छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों का नाम आते ही ज़्यादातर लोगों के दिमाग में एक ऐसे क्षेत्र की छवि उभरकर सामने आती है जो पिछले कई वर्षों से हिंसा और संघर्ष से जूझ रहा है। लेकिन इस छवि के परे एक और छवि है, वह है वहां की हरियाली।
यहाँ के घने जंगल जो मीलों तक खत्म नहीं होते और सदियों पुरानी नदियों की गाथा भी विशाल है। शायद इसी परिवेश ने वीरेंद्र सिंह को प्रकृति के संरक्षण की ज़िम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित किया। दिन-प्रतिदिन इंसानों के स्वार्थ की भेंट चढ़ रही प्रकृति को बचाने के लिए वह पिछले 20 सालों से कार्यरत हैं।
बालोद जिला के दल्लीराजहरा गाँव में एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे वीरेंद्र सिंह ने बचपन से प्रकृति से प्यार किया। उनके घर में ढेर सारे पेड़-पौधे थे वहीं गाँव के तालाबों में हमेशा पानी रहा करता था। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हम सब पेड़-पौधे से दूर होते चले गए।
हालांकि लोगों को आज समझ में आ रहा है कि पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को बचाना ज़रूरी है। लेकिन वीरेंद्र सिंह की पहल तो आज से 20 साल पहले ही शुरू ही गई थी जब उन्होंने देखा कि गाँव के लोग लकड़ियों के लिए जंगलों का सफाया करते जा रहे हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैंने कॉमर्स विषय से पढ़ाई की और एम.कॉम, एम.ए. अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की। इसके बाद 2000 में मैंने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली। उसी समय से मैंने पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान की शुरूआत की। स्कूल में बच्चों को पढ़ाते हुए उन्हें प्रकृति का महत्व भी समझाया और लगभग 25 बच्चों की टीम बनाकर पौधारोपण शुरू किया।”
अपने छात्रों के साथ मिलकर वह हर शनिवार पौधे लगाने के साथ-साथ स्वच्छता अभियान भी करते थे। उन्होंने लगभग 17 साल पहले 250 पौधे लगाए और फिर उनकी पूरी देखभाल की। हर साल वह उन पौधों का जन्मदिन भी मनाते हैं।
आज सभी पौधे घने पेड़ बन चुके हैं। इसके अलावा, भी उनका पौधारोपण कार्य और फिर इनकी देखभाल नियमित रूप से जारी रहती है। वृक्षारोपण के साथ-साथ उन्होंने अन्य कई तरह के अभियान भी शुरू किए ताकि वह लोगों के व्यवहार में परिवर्तन ला सकें।
“एक वक़्त था जब लोग ताने भी देते थे पर मैं अपने काम में लगा रहा। मेरा उद्देश्य अपने जंगलों और पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों को बचाना है और मैं यह आजीवन करता रहूँगा। प्रकृति को सहेजने में कोई मुश्किल नहीं है, मुश्किल है तो लोगों की सोच बदलना। अगर लोग इस छोटी सी बात को समझ लेंगे कि बिना प्रकृति हमारा भी कोई अस्तित्व नही है तो चीजें बहुत आसान हो जाएंगी,” उन्होंने कहा।
वीरेंद्र सिंह ने अपने सभी कार्य और अभियान जन-सहभागिता के साथ किए। उन्होंने अपने गाँव में काम करने के साथ साइकिल यात्राएँ भी की। सबसे पहले, 2007 में उन्होंने दुर्ग जिले से नेपाल तक की यात्रा की, जिसमें उनके साथ दस लोग थे। इसके बाद, वह 2008 में अपने 11 साथियों के साथ छत्तीसगढ़ के भ्रमण पर निकले और लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इसके अलावा, उन्होंने राजहरा से कुसुमकसा तक 7 किमी तक 15000 स्कूली छात्रों के साथ मिलकर मानव-श्रृंखला बनाई और लोगों को जागरूक किया।
उन्होंने अपने गाँव और आस-पास के गांवों में सार्वजनिक स्थानों पर अब तक हजारों की संख्या में पेड़-पौधे लगाए हैं।
पिछले 10 वर्षों से वह एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे हैं। वह अपने वेतन का एक हिस्सा पर्यावरण संरक्षण के लिए खर्च करते हैं। छुट्टी का दिन उनके अभियानों के लिए है और वह बहुत ही रचनात्मक तरीकों से अपना संदेश देते हैं। कभी अपने शरीर पर पेंटिंग कराकर तो कभी जोश भर देने वाले नारे लगाकर।
उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग और बाघों को बचाने के लिए अपने शरीर पर पेंटिंग बनाकार लोगों को संदेश दिया था। इसके अलावा उनके कुछ प्रमुख नारे हैं- बच्चा एक, वृक्ष अनेक, हमने ये ठाना है, पर्यावरण बचना है, स्वच्छ घर, स्वच्छ शहर आदि। पर्यावरण के अलावा भी वह कई सामाजिक मुद्दों पर ग्रामीणों को जागरूक करते हैं, जैसे एड्स जागरूकता अभियान, साक्षरता अभियान, मतदान अभियान आदि।
“13 साल पहले हमें गाँव के एक कुंड की साफ़ सफाई कर उसे सहेजा था और फिर इस पर सरकार के सहयोग से घाट बन गया। आज सभी लोग इस घाट का आनंद लेते हैं। उस कुंड से शुरू हुआ जल-स्त्रोतों को सहेजने का काम लगातार चलता रहा। हमने अब तक 35 तालाबों, 2 कुंड, तन्दला नदी और कई नालों की साफ़-सफाई की है,” उन्होंने बताया।
अभी भी वीरेंद्र लोगों के साथ मिलकर कांकेर और बालोद में तालाबों और कुओं के संरक्षण कार्य में जुटे हुए हैं। वह कहते हैं कि अगर हम अपने पारंपरिक जल-स्त्रोतों को नहीं बचाएंगे तो भूजल स्तर कैसे बढ़ेगा और जिस तरह से भूजल स्तर घट रहा है, उस हिसाब से तो चंद सालों में भारत प्यासा मरने लगेगा।
वीरेंद्र को उनकी पहलों और कार्यों के लिए आम लोगों के समर्थन के साथ-साथ सरकार की सराहना भी मिल रही है। उन्हें अब तक कोई छोटे -बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिसमें, तरुण भूषण, छत्तीसगढ़ जल-स्टार अवॉर्ड आदि शामिल हैं। कुछ समय पहले जलशक्ति मंत्रालय ने भी उनके कार्यों की सराहना करते हुए पोस्ट की थी।
‘ग्रीन कमांडो’ और ‘जल स्टार’ जैसे नामों से प्रसिद्ध वीरेंद्र सिंह हर साल रक्षाबंधन के मौके पर वेस्ट मटेरियल से राखी भी बनाते हैं। इसके पीछे उनका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण की देखभाल करने के लिए प्रेरित करना है। वीरेंद्र कहते हैं कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उन्हें सराह रहा है या नहीं। उनका लक्ष्य लोगों को प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास करना है।
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