 में सेंट्रल कोलफील्ड्स इंडिया की स्थानीय इकाई, पिपरवार ओपन कास्ट माइन्स ने माइनिंग के बाद खाली पड़े खदान के क्षेत्र पर कुछ नया करने का सोचा। लगातार कोयला खनन के बाद वीरान और बंजर हो चुकी पिपरवार परियोजना क्षेत्र की भूमि पर हरियाली तो दूर कोयले की चट्टानों एवं गड्ढ़ों को भरने की उम्मीद भी नहीं दिख रही थी। कोयला खनन पूरा हो जाने की वजह से यह इलाका उत्पादन के काम भी नहीं आ पा रहा था। वहीं जमीन पर चारों ओर काली धूल की परत, कोयले के कचरे के ढ़ेर और खनन से बने बड़े-बड़े गड्ढे ही नजर आते थे। लेकिन विगत कुछ सालों की मेहनत ने पिपरवार के बंद पड़े खदान क्षेत्र के काले चेहरे को बदलकर हरियाली की हरी चादर से ढ़क दिया है, जो बरबस लोगों के आकर्षण का केंद्र बन रही है।

बंद पड़े कोयला खदान से कायाकल्प वाटिका का सफर

Coal Mine
अब कुछ ऐसी दिखती है कोयले की खदान।

पिपरवार ओपन कास्ट माइंस के क्षेत्रीय पर्यावरण पदाधिकारी संजय कुमार बताते हैं, “खदान के एक बड़े भूभाग पर जब खनन कार्य बंद हो गया तो वहाँ बड़े-बड़े गड्ढों में मिट्टी भरकर पिछले 4-5 साल की मेहनत से कायाकल्प वाटिका को स्थापित किया गया। अब वहाँ हजारों लोग घूमने आते हैं और अब वह एक हरियाली का केंद्र है।”

वह आगे बताते हैं, “यह सफ़र इतना भी आसान नहीं था पिछले कुछ वर्षों में हम लोगों ने सबसे पहले खनन के कारण हुए मिट्टी के गड्ढों को भरने का कार्य किया। बिना मिट्टी की उपरी सतह तैयार किए, हम कुछ करने का सोच ही नहीं सकते थे।

फिर तीन स्टेज में हमने पूरे मिशन को अंजाम दिया। सबसे पहले हम लोगों ने लैंडस्कैपिंग किया। फिर उस 50 हेक्टेयर जमीन का पानी रोकने की व्यवस्था के लिए कई तालाब बनवाए। फिर मिट्टी की उर्वराशक्ति को बढ़ाने के लिए कम्पोस्ट पाइल का निर्माण कर कम्पोस्टिंग की और आखिरी में विभिन्न प्रजातियों का पौधारोपण कराया, जिसमें नेटिव प्रजाति प्रमुख थी जैसे महुआ, गम्हार, साल, सीशम नीम, पलाश, जामुन आदि। इन तीन चरणों के बाद आज कायाकल्प वाटिका लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यही नहीं, यहाँ आसपास बनाए गए तालाबों में सालभर पानी रहता है।”

बायो डाइवर्सिटी पुर्नस्थापन का लक्ष्य हुआ साकार

Coal Mine
कायाकल्प वाटिका के अन्दर लगे पेड़-पौधे

कायाकल्प वाटिका नामक इस पहल से एक ओर जहां प्रकृति रिचार्ज मोड पर है और हरियाली चारों ओर है तो वहीं हजारों पेड़ पौधे आपको अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कुछ साल पहले तक जहां पक्षियों की आवाज कभी सुनने को नहीं मिलती थी वहीं आज पक्षियां एवं तितलियां झुंड में आकर हरियाली की जीत का जश्न मनाते दिखते हैं। स्थानीय लोगों में इस पहल को लेकर काफी खुशी है।

पिपरवार के बेंती गांव के वार्ड काउंसलर प्रदीप केसरी बताते है कि स्थानीय लोगों के लिए यह एक आकर्षण का केंद्र है। उन्होंने कहा, “हम सब अपने परिवार संग यहाँ अक्सर समय बिताते हैं। बहुत कम समय में इस ईको पार्क को प्रबंधन ने विकसित किया जो काबिले तारिफ है। यहाँ हर किस्म के वृक्ष एवं पौधे हैं जिससे बच्चों को काफी कुछ नया सीखने के लिए मिलता है।”

Coal Mine
इलाके के बच्चों के लिए भी यह एक टूरिस्ट स्पॉट बना गया है.

कोयला खनन के क्षेत्र में जैव विविधता संवर्धन एवं पर्यावरण स्थापना के लिए इस पहल को भारत सरकार के महालेखाकार ने ‘बेस्ट इनिशिएटिव’ की कैटेगरी में रखकर सराहना की। स्थानीय स्तर पर शुरू की गई  इस पहल के जरिए अब तक लाखों पेड़ लगाये जा चुके हैं।

पर्यावरण अधिकारी संजय बताते हैं, “जल्द ही हमारी यह पहल 50 हेक्टेयर के क्षेत्र में पूरी तरह से स्थापित होगी। कोल माइनिंग एरिया रीक्लेमेशन का काम इस पहल के जरिए आसानी से पूरा हो सकेगा। कचरा प्रबंधन के छात्र यहाँ पर प्रशिक्षण के लिए भी आते हैं, जो इस ईको पार्क पर स्टडी करते हैं कि कैसे कोयले के कचरे को दूर कर यहाँ बायोडायवर्सिटी स्थापित किया जा सका।”

Coal Mine
वेस्ट मैनेजमेंट को समझने के लिए आये छात्र

स्थानीय लोगों के फायदे एवं पर्यावरण के बचाव के लिए कोयला खनन क्षेत्र में हरियाली को स्थापित करने के लिए कायाकल्प पहल एक मिसाल है।

पिपरवार ओपन कास्ट माइनिंग प्रबंधन एवं पर्यावरण अधिकारी संजय कुमार को पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता स्थापना की दिशा में अनूठी पहल के लिए द बेटर इंडिया की शुभकामनाएं।

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